सेहत के नुस्खे
इन सर्दियों में यदि आप अपनी सेहत बनाने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले पेट साफ करने की जरूरत है। पेट में कब्ज रहेगा तो कितने ही पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें, लाभ नहीं होगा। भोजन समय पर तथा चबा-चबाकर खाना चाहिए, ताकि पाचन शक्ति ठीक बनी रहे, फिर पौष्टिक आहार या औषधि का सेवन करना चाहिए।
आचार्य चरक ने कहा है कि पुरुष के शरीर में वीर्य तथा स्त्री के शरीर में ओज होना चाहिए, तभी चेहरे पर चमक व कांति नजर आती है और शरीर पुष्ट दिखता है।हम यहाँ कुछ ऐसे पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दे रहे हैं, जिन्हें किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक के लोग सेवन कर लाभ उठा सकते हैं और बलवान बन सकते हैं-
* सोते समय एक गिलास मीठे गुनगुने गर्म दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पीना चाहिए।
* दूध की मलाई तथा पिसी मिश्री जरूरत के अनुसार मिलाकर खाना चाहिए, यह अत्यंत शक्तिवर्द्धक है।
* एक बादाम को पत्थर पर घिसकर दूध में मिलाकर पीना चाहिए, इससे अपार बल मिलता है। बादाम को घिसकर ही उपयोग में लें।
* छाछ से निकाला गया ताजा माखन तथा मिश्री मिलाकर खाना चाहिए, ऊपर से पानी बिलकुल न पिएँ।
* 50 ग्राम उड़द की दाल आधा लीटर दूध में पकाकर खीर बनाकर खाने से अपार बल प्राप्त होता है। यह खीर पूरे शरीर को पुष्ट करती है।
* प्रातः एक पाव दूध तथा दो-तीन केले साथ में खाने से बल मिलता है, कांति बढ़ती है।
* एक चम्मच असगंध चूर्ण तथा एक चम्मच मिश्री मिलाकर गुनगुने एक पाव दूर के साथ प्रातः व रात को सेवन करें, रात को सेवन के बाद कुल्ला कर सो जाएँ। 40 दिन में परिवर्तन नजर आने लगेगा।
* सफेद मूसली या धोली मूसली का पावडर, जो स्वयं कूटकर बनाया हो, एक चम्मच तथा पिसी मिश्री एक चम्मच लेकर सुबह व रात को सोने से पहले गुनगुने एक पाव दूध के साथ लें। यह अत्यंत शक्तिवर्धक है।* सुबह-शाम भोजन के बाद सेवफल, अनार, केले या जो भी मौसमी फल हों, खाएँ।
* सुबह एक पाव ठंडे दूध में एक बड़ा चम्मच शहद मिलाकर पीने से खून साफ होता है, शरीर में खून की वृद्धि होती है।
* प्याज का रस 2 चम्मच, शहद 1 चम्मच, घी चौथाई चम्मच मिलाकर सेवन करें और स्वयं शक्ति का चमत्कार देखें। यह नुस्खा यौन शक्ति बढ़ाने में अचूक है। ऊपर वर्णित नुस्खे स्त्री-पुरुष दोनों के लिए समान हैं। इन्हें अनुकूल मात्रा में उचित विधि से सुबह-रात को सेवन सेवन करना चाहिए।
Sunday, 31 October 2010
सेहत के नुस्खे
मुंह में दुर्गन्ध हेतु
मुंह में दुर्गन्ध हेतु
आधे नींबू का रस व चार चम्मच गुलाब जल एक गिलास पानी में डाल कर इससे सुबह-शाम कुल्ला करने से मुख की दुर्गन्ध चली जाती है।
अनार, नारंगी तथा नींबू के छिलकों को धूप में सुखाकर मंजन करने से मुंह की दुर्गंध अवश्य दूर हो जाती है।
आंतों की सूजन
मैथी दाने की चाय ज्वर को कम करने में कुनेन जैसा कार्य करती है। यह पेय शरीर का आंतरिक शोधन करता है। शेषमा को घोलता है, पेट और आंतो की सूजन ठीक करने में सहायक होता है।
बाल बढ़ाने के लिए
100 मिली. नारियल का तेल लेकर उसमें 3 ग्राम कपूर मिला लें। इस तेल का इस्तेमाल सिर में प्रतिदिन रात में करें सिर पर उंगलियों के पोरों से अच्छी तरह तेल लगाकर मालिश करें। पंद्रह दिनों में ही रूसी समाप्त हो जाएगी एवं जुएं भी मर जायेंगी।
Thursday, 28 October 2010
कलौंजी-एक रामबांण दवाः-
कलौंजी-एक रामबांण दवाः-
मिस्र, जोर्डन, जर्मनी, अमेरीका, भारत, पाकिस्तान आदि देशों के 200 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में 1959 के बाद कलौंजी पर बहुत शोध कार्य हुआ है। मुझे पता लगा कि 1996 में अमेरीका की एफ।डी।ए। ने कैंसर के उपचार, घातक कैंसर रोधी दवाओं के दुष्प्रभावों के उपचार और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सुदृढ़ करने के लिए कलौंजी से बनी दवा को पेटेंट पारित किया था। कलौंजी दुग्ध वर्धक और मूत्र वर्धक होती है। कलौंजी जुकाम ठीक करती है और कलौंजी का तेल गंजापन भी दूर करता है। कलौंजी के नियमित सेवन से पागल कुत्ते के काटे जाने पर भी लाभ होता है। लकवा, माइग्रेन, खांसी, बुखार, फेशियल पाल्सी के इलाज में यह फायदा पहुंचाती हैं। दूध के साथ लेने पर यह पीलिया में लाभदायक पाई गई है। यह बवासीर, पाइल्स, मोतिया बिंद की आरंभिक अवस्था, कान के दर्द व सफेद दाग में भी फायदेमंद है। कलौंजी को विभिन्न बीमारियों में इस प्रकार प्रयोग किया जाता है।1-कैंसरः- कैंसर के उपचार में कलौजी के तेल की आधी बड़ी चम्मच को एक ग्लास अंगूर के रस में मिलाकर दिन में तीन बार लें। लहसुन भी खुब खाएं। 2 किलो गैंहू और 1 किलो जौ के मिश्रित आटे की रोटी 40 दिन तक खिलाएं। आलू, अरबी और बैंगन से परहेज़ करें।2-खांसी व दमाः- छाती और पीठ पर कलौंजी के तेल की मालिश करें, तीन बड़ी चम्मच तेल रोज पीयें और पानी में तेल डाल कर उसकी भाप लें।3-उदासी और सुस्तीः- एक ग्लास संतरे के रस में एक बड़ी चम्मच तेल डाल कर 10 दिन तक सेवन करें। आप को बहुत फर्क महसूस होगा।4-याददाश्त और मानसिक चेतनाः- एक छोटी चम्मच तेल 100 ग्राम उबले हुए पुदीने के साथ सेवन करें।5-डायबिटीजः- एक कप कलौंजी के बीज, एक कप राई, आधा कप अनार के छिलके और आधा कप पितपाप्र को पीस कर चूर्ण बना लें। आधी छोटी चम्मच कलौंजी के तेल के साथ रोज नाश्ते के पहले एक महीने तक लें।6-गुर्दे और पेशाब की थैली की पथरीः- पाव भर कलौंजी को महीन पीस कर पाव भर शहद में अच्छी तरह मिला कर रख दें। इस मिश्रण की दो बड़ी चम्मच को एक कप गर्म पानी में एक छोटी चम्मच तेल के साथ अच्छी तरह मिला कर रोज नाश्ते के पहले पियें।7-सुन्दर व आकर्षक चेहरे के लिएः- एक बड़ी चम्मच कलौंजी के तेल को एक बड़ी चम्मच जैतून के तेल में मिला कर चेहरे पर मलें और एक घंटे बाद चेहरे को धोलें। कुछ ही दिनों में आपका चेहरा चमक उठेगा।8-उल्टी और उबकाईः- एक छोटी चम्मच कार्नेशन और एक बड़ी चम्मच तेल को उबले पुदीने के साथ दिन में तीन बार लें।9-स्वस्थ और निरोग रहने के लिएः- एक बड़ी चम्मच तेल को एक बड़ी चम्मच शहद के साथ रोज सुबह लें, आप तंदुरूस्त रहेंगे और कभी बीमार नहीं होंगे।10-हृदय रोग, ब्लड प्रेशर और हृदय की धमनियों का अवरोधः- जब भी कोई गर्म पेय लें, उसमें एक छोटी चम्मच तेल मिला कर लें, रोज सुबह लहसुन की दो कलियां नाश्ते के पहले लें और तीन दिन में एक बार पूरे शरीर पर तेल की मालिश करके आधा घंटा धूप का सेवन करें। यह उपचार एक महीनें तक लें।11-सफेद दाग और लेप्रोसीः- 15 दिन तक रोज पहले सेब का सिरका मलें, फिर कलौंजी का तेल मलें।12-कमर दर्द और आर्थाइटिसः- हल्का गर्म करके जहां दर्द हो वहां मालिश करें और एक बड़ी चम्मच तेल दिन में तीन बार लें। 15 दिन में बहुत आराम मिलेगा।13-सिर दर्दः- माथे और सिर के दोनों तरफ कनपटी के आस-पास कलौंजी का तेल लगायें और नाश्ते के पहले एक चम्मच तेल तीन बार लें कुछ सप्ताह बाद सर दर्द पूर्णतः खत्म हो जायेगा।14-अम्लता और आमाश्य शोथः- एक बड़ी चम्मच कलौंजी का तेल एक कप दूध में मिलाकर रोज पांच दिन तक सेवन करने से आमाश्य की सब तकलीफें दूर हो जाती है।15-बाल झड़नाः- बालों में नीबू का रस अच्छी तरह लगाये, 15 मिनट बाद बालों को शेम्पू कर लें व अच्छी तरह धोकर सुखा लें, सूखे बालों में कलौंजी का तेल लगायें एक सप्ताह के उपचार के बाद बालों का झड़ना बन्द हो जायेगा।16-नेत्र रोग और कमजोर नजरः- रोज सोने के पहले पलकों ओर ऑखो के आस-पास कलौजी का तेल लगायें और एक बड़ी चम्मच तेल को एक कप गाजर के रस के साथ एक महिने तक लें।17-दस्त या पैचिशः-एक बड़ी चम्मच कलौंजी के तेल को एक चम्मच दही के साथ दिन में तीन बार लें दस्त ठीक हो जायेगा।18-रूसीः- 10 ग्राम कलौंजी का तेल, 30 ग्राम जैतून का तेल और 30 ग्राम पिसी मेंहन्दी को मिला कर गर्म करें। ठंडा होने पर बालों में लगाएं और एक घंटे बाद बालों को धो कर शैम्पू कर लें।19-मानसिक तनावः- एक चाय की प्याली में एक बड़ी चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर लेने से मन शांत हो जाता है और तनाव के सारे लक्षण ठीक हो जाते हैं।20-स्त्री गुप्त रोगः- स्त्रियों के रोगों जैसे श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, प्रसवोपरांत दुर्बलता व रक्त स्त्राव आदि के लिए कलौंजी गुणकारी है। थोड़े से पुदीने की पत्तियों को दो ग्लास पानी में डाल कर उबालें, आधा चम्मच कलौंजी का तेल डाल कर दिन में दो बार पियें। बैंगन, आचार, अंडा और मछली से परहेज रखें।21-पुरूष गुप्त रोगः- स्वप्नदोष, स्थंभन दोष, पुरुषहीनता आदि रोगों में एक कप सेब के रस में आधी छोटी चम्मच तेल मिला कर दिन में दो बार 21 दिन तक पियें। थोड़ा सा तेल गुप्तांग पर रोज मलें। तेज मसालेदार चीजों से परहेज करें।
आवश्यकतानुसार किचन में इन टिप्स को आजमाकर जरूर देखे :
सख्त नींबू को अगर गरम पानी में कुछ देर के लिए रख दिया जाये तो उसमें से आसानी से अधिक रस निकाला जा सकता है।
महीने में एक बार मिक्सर और ग्राइंडर में नमक डालकर चला दिया जाये तो उसके ब्लेड तेज हो जाते हैं।
नूडल्स उबालने के बाद अगर उसमें ठंडा पानी डाल दिया जाये तो वह आपस में चिपकेंगे नही।
पनीर को ब्लोटिंग पेपर में लपेटकर फ्रिज में रखने से यह अधिक देर तक ताजा रहेगा।
मेथी की कड़वाहट हटाने के लिये थोड़ा सा नमक डालकर उसे थोड़ी देर के लिये अलग रख दें।
एक टीस्पून शक्कर को भूरा होने तक गरम करे। केक के मिश्रण में इस शक्कर को मिला दे। ऐसा करने पर केक का रंग अच्छा आयेगा।
फूलगोभी पकाने पर उसका रंग चला जाता है। ऐसा न हो इसके लिए फूलगोभी की सब्जी में एक टीस्पून दूध अथवा सिरका डाले। आप देखेगी कि फूलगोभी का वास्तविक रंग बरकरार है।
आलू के पराठे बनाते समय आलू के मिश्रण में थोड़ी सी कसूरी मेथी डालना न भूले। पराठे इतने स्वादिष्ट होंगे कि हर कोई ज्यादा खाना चाहेगा।
आटा गूंधते समय पानी के साथ थोड़ा सा दूध मिलाये। इससे रोटी और पराठे का स्वाद बदल जाएगा।
दाल पकाते समय एक चुटकी पिसी हल्दी और मूंगफली के तेल की कुछ बूंदे डाले। इससे दाल जल्दी पक जायेगी और उसका स्वाद भी बेहतर होगा।
बादाम को अगर 15-20 मिनट के लिए गरम पानी में भिगो दें तो उसका छिलका आसानी से उतर जायेगा।
चीनी के डिब्बे में 5-6 लौंग डाल दी जाये तो उसमें चींटिया नही आयेगी।
बिस्कुट के डिब्बे में नीचे ब्लोटिंग पेपर बिछाकर अगर बिस्कुट रखे जाये तो वह जल्दी खराब नही होंगे।
कटे हुए सेब पर नींबू का रस लगाने से सेब काला नही पड़ेगा।
जली हुए त्वचा पर मैश किया हुआ केला लगाने से ठंडक मिलती है।
मिर्च के डिब्बे में थोड़ी सी हींग डालने से मिर्च लम्बे समय तक खराब नही होती।
किचन के कोनो में बोरिक पाउडर छिड़कने से कॉकरोच नही आयेंगे।
लहसुन के छिलके को हल्का सा गरम करने से वो आसानी से उतर जाते हैं।
हरी मिर्च के डंठल को तोड़कर मिर्च को अगर फ्रिज में रखा जाये तो मिर्च जल्दी खराब नही होती।
हरी मटर को अधिक समय तक ताजा रखने के लिए प्लास्टिक की थैली में डालकर फ्रिजर में रख दें।
किचन टिप्स 2
किचन टिप्स 2
*अगर खाने को दोबारा गरम करना हो तो खाने का बरतन उबलते पानी के भगोने मे रखकर ढंक दे कुछ देर मे ताजा हो जायेगा
*बाजार से हरी सब्जी लाकर बिना धोये अखबार मे लपेट कर रख दे खराब नही होगी*किसी फंशन के बाद बचा हुआ सलाद हो तो उसमेकुछ और सब्जिया मिलाकर पका ले और पावभाजी बना लो।
*कोइ सूखी सब्जी बच गई हो तो उसे मैश करके उसमे अदरक बेसन लहसुन मिलाकर मिक्स वेजीटेबल कोफ्ते या कटलेट बना सकते है
*शिमला मिरच कीसब्जी काटते समय अंदर की बीज को निकाल दे सब्जी स्वादिष्ट बनेगी*पालक की सब्जी बनाते समय चुटकीभर चीनी डाल दे पालक का रंग काला नही पडेगा
*तरी वाली सब्जी मे पानी ज्यादा हो गया हो तो सूखी ब्रेड का चूरा या बेसन भून कर डाल दे या बारीक वाला सोयाबीन डाल देंतरी गाढी हो गायेगी *
*किचन मे अपने लिये ट्रान्सपिरेट प्लास्टिक का एप्रिन बनाये सब्जियो ,फल फूल या हंसता हुआ चेहरा पेंट करे टयू्ब कलर से इससे आपक कपडे का शो भी बना रहेगा और आपकी कारीगरी भी दिखाई देगी।
8*अगरआपके पास समय कम है तो दो ,तीन समय की रोटी बनाकर वेजीटेबल आयल लगा कर जिप वाले पैकट में रख दे अब खाने से पहले माइक्रोवेव मे गरम कर ले फिर से ताजी हो जायेगी।
किचन टिप्स 1
पनीर मसाला बनाते समय मसाले में थोड़ा-सा पनीर पीसकर मिलाएं, स्वाद बढ़ जाएगा।
कोफ्ताकरी बनाते समय मिश्रण में एक छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर मिला दें। इससे कोफ्ते नरम और मुलायम बनेंगे।
तेल में थोड़ा-सा नमक डालकर अच्छी तरह मिला लें। अब इसे कटे हुए बैंगन पर लगाएं, यह काला नहीं पड़ेगा।
दाल के बर्तन की तली में लग जाने के बाद इसमें से जलने की बू आ रही है तो परेशान न हों। इसमें बारीक कटे टमाटर और लौंग का छौंक लगाएं, गंध दूर हो जाएगी।
पास्ता, मैक्रोनी या नूल्डस उबालते वक्त पानी में थोड़ा तेल डाल दें। इससे ये आपस में नहीं चिपकेंगे।
दही व फलों की चाट बनाते वक्त ऊपर से थोड़ा-सा सूखे पुदीने का चूर्ण बुरक दें, चाट अधिक स्वादिष्ट बनेगी।
स्वादिष्ट खाना बनाने के टिप्स
1। स्वादिष्ट ग्रेवी बनाने के लिए प्याज, लहसुन, अदरक, पोस्ता और दो-चार दाने भूने हुए बादाम को पीस लें और इन सबको आंच पर भून लें।2। करेले और अरवी को बनाने से पहले नमक पानी में भिगा दें। करेले की कड़वाहट और चिकनाहट निकल जायेगी।3। दूध के किसी पकवान में स्वाद के लिये नींबू या कोई खट्टा फल का रस बूंद-बूंद कर डालें।4. सब्जियों को उबालते समय थोड़ा नमक डालने से रंग नहीं बदलेगा।5. यदि सब्जियों का रंग पकाने के बाद भी प्राकृतिक रखना हो, तो पकाते समय थोड़ा चीनी डाल दें।6. तेल या घी में कोई चीज तलने से पूर्व तेल में सिरके की कुछ बूंदें डालिये। इससे उसमें स्वाद व रंग बढ़ेगा।7. चाय को सुंगधित बनाने के लिये उबलते पानी में थोड़ा संतरे का सूखा छिलका डाल दें।8. आलू उबालते समय थोड़ा नमक डाल दें। आलू फटते नहीं हैं तथा आसानी से छिल जाते हैं।9. यदि आप चना, मटर जैसे चीज जल्दी पकाना चाहते हैं, तो पानी में नारियल तेल या रिफाइड तेल की कुछ बूंदे डाल दें।10. यदि दाल पकने के बाद गाढ़ी हो जाये, तो कच्चा पानी न डाले चावल का मांड़ डाल दें।11. किसी सब्जी में खटाई डालना हो, तो जब पकने को हो जाय तब डालें वरना पहले डालेंगे तो पकने में समय ज्यादा लगेगा।12. कच्चे नारियल की बर्फी बनाते समय दूध का प्रयोग न करके मिल्क पाउडर मिलायें ज्यादा स्वादिष्ट बनेगी।13. यदि मट्ठी बहुत कुरकुरी बनानी हो, तो आटे में घी की जगह रिफांइड तेल गूंद दें।14. यदि दूध फटने की संभावना हो, तो थोड़ा खाने का सोड़ा डालकर उबालें। 15. पनीर फ्राई करने के बाद गरम पानी में डालें। इससे पनीर मुलायम रहेगा।16. पकौडी बनाते समय बेसन फेंटकर एक चम्मच रिफाइंड डाल दें। पकौडी कुरकुरी बनेगी।17. टमाटर अधिक मुलायम हो जाए, तो बर्फ के पानी में या नमक पानी में डालकर रखें।18. आलू की कचौडी बनाते समय मसाले में थोड़ा बेसन भूनकर डाल दें। इससे कचौडी ज्यादा स्वादिष्ट बनेगी।19. पुराने पापड फेंके नहीं, छोटे-छोटे टुकड़े करके पानी में उबाल लें। उसे छानकर राई या जीरे का छौंक लगाकर टमाटर, दही मसाला डालकर सूखी रसेदार सब्जी बनाएं।20. सेहजन (मुनगा) की जड़ का काढ़ा गरम-गरम पीने से पथरी कट जाती है।21. पान में 10 दाना काली मिर्च डालकर चबाने से मोटापा कम होता है।22. सुरीली आवाज के लिए काली मिर्च 10 ग्राम, मुलेठी 10 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम सबको लेकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन सुबह-शाम इस चूर्ण की एक चुटकी शहद के साथ लें। 23. काली मिर्च, सोठ, दाल चीनी, लौंग, इलाइची को चाय में डालकर पीने से उदासीनता, आलस्य व थकावट दूर होती है। इसके पीने से शरीर में नयी स्फूर्ति आती है।
किचन टिप्स
सख्त नींबू को अगर गरम पानी में कुछ देर के लिए रख दिया जाये तो उसमें से आसानी से अधिक रस निकाला जा सकता है।
महीने में एक बार मिक्सर और ग्राइंडर में नमक डालकर चला दिया जाये तो उसके ब्लेड तेज हो जाते हैं।
नूडल्स उबालने के बाद अगर उसमें ठंडा पानी डाल दिया जाये तो वह आपस में चिपकेंगे नही।
पनीर को ब्लोटिंग पेपर में लपेटकर फ्रिज में रखने से यह अधिक देर तक ताजा रहेगा।
मेथी की कड़वाहट हटाने के लिये थोड़ा सा नमक डालकर उसे थोड़ी देर के लिये अलग रख दें।
एक टीस्पून शक्कर को भूरा होने तक गरम करे। केक के मिश्रण में इस शक्कर को मिला दे। ऐसा करने पर केक का रंग अच्छा आयेगा।
फूलगोभी पकाने पर उसका रंग चला जाता है। ऐसा न हो इसके लिए फूलगोभी की सब्जी में एक टीस्पून दूध अथवा सिरका डाले। आप देखेगी कि फूलगोभी का वास्तविक रंग बरकरार है।
आलू के पराठे बनाते समय आलू के मिश्रण में थोड़ी सी कसूरी मेथी डालना न भूले। पराठे इतने स्वादिष्ट होंगे कि हर कोई ज्यादा खाना चाहेगा।
आटा गूंधते समय पानी के साथ थोड़ा सा दूध मिलाये। इससे रोटी और पराठे का स्वाद बदल जाएगा।
दाल पकाते समय एक चुटकी पिसी हल्दी और मूंगफली के तेल की कुछ बूंदे डाले। इससे दाल जल्दी पक जायेगी और उसका स्वाद भी बेहतर होगा।
बादाम को अगर 15-20 मिनट के लिए गरम पानी में भिगो दें तो उसका छिलका आसानी से उतर जायेगा।
चीनी के डिब्बे में 5-6 लौंग डाल दी जाये तो उसमें चींटिया नही आयेगी।
बिस्कुट के डिब्बे में नीचे ब्लोटिंग पेपर बिछाकर अगर बिस्कुट रखे जाये तो वह जल्दी खराब नही होंगे।
कटे हुए सेब पर नींबू का रस लगाने से सेब काला नही पड़ेगा।
जली हुए त्वचा पर मैश किया हुआ केला लगाने से ठंडक मिलती है।
मिर्च के डिब्बे में थोड़ी सी हींग डालने से मिर्च लम्बे समय तक खराब नही होती।
किचन के कोनो में बोरिक पाउडर छिड़कने से कॉकरोच नही आयेंगे।
लहसुन के छिलके को हल्का सा गरम करने से वो आसानी से उतर जाते हैं।
हरी मिर्च के डंठल को तोड़कर मिर्च को अगर फ्रिज में रखा जाये तो मिर्च जल्दी खराब नही होती।
हरी मटर को अधिक समय तक ताजा रखने के लिए प्लास्टिक की थैली में डालकर फ्रिजर में रख दें।
नया स्वाद
नया स्वाद
NDआलू की सूखी या रसेदार सब्जी बना रही हैं तो उसमें बड़ी इलायची डाल दें। नया स्वाद बनेगा। सब्जी छौंकते समय तेल में पहले हल्दी डाल देने से तेल के छींटे कम उछलेंगे।
किसी की रसेदार सब्जी को गाढ़ा करना हो तो घी में भुनी हुई डबलरोटी का चूरा उसमें मिला दें। इसे सब्जी गाढ़ी होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी लगेगी।
सब्जी में मिर्च ज्यादा हो जाए तो थोड़ा टमाटर सॉस या दही मिला दें। सब्जी का तीखापन कम हो जाएगा।
मटर, हरे चने आदि हरे दानों की सब्जियाँ पकने पर उसकी रंगत बरकरार रखने के लिए पकाते समय उसमें चुटकी भर चीनी मिला दें।
जली बदबू गायब
बिरियानी या पुलाव बनाने के बाद जला-सा स्वाद आ रहा है तो पूरे व्यंजन के बर्तन में ब्रेड के स्लाइस फैला कर रखें। थोड़ी देर बाद आप पाएँगी कि जली बदबू गायब हो गई है।
सैंडविच को देर तक नर्म रखने के लिए उन पर ब्रश से दूध लगाएँ।
साबुन को गलने से बचाने के लिए इसे बाथरुम में एक जाली में लटकाकर रखें तथा ऐसे ही उपयोग करें। यह लूफा की तरह भी काम करेगा।
मेहँदी के दाग आसानी से निकालने के लिए कपड़ों को गर्म दूध में गला दें फिर साबुन से धो लें।
ड्रायफ्रूट्स फ्रेशनर
फ्रेशनर बनाने के लिए 50 ग्राम बादाम, 50 ग्राम काजू, 10 ग्राम कालीमिर्च, 20 ग्राम खसखस के दाने, 25 ग्राम पिस्ता, 50 ग्राम मिश्री लेकर सभी को मिक्सी में हल्का-सा पीस लें। खाना खाने के बाद खाएँ। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे अच्छा माउथ फ्रेशनर है।
फूलगोभी को पकाने से पहले उसे सिरका मिले पानी में पंद्रह मिनट तक रखें। इससे गंदगी तथा कीड़े साफ हो जाएँगे। किसी भी कपड़े पर से दाग हटाने के लिए उस पर मिटटी का तेल डालें फिर उस पर नींबू घिसें। इसके बाद साबुन लगाएँ।
सफेद कपड़ों को धूप में तथा रंगीन को छाया में सुखाएँ।
फेवीकोल को सूखने से बचाने के लिए उसे फ्रिज में रखें।
बहुउपयोगी हैं सूखी सब्जियाँ...
रसोई की बातें...
- गाजर को कद्दूकस कर सुखाकर पीस लें। इसे भी मसालादानी में रखें। प्रतिदिन मसालों के साथ इसका भी प्रयोग करें। विटामिन्स से भरपूर खाना प्रतिदिन खाएँ और खिलाएँ।
- अदरक को काटकर, सुखाकर पीस लें। इसे भी मसालादानी में रखें। प्रतिदिन आप मसालों के साथ पिसी अदरक का भी उपयोग कर सकते हैं। चाय मसाले में भी इसे उपयोग में ला सकते हैं।
- हरी मिर्च को काटकर सुखा लें। थोड़े-से तेल में सेंककर मिक्चर में मिलाएँ, स्वाद बढ़ जाएगा।
- हरी मिर्च के डंठल तोड़कर सुखा लें। पीसकर पावडर बना लें। इसे भी मसालादानी में रखें। भिंडी, चतुरफली, बरबटी आदि सब्जियों के हरे रंग के लिए एवं मसालों के साथ इसका उपयोग करें।
Wednesday, 27 October 2010
हस्त मुद्राओं द्वारा चिकित्सा
ज्ञान मुद्रा : अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगाएं व बाकी तीनों अंगुलियां सीधी रखें। यह मुद्रा मस्तिष्क के स्नायु को बल देती है और स्मरण शक्ति, एकाग्रता शक्ति, संकल्प शक्ति को बढ़ाती है। इससे पढ़ाई में मन लगता है तथा सिर दर्द व नींद न आने जैसी शिकायतें दूर होती हैं। इससे मन की चंचलता, क्रोध, चिड़चिड़ापन, तनाव, चिंता जैसी व्याधियां दूर होती हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक बनाती हैं।
वायु मुद्रा: इसमें तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर हल्का सा दबाएं। बाकी अंगुलियां सीधी रहेंगी। यह मुद्रा वात रोगों में विशेष लाभकारी है। यह साइटिका, कमर दर्द, गर्दन दर्द, पारकिंसन, गठिया, लकवा, जोड़ों का दर्द, घुटने का दर्द दूर करती है।
आकाश मुद्रा: इसके लिए मध्यमा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधा कर दें। इससे कान के रोग, बहरापन, कान में आवाजें आना दूर होता है, हड्डियों की कमजोरी को भी यह दूर कर देती है।
शून्य मुद्रा: इस में मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से दबाएं व बाकी अंगुलियां सीधी रखें। इससे गले के रोग व थाइराइड वगैरह में लाभ पहुंचता है, दांत मजबूत होते हैं और कान की बीमारियां दूर होती हैं।
पृथ्वी मुद्रा: इसके लिए अनामिका अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियां सीधी रखें। यह मुद्रा दुर्बलता को दूर कर वजन को बढ़ाती है, शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेज उत्पन्न करतीहै, जीवनी शक्ति का विकास करती है और पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाती है। ऐसी अनेक मुद्राएं हैं जिन्हें हम अपने दैनिक जीवन में सहज भाव से कर सकते हैं और अपने अनेक रोगों का निदान कर सकते हैं। सूर्य मुद्रा विधि: अनामिका अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से दबाकर बाकी अगुलियों को सीधा करके रखें। लाभ: मोटापा कम करती है, वजन को घटाने वाली है, शरीर में उष्णता बढ़ाती है, शक्ति का विकास करती है, कोलेस्ट्राल का बढ़ना, मधुमेह व लीवर के रोग में लाभ पहुंचाती है, शरीर को संतुलित बना देती है। नोट: कमजोर व्यक्ति इसका अभ्यास न करें। गर्मी में भी ज्यादा न करें।
वरुण मुद्रा विधि: कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग पर लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधा रखने से बनती है। लाभ: चर्मरोग, रक्त विकार दूर करती है, शरीर में रूखापन दूर कर त्वचा को चमकीली व मुलायम बनाती है, चेहरे की सुन्दरता को बढ़ा देती है। नोट: कफ प्रकृति वाले व्यक्ति इसका अभ्यास ज्यादा न करें।
अपान मुद्रा विधि: मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधी रखें। लाभ: कब्ज, मधुमेह, किडनी विकार, वायु विकार, बवासीर को दूर करती है, शरीर को शुद्ध कर नाड़ी दोषों को दूर कर देती है, मूत्र का अवरोध दूर कर दांतों को मजबूत करती है, पसीना भी लाती है। नोट: यह मुद्रा मूत्र अधिक लाती है।
हृदय मुद्रा विधि: यह मुद्रा तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाकर मध्यमा व अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग पर लगाकर छोटी अंगुली को सीधा करके बनती है। लाभ: हृदय रोगों में विशेष रूप से लाभकारी है। प्रतिदिन 10-15 मिनट इसके अभ्यास से हृदय मजबूत होता है, दिल का दौरा पड़ते ही इसको करने से आराम मिलता है, गैस बनना, सिरदर्द, अस्थमा व उच्च रक्तचाप में लाभकारी है। सीढ़ियों पर चढ़ने से पहले ही अगर इसको लगाकर चढ़ा जाए तो सांस नहीं फूलती।
प्राण मुद्रा विधि: अनामिका तथा कनिष्ठा अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग पर लगाकर बाकी दोनों अंगुलियों को सीधा रखें। लाभ: मन को शान्त कर शरीर की दुर्बलता को दूर करती है, रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ा देती है, नेत्र ज्योति बढ़ाती है, थकान दूर कर शरीर में तरोताजगी देती है, त्वचा व आंखों को निर्मल बना देती है, विटामिन की कमी को दूर करती है।
लिंग मुद्रा विधि: दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर बांधकर बाएं हाथ के अंगूठे को खड़ा रखें। लाभ: सर्दी, जुकाम, खांसी, साइनिसाइटिस, अस्थमा, निमन् रक्तचाप को दूर कर शरीर की गर्मी को बढ़ा देती है, कफ को सुखाने का कार्य करती है। नोट: आवश्यकता होने पर ही करें, अनावश्यक न क
हृदयरोग एवं चिकित्सा
आज विश्व में सबसे घातक कोई रोग तेजी से बढ़ता नज़र आ रहा है तो वह है हृदयरोग। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत में पूरे विश्व की तुलना में सर्वाधिक हृदय के रोगी होंगे। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों को दिल का दौरा पड़ता है।
मनुष्य का हृदय एक मिनट में तकरीबन 70 बार धडकता है। चौबीस घंटों में 1,00,800 बार। इस तरह हमारा हृदय एक दिन में तकरीबन 2000 गैलन रक्त का पम्पिंग करता है।
स्थूल दृष्टि से देखा जाय तो यह मांसपेशियों का बना एक पम्प है। ये मांसपेशियाँ संकुचित होकर रक्त को पम्पिंग करके शरीर के सभी भागों तक पहुँचती है। हृदय की धमनियों में चर्बी जमा होने से रक्तप्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है जिससे हृदय को रक्त कम पहुँचता है। हृदय को कार्य करने के लिए आक्सीजन की माँग व पूर्ति के बीच असंतुलन होने से हृदय की पीड़ा होना शुरु हो जाता है। इस प्रकार के हृदय रोग का दौरा पड़ना ही अचानक मृत्यु का मुख्य कारण है।
हृदयरोग के कारणः
युवावस्था में हृदयरोग होने का मुख्य कारण अजीर्ण व धूम्रपान है। धूम्रपान न करने से हृदयरोग की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। फिर भी उच्च रक्तचाप, ज्यादा चरबी, कोलेस्ट्रोल अधिक होना, अति चिंता करना और मधुमेह भी इसके कारण हैं।
मोटापा, मधुमेह, गुर्दों की अकार्यक्षमता, रक्तचाप, मानसिक तनाव, अति परिश्रम, मल-मूत्र की हाजत को रोकने तथा आहार-विहार में प्राकृतिक नियमों की अवहेलना से ही रक्त में वसा का प्रमाण बढ़ जाता है। अतः धमनियों में कोलस्ट्रोल के थक्के जम जाते हैं, जिससे रक्त प्रवाह का मार्ग तंग हो जाता है। धमनियाँ कड़ी और संकीर्ण हो जाती हैं।
हृदय रोग के लक्षणः
छाती में बायीं ओर या छाती के मध्य में तीव्र पीड़ा होना या दबाव सा लगना, जिसमें कभी पसीना भी आ सकता है और श्वास तेजी से चल सकता है।
कभी ऐसा लगे कि छाती को किसी ने चारों ओर से बाँध दिया हो अथवा छाती पर पत्थर रखा हो।
कभी छाती के बायें या मध्य भाग में दर्द न होकर शरीर के अन्य भागों में दर्द होता है, जैसे की कंधे में, बायें हाथ में, बायीं ओर गरदन में, नीचे के जबड़े में, कोहनी में या कान के नीचे वाले हिस्से में।
कभी पेट में जलन, भारीपन लगना, उलटी होना, कमजोरी सी लगना, ये तमाम लक्षण हृदयरोगियों में देखे जाते हैं।
कभी कभार इस प्रकार का दर्द काम करते समय, चलते समय या भोजनोपरांत भी शुरु हो जाता है, पर शयन करते ही स्वस्थता आ जाती है। किंतु हृदयरोग के आक्रमण पर आराम करने से भी लाभ नहीं होता।
मधुमेह के रोगियों को बिना दर्द हुए भी हृदयरोग का आक्रमण हो सकता है।
हृदयरोग या हृदयरोग के आक्रमण के समय उपरोक्त लक्षणों से सावधान होकर, ईश्वरचिंतन या जप का अभ्यास शुरु करना चाहिए।
हृदयरोग के उपायः
नीचे दी गयी पद्धति के द्वारा हृदय की धमनियों के बीच के अवरोधों को दूर किया जा सकता है।
अमेरिकन डॉ. ओरनिस के अनुसार हररोज ध्यान में एक घंटा बैठना, श्वासोछ्वास की कसरतें अर्थात् प्राणायाम, आसन करना, हर रोज आधा घंटा घूमने जाना तथा चरबी न बढ़ाने वाला सात्त्विक आहार लेना अत्यंत लाभकारी है।
आज के डॉक्टरों की बात मानने से पूर्व यदि हम भगवान शंकर की, भगवान कृष्ण की बात मान लें और उनके अनुसार जीवन बितायें तो हृदयरोग हो ही नहीं सकता।
भगवान शंकर कहते हैं
नास्ति ध्यानं तीर्थम् नास्ति ध्यानसमं यज्ञः।
नास्ति ध्यानसमं दानम् तस्मात् ध्यानं समाचरेत्।।
ध्यान के समान कोई तीर्थ, यज्ञ और दान नहीं है अतः ध्यान का अभ्यास करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भोजन कैसा लेना चाहिए इस बात का वर्णन करते हुए गीता में कहा हैः
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।
दुःखों को नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार और विहार करने वाले का तथा कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का और यथा योग्य शयन करने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है। (गीताः 6-17)
आयु सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्या स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।
आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले एवं रसयुक्त, चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ सात्त्विक पुरुष को प्रिय होते हैं। (गीताः 17-8)
मंत्रजाप, ध्यान, प्राणायाम, आसन का नियमित रूप से अभ्यास करने तथा ताँबे की तार में रूद्राक्ष डालकर पहनने से अनेक घातक रोगों से बचाव होता है। उपवास और गोझरण (गोमूत्र) श्रेष्ठ औषध है।
हृदय रोग से बचने हेतु रोज भोजन से पूर्व अदरक का रस पीना हितकर है। भोजन के साथ लहसुन-धनिया की चटनी भी हितकर है।
हृदयरोगी को अपना उच्च रक्तचाप व कोलेस्ट्रोल नियंत्रण में रखना चाहिए। नियंत्रण के लिए किशमिश (काली द्राक्ष) व दालचीनी का प्रयोग निम्न तरीके से करना चाहिए।
किशमिशः पहले दिन 1 किशमिश रात को गुलाबजल में भिगोकर सुबह खाली पेट चबाकर खा लें, दूसरे दिन दो किशमिश खायें। इस तरह प्रतिदिन 1 किशमिश बढ़ाते हुए 21 वें दिन 21 किशमिश लें फिर 1-1 किशमिश प्रतिदिन कम करते हुए 20, 19, 18 इस तरह 1 किशमिश तक आयें। यह प्रयोग करके थोड़े दिन छोड़ दें। 3 बार यह प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।
दालचीनीः 100 मि.ली. पानी में 2 ग्राम दालचीनी का चूर्ण उबालें। 50 मि.ली. रहने पर ठंडा कर लें। उसमें आधा चम्मच (छोटा) शहद मिलाकर सुबह खाली पेट लें। यदि मधुमेह भी होत शहद नहीं लें। यह प्रयोग 3 माह तक करने से रक्त में कोलेस्ट्रोल का प्रमाण नियंत्रण में रहता है।
उपचारः
लहसुनः 2 कली लहसुन रोजाना दिन में 2 बार सेवन करें। लहसुन की चटनी भी ले सकते हैं। लहसुन हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। इसमें निहित गंधक तत्त्व रक्त के कोलस्ट्रोल को नियंत्रित करता है और उसके जमाव को रोकने में सहायक है।
पुनर्नवाः इसके सेवन से हृदयरोगी को फायदा होता है।
लेपः 10 ग्राम उड़द की छिलकेवाली दाल रात को भिगोयें। प्रातः पीसकर उसमें गाय का ताजा मक्खन 10 ग्राम, एरंड का तेल 10 ग्राम, कूटी हुई गूगल धूप 10 ग्राम मिलाकर लुगदी बना लें। सुबह बायीं ओर हृदयवाले हिस्से पर लेप करके 3 घंटे तक आराम करें। उसके बाद लेप हटाकर दैनिक कार्य कर सकते हैं। यह प्रयोग 1 माह तक करने से हृदय का दर्द ठीक होता है।
गोझरण अर्कः हृदय की धमनियों में अवरोधवाले रोगियों को गोझरण अर्क के सेवन से हृदय के दर्द में राहत मिलती है। अर्क 2 से 6 ढक्कन तक समान मात्रा में पानी मिलाकर ले सकते हैं। सुबह खाली पेट व शाम को भोजन से पहले लें। हृदय दर्द बंद होकर चुस्ती फुर्ती बढ़ती है तथा बेहद खर्चीली बाईपास सर्जरी से मुक्ति मिलती है।
अर्जुन छाल का काढ़ाः अर्जुन की ताजी छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। 200 ग्राम दूध में 200 ग्राम पानी मिलाकर हलकी आग पर रखें, फिर 3 ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। उबलते उबलते द्रव्य आधा रह जाय तब उतार लें। थोड़ा ठंडा होने पर छानकर रोगी को पिलायें।
सेवन विधिः रोज 1 बार प्रातः खाली पेट लें उसके बाद डेढ़ दो घंटे तक कुछ न लें। 1 माह तक नित्य सेवन से दिल का दौरा पड़ने की सम्भावना नहीं रहती है।
पथ्यः हृदयरोगों में अंगूर व नींबू का रस, गाय का दूध, जौ का पानी, कच्चा प्याज, आँवला, सेब आदि। छिलकेवाले साबुत उबले हुए मूँग की दाल, गेहूँ की रोटी, जौ का दलिया, परवल, करेला, गाजर, लहसुन, अदरक, सोंठ, हींग, जीरा, काली मिर्च, सेंधा नमक, अजवायन, अनार, मीठे अंगूर, काले अंगूर आदि।
अपथ्यः चाय, काफी, घी, तेल, मिर्च-मसाले, दही, पनीर, मावे (खोया) से बनी मिठाइयाँ, टमाटर, आलू, गोभी, बैंगन, मछली, अंडा, फास्टफूड, ठंडा बासी भोजन, भैंस का दूध व घी, फल, भिंडी। गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से बचें। धूम्रपान न करें। मोटापा, मधुमेह व उच्च रक्तचाप आदि को नियंत्रित रखें। हृदय की धड़कनें अधिक व नाड़ी का बल बहुत कम हो जाने पर अर्जुन की छाल जीभ पर रखने मात्र से तुरंत शक्ति प्राप्त होने लगती है।
टिप्पणीः अनुभव से ऐसा पाया गया है कि अधिकतर रोगी, जिन्हें दिल का मरीज घोषित कर दिया जाता है, वे दिल के मरीज नहीं, अपितु वात प्रकोपजन्य सीने के दर्द के शिकार होते हैं। आई.सी.सी.यू. में दाखिल कई मरीजों को अंग्रेजी दवाइयों से नहीं, केवल संतकृपा चूर्ण, हिंगादिहरड़, शंखवटी, लवणभास्कर चूर्ण आदि वायु-प्रकोप को शांत करने वाली औषधियों से लाभ हो जाता है तथा वे हृदयरोग होने के भ्रम से बाहर आ जाते हैं और स्वस्थ हो जाते हैं।
निद्रा और स्वास्थ्य
जब आँख, कान, आदि ज्ञानेन्द्रियाँ और हाथ, पैर आदि कर्मेन्द्रियाँ तथा मन अपने-अपने कार्य में रत रहने के कारण थक जाते हैं, तब स्वाभाविक ही नींद आ जाती है। जो लोग नियत समय पर सोते और उठते हैं, उनकी शारीरिक शक्ति में ठीक से वृद्धि होती है। पाचकाग्नि प्रदीप्त होती है जिससे शरीर की धातुओं का निर्माण उचित ढंग से होता रहता है। उनका मन दिन भर उत्साह से भरा रहता है जिससे वे अपने सभी कार्य तत्परता से कर सकते हैं।
सोने की पद्धतिः
अच्छी नींद के लिए रात्रि का भोजन अल्प तथा सुपाच्य होना चाहिए। सोने से दो घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। भोजन के बाद स्वच्छ, पवित्र तथा विस्तृत स्थान में अच्छे, अविषम एवं घुटनों तक की ऊँचाई वाले शयनासन पर पूर्व या दक्षिण की ओर सिर करके हाथ नाभि के पास रखकर व प्रसन्न मन से ईश्वरचिंतन करते-करते सो जाना चाहिए। पश्चिम या उत्तर की ओर सिर करके सोने से जीवनशक्ति का ह्रास होता है। शयन से पूर्व प्रार्थना करने पर मानसिक शांति मिलती है एवं नसों में शिथिलता उत्पन्न होती है। इससे स्नायविक तथा मानसिक रोगों से बचाव व छुटकारा मिलता है। यह नियम अनिद्रा रोग एवं दुःस्वप्नों का नाश करता है। यथाकाल निद्रा के सेवन से शरीर की पुष्टि होती है तथा बल और उत्साह की प्राप्ति होती है।
निद्राविषयक उपयोगी नियमः
रात्रि 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक गहरी निद्रा लेने मात्र से आधे रोग ठीक हो जाते हैं। कहा भी हैः ‘अर्धरोगहरि निद्रा….‘
स्वस्थ रहने के लिए कम से कम छः घंटे और अधिक से अधिक साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए, इससे कम ज्यादा नहीं। वृद्ध को चार व श्रमिक को छः से साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए।
जब आप शयन करें तब कमरे की खिड़कियाँ खुली हों और रोशनी न हो।
रात्रि के प्रथम प्रहर में सो जाना और ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः 4 बजे नींद से उठ जाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है क्योंकि इस समय में ऋषि-मुनियों के जप-तप एवं शुभ संकल्पों का प्रभाव शांत वातावरण में व्याप्त रहता है। इस समय ध्यान-भजन करने से उनके शुभ संकल्पों का प्रभाव हमारे मनः शरीर में गहरा उतरता है। कम से कम सूर्योदय से पूर्व उठना ही चाहिए। सूर्योदय के बाद तक बिस्तर पर पड़े रहना अपने स्वास्थ्य की कब्र खोदना है।
नींद से उठते ही तुरंत बिस्तर का त्याग नहीं करना चाहिए। पहले दो-चार मिनट बिस्तर में ही बैठकर परमात्मा का ध्यान करना चाहिए कि ‘हे प्रभु ! आप ही सर्वनियंता हैं, आप की ही सत्ता से सब संचालित है। हे भगवान, इष्टदेव, गुरुदेव जो भी कह दो। मैं आज जो भी कार्य करूँगा परमात्मा सर्वव्याप्त हैं, इस भावना से सबका हित ध्यान में रखते हुए करूँगा।’ ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।
निद्रानाश के कारणः
कुछ कारणों से हमें रात्रि में नींद नहीं आती अथवा कभी-कभी थोड़ी बहुत नींद आ भी गयी तो आँख तुरंत खुल जाती है। वात-पित्त की वृद्धि होने पर अथवा फेफड़े, सिर, जठर आदि शरीरांगों से कफ का अंश क्षीण होने के कारण वायु की वृद्धि होने पर अथवा अधिक परिश्रम के कारण थक जाने से अथवा क्रोध, शोक, भय से मन व्यथित होने पर नींद नहीं आती या कम आती है।
निद्रानाश के परिणामः
निद्रानाश से बदनदर्द, सिर में भारीपन, जड़ता, ग्लानि, भ्रम, अन्न का न पचना एवं वात जन्य रोग पैदा होते हैं।
निद्रानाश से बचने के उपायः
तरबूज के बीज की गिरी और सफेद खसखस अलग-अलग पीसकर समभाग मिलाकर रख लें। यह औषधि 3 ग्राम प्रातः सायं लेने से रात में नींद अच्छी आती है और सिरदर्द ठीक होता है। आवश्यकतानुसार 1 से 3 सप्ताह तक लें।
विकल्पः
6 ग्राम खसखस 250 ग्राम पानी में पीसकर कपड़े से छान लें और उसमें 25 ग्राम मिश्री मिलाकर नित्य प्रातः सूर्योदय के बाद या सायं 4 बजे एक बार लें।
3 ग्राम पूदीने की पत्तियाँ (अथवा ढाई ग्राम सूखी पत्तियों का चूर्ण) 200 ग्राम पानी में दो मिनट उबालकर छान लें। गुनगुना रहने पर इस पुदीने की चाय में 2 चम्मच शहद डालकर नित्य रात सोते समय पीने से गहरी और मीठी नींद आती है। आवश्यकतानुसार 3-4 सप्ताह तक लें।
शंखपुष्पी और जटामासी का 1 चम्मच सम्मिश्रित चूर्ण सोने से पहले दूध के साथ लें।
सहायक उपचारः
अपने शारीरिक बल से अधिक परिश्रम न करें। ब्राह्मी, आँवला, भांगरा आदि शीत द्रव्यों से सिद्ध तेल सिर पर लगायें तथा ललाट पर बादाम रोगन की मालिश करें।
‘शुद्धे-शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा।‘ इस मंत्र का जप सोने से पूर्व 10 मिनट या अधिक समय तक करें। इससे अनिद्रा निवृत्त होगी व नींद अच्छी आयेगी।
नींद कम आती हो या देर से आती हो तो सोने से पहले पैरों को हलके गर्म पानी से धोकर अच्छी तरह पोंछ लेना चाहिए।
पैरों के तलवों में सरसों के तेल की मालिश करने से नींद गहरी आती है।
रात्रि को सोने से पहले सरसों का तेल गुनगुना करके उसकी 4-4 बूंदे दोनों कानों में डालकर ऊपर से साफ रूई लगाकर सोने से गहरी नींद आती है।
रात को निद्रा से पूर्व रूई का एक फाहा सरसों के तेल से तर करके नाभि पर रखने से और ऊपर से हलकी पट्टी बाँध लेने से लाभ होता है।
सोते समय पाँव गर्म रखने से नींद अच्छी आती है (विशेषकर सर्दियों में)।
ज्ञानमुद्राः
इस मुद्रा की विस्तृत जानकारी आश्रम से प्रकाशित ‘जीवन विकास’ पुस्तक में दी गयी है। अधिकांशतः दोनों हाथों से और अधिक से अधिक समय अर्थात् चलते फिरते, बिस्तर पर लेटे हुए या कहीं बैठे हुए निरंतर इस मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए। अनिद्रा के पुराने रोगी को भी ज्ञान मुद्रा के दो तीन दिन के अभ्यास से ही ठीक किया जा सकता है।
अनिद्रा के अतिरिक्त स्मरणशक्ति कमजोर होना, क्रोध, पागलपन, अत्यधिक आलस्य, चिड़चिड़ापन आदि मस्तिष्क के सम्पूर्ण विकार दूर करने, एकाग्रता बढ़ाने और स्नायुमंडल को शक्तिशाली बनाने के लिए भी ज्ञानमुद्रा परम उपयोगी है।
दिन में सोना हानिकारकः
रात्रि का जागरण रूक्षताकारक एवं वायुवर्धक होता है। दिन में सोने से कफ बढ़ता है और पाचकाग्नि मंद हो जाती है, जिससे अन्न का पाचन ठीक से नहीं होता। इससे पेट की अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं तथा त्वचा-विकार, मधुमेह, दमा, संधिवात आदि अनेक विकार होने की संभावना होती है। बहुत से व्यक्ति दिन और रात, दोनों काल में खूब सोते हैं। इससे शरीर में शिथिलता आ जाती है। शरीर में सूजन, मलावरोध, आलस्य तथा कार्य में निरुत्साह आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। ग्रीष्म ऋतु के अलावा बाकी के दिनों में दिन में सोना वर्जित है। दिन में एक संध्या के समय शयन आयु को क्षीण करता है।
अतः दिन में सोनेवालो ! सावधान। मंदाग्नि और कफवृद्धि करके कफजनित रोगों को न बुलाओ। रात की नींद ठीक से लो। दिन में सोकर स्वास्थ्य बिगाड़ने की आदत बंद करो-कराओ। नन्हें-मासूमों को, रात्रि में जागने वालों को, कमजोर व बीमारों को और जिनको वैद्य बताते हैं उनको दिन में सोने की आवश्यकता हो तो शक्ति है।
अति निद्रा की चिकित्साः
उपवास अथवा हलके, सुपाच्य एवं अल्प आहार से नींद अधिक नहीं आती। सुबह शाम 10-10 प्राणायाम करना भी हितकारी है। नेत्रों में अंजन लगाने से तथा आधी चुटकी वचा चूर्ण(घोड़ावज) का नस्य लेने से नींद का आवेग कम होता है। इस प्रयोग से मस्तिष्क में कफ और वृद्धि पर जो तमोगुण का आवरण होता है, वह दूर हो जाता है। ‘ॐ नमो नृसिंह निद्रा स्तंभनं कुरु कुरु स्वाहा।‘ इस मंत्र का एक माला जप करें।
अति नींद और सुस्ती आती हो तोः
पढ़ते समय नींद आती हो और सिर दुखता हो तो पान में एक लौंग डालकर चबा लेना चाहिए। इससे सुस्ती और सिरदर्द में कमी होगी तथा नींद अधिक नहीं सतायेगी।
सहायक उपचारः
अति निद्रावालों के लिए वजासन का अभ्यास परमोपयोगी है। यह आसन मन की चंचलता दूर करने में भी सहायक है। जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में नहीं लगता उन्हें इस आसन में बैठकर पढ़ना चाहिए।
स्वास्थ्य पर विचारों का प्रभावः
विचारों की उत्पत्ति में हमारी दिनचर्या, वातावरण, सामाजिक स्थिति आदि विभिन्न तथ्यों का असर पड़ता है। अतः दैनिक जीवन में विचारों का बड़ा ही महत्त्व होता है। कई बार हम केवल अपने दुर्बल विचारों के कारण रोगग्रस्त हो जाते हैं और कई बार साधारण से रोग की स्थिति, भयंकर रोग की कल्पना से अधिक बिगड़ जाती है और कई बार डॉक्टर भी डरा देते हैं। यदि हमारे विचार अच्छे हैं, दृढ़ हैं तो हम स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन करेंगे और साधारण रोग होने पर योग्य विचारों से ही हम उससे मुक्ति पाने में समर्थ हो जायेंगे।
सात्त्विक विचारों की उत्पत्ति में सात्त्विक आहार, सत्शास्त्रों का पठन, महात्माओं के जीवन-चरित्रों का अध्ययन, ईश्वरचिंतन, भगवन्नाम-स्मरण, योगासन और ब्रह्मचर्य पालन बड़ी सहायता करते हैं।
हस्त-चिकित्सा
हस्त-चिकित्सा शरीर के किसी भी अंग की पीड़ा का चमत्कारिक ढंग से निवारण करनेवाली, स्वास्थ्य एवं सौन्दर्यवर्धक चिकित्सा पद्धति है ।
मानसिक पवित्रता और एकाग्रता के साथ मन में निम्नलिखित वेदमंत्र का पाठ करते हुए दोनों हथेलियों को परस्पर रगड़कर गरम करें, तत्पश्चात् उनसे पाँच मिनट तक पीड़ित अंग का बार बार सेंक करें और उसके बाद नेत्र बन्द करके कुछ मिनट तक सो जाइये । इससे गठिया, सिरदर्द तथा अन्य सब प्रकार के दर्द दूर होते हैं । मंत्र इस प्रकार है:
अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तर:।
अयं मे विश्वभेषजोsयं शिवाभिमर्शनम्॥
“मेरी प्रत्येक हथेली भगवान (ऐश्वर्यशाली) है, अच्छा असर करनेवाली है, अधिकाधिक ऐश्वर्यशाली और अत्यंत बरकतवाली है । मेरे हाथ में विश्व के सभी रोगों की समस्त औषधियाँ हैं और मेरे हाथ का स्पर्श कल्याणकारी, सर्व रोगनिवारक तथा सर्व सौन्दर्यसंपादक है ”
आपकी मानसिक पवित्रता तथा एकाग्रता जितनी अधिक होगी, उसी अनुपात में आप इस मंत्र द्वारा हस्त-चिकित्सा में सफल होते चले जायेंगे । अपनी हथेलियों के इस प्रकार के पवित्र प्रयोग से आप न केवल अपने, अपितु अन्य लोगों के रोग भी दूर कर सकते हैं ।
( विस्तृत जानकारी के लिए आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘आरोग्यनिधि-1’ के पृष्ट- 177 पर देखें । )
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वात दर्द मिटाने का उपाय
वातरोग के कई प्रकार हैं । किसी भी प्रकार के वातरोग के लिए यह उपाय आजमाया जा सकता है:
तर्जनी(पहली उँगली) को हाथ के अँगूठे के आखिरी सिरे पर रखो और तीन उँगलियाँ सीधी रखो । फिर बायाँ नथुना बंद करके दायें नथुने से खूब श्वास भरो । जहाँ पर वातरोग का असर हो -घुटने में दर्द हो, कमर में दर्द हो, चाहे कहीं भी दर्द हो, उस अंग को हिलाओ-डुलाओ । भरे हुए श्वास को आधे या पौने मिनट तक रोको, ज्यादा से ज्यादा एक मिनट तक रोको, फिर बायें नथुने से बाहर निकाल दो । ऐसे दस बारह प्राणायाम करो तो दर्द में फायदा होता है । एलोपैथी की दवाइयाँ रोग को दबाती हैं जबकि आसन, प्राणायाम उपवास आदि रोग को जड़ से निकालकर फेंक देते हैं । इन उपायों से जो फायदा होता है वह एलोपैथी के कैप्सूल इंजेक्शन आदि से नहीं होता ।
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थकान व सिरदर्द मिटाने का उपाय
जब आप बहुत थके हुए हों तो जीभ को जरा सा बाहर निकालकर तर्जनी उँगली को अँगूठे से दबायें, फिर दोनों को शून्याकार (0) देकर कुछ देर तक आराम करें । इससे ज्ञानतंतुओं को पोषण मिलता है और थकान मिटती है ।
जिसका सिर बहुत दुखता हो वह भी जीभ को थोड़ा सा बाहर निकालकर, दिन में 3बार 2-2 मिनट तक उक्त मुद्रा करे तो उससे कई प्रकार के सिर दर्द मिट जाते हैं ।
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बुद्धिशक्ति विकासक प्रयोग
सुबह सूर्योदय से पहले स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम करने चाहिए । तुलसी के पत्ते चबाकर रात का रखा एक गिलास पानी पीना चाहिए । इससे बुद्धिशक्ति में गजब की वृद्धि होती है ।
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तनावों से बचने के उपाय
शरीर को अति थकाओ मत ।
“मैं थक गया हूँ ” ऐसा सोचकर मन से भी मत थको । मन को तनाव में न डालो । कभी चिंतित न हों, कभी दु:खी न हों । चिंता आये तो चिंतित न हों वरन् विचार करो कि चिंता आयी है तो मन में आयी है । चिंता नहीं थी तब भी कोई था, चिंता है तब भी कोई है और चिंता आयी है तो जायेगी भी क्योंकि जो आता है वह जाता भी है । जो होगा, देखा जायेगा ।
भावनाओं एवं कल्पनाओं में मत उलझो लेकिन ‘हरि ॐ तत् सत् और सब गपशप’ इस मंत्र की गदा से तनाव वाली कल्पनाओं व भावनाओं को मार भगाओ ।
शारीरिक और मानसिक तनाव दूर करने के लिए सुंदर उपाय है- अजपा गायत्री । शरीर को खूब खींचे, फिर ढीला छोड़ दें । मन ही मन चिन्तन करें कि “मैं स्वस्थ हूँ … शरीर की थकान मिट रही है…” इस प्रकार शारीरिक आराम लेकर फिर श्वासोच्छ्वास की गिनती करें । इससे शारीरिक एवं मानसिक तनाव मिटेंगे ।
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निराशा के क्षणों में
अपने मन में हिम्मत और दृढ़ता का संचार करते हुए अपने आपसे कहो कि “मेरा जन्म परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने के लिए हुआ है, पराजित होने के लिए नहीं । मैं इश्वर का, चैतन्य का सनातन अंश हूँ । जीवन में सदैव सफलता व प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए ही मेरा जन्म हुआ है, असफलता या पराजय के लिए नहीं । मैं अपने मन में दीनता हीनता और पलायनवादिता के विचार कभी नहीं आने दूँगा । किसी भी कीमत पर मैं निराशा के हाथों अपनी शक्तियों का नाश नहीं होने दूँगा ”
दु:खाकार वृत्ति से दु:ख बनता है । वृत्ति बदलने की कला का उपयोग करके दु:खाकार वृत्ति को काट देना चाहिए ।
आज से ही निश्चय कर लो कि “आत्म साक्षात्कार के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ता रहूँगा । नकारात्मक या फरियादात्मक विचार करके दु:ख को बढ़ाऊँगा नहीं, अपितु सुख दु:ख से परे आनंदस्वरुप आत्मा का चिन्तन करुँगा ”
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सदगुण सदाचार
छ: घटे से अधिक सोना, दिन में सोना, काम में सावधानी न रखना, आवश्यक कार्य में विलम्ब करना आदि सब ‘आलस्य’ ही है । इन सबसे हानि ही होती है । अत: सावधान ! मन, वाणी और शरीर के द्वारा न करने योग्य व्यर्थ चेष्टा करना तथा करने योग्य कार्य की अवहेलना करना प्रमाद है । ऐश- आराम, स्वादलोलुपता, फैशन, सिनेमा आदि देखना, क्लबों में जाना आदि सब भोग है । काम, क्रोध, लोभ, मोह, दंभ, दर्प, अभिमान, अहंकार, मद, ईर्ष्या, आदि दुर्गुण हैं । संयम, क्षमा, दया, शांति, समता, सरलता, संतोष, ज्ञान, वैराग्य, निष्कामता आदि सदगुण हैं । यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, व्रत, और सेवा-पूजा करना तथा अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का पालन करना आदि सदाचार हैं ।
शुरुआत में सच्चे आदमी को भले ही थोड़ी कठिनाई दिखे और बेईमान आदमी को भले थोड़ी सुविधा दिखे, लेकिन अंततोगत्वा तो सच्चाई एवं समझदारीवाला ही इस लोक और परलोक में सुखी रह पाता है ।
जिनके जीवन में धर्म का प्रभाव है उनके जीवन में सारे सदगुण आ जाते हैं, उनका जीवन ऊँचा उठ जाता है, दूसरों के लिए उदाहरणस्वरुप बन जाता है ।
आप भी धर्म के अनुकूल आचरण करके अपना जीवन ऊँचा उठा सकते हो । फिर आपका जीवन भी दूसरों के लिए आदर्श बन जायेगा, जिससे प्रेरणा लेकर दूसरे भी अपना जीवन स्तर ऊँचा उठाने को उत्सुक हो जायेंगे ।
अध्यात्म का रास्ता अटपटा जरुर है । थोड़ी बहुत खटपट भी होती है और समझ में भी झटपट नहीं आता लेकिन अगर थोड़ा सा भी समझ में आ जाय, धीरज न छूटे, साहस न टूटे और परमात्मा को पाने का लक्ष्य न छूटे तो प्राप्ति हो ही जाती है ।
इन शास्त्रीय वचनों को बार-बार पढ़ो, विचारो और उन्नति के पथ पर अग्रसर बनो । शाबाश वीर !! शाबाश !! हरि ॐ … ॐ … ॐ …
Tuesday, 26 October 2010
Monday, 25 October 2010
घरेलू नुस्खे से दूर करें पुरुष अपनी समस्याऐं
घरेलू नुस्खे से दूर करें पुरुष अपनी समस्याऐं
शीघ्रपतन दूर करने के उपाय
* दोनों पांव के तलवे पर पानी की धार डालें कम से कम दस मिनट तक दें।
*धूप में सिद्ध किया पीली कांच की बोतल का पानी सुबह शाम दो–दो चम्मच पियें।
*अदरक का रस6ग्राम, सफेद प्याज का रस 10ग्राम, 5ग्राम शहद, गाय का घी 3ग्राम, सबको एक साथ मिलाकर रोजाना चाटें एक मास तक इससे हर तरह की मर्दाना ताकत बढ़ती है।
*अदरक के रस में एक (half boiled egg) मिलाकर खायें यह प्रयोग रात्रि में करें। रोजाना, एक माह तक।
* बादाम, काली मिर्च लें जरूरत अनुसार मिस्री मिलायें, सबको मिलाकर खा जायें ऊपर से एक ग्लास गरम दूध पी जायें।
* सोठ, काली मिर्च, लौंग, जायफल, सूखा करी पत्ता इन सबको 50-50ग्राम लें पाचा कपूर5ग्राम, 10ग्राम केसर लें सबको अलग-अलग पीस मिला लें। अब केसर दूध में पीस लें। अपनी पाचन शक्ति अनुसार मात्रा में कम से कम एक माह तक लें। इससे शीघ्र पतन की शिकायत तो दूर होगी ही साथ आपकी काया भी सुंदर होगी।
*ताल मखाने के बीज 60ग्राम लेकर अदरक के रस में भिगोयें फिर सुखायें। इस तरह तीन बार करें, फिर इसका चूर्ण बनाकर 200 ग्राम शहद में मिलाकर रख लें। इसे सुबह शाम 10-10ग्राम गाय के दूध के साथ लें यह अत्यंत लाभदायक है।
*शतावर का चूरण लें एक तोला, मिस्री मिलें गरम दूध के साथ रोज सेवन करें। शरीर बलवाल होगा। *प्रतिदिन 50ग्राम गुड अवश्य खाये।
*एक चम्मच तुलसी के बीजों का चूरण, दो साबुत पान, 2रत्ती आक के फूल सबकी भस्म बनाकर पीस कें इसे रात में सोते समय एक ग्लास दूध के साथ लें।
*तुलसी के दो पत्ते, एक चम्मच बीज, पान में रखकर चबायें।
*तुलसी के बीज का जड़ का टुकडा बराबर चूसते रहें करीब दो माह तक।
*गाजर के रस में लहसुन की 10बूंद डालकर नित्य पियें सुबह शाम गाय का दूध पियें।
*जामुन की गुठली सूखा कर पीस लें। इसे रोजाना आधा चम्मच खाकर गाजर का रस पियें एक माह तक।*सिंघाडे का हलुआ खाकर ऊपर से गाजर का रस पियें।
*दो तोला धुली उडद की दाल भिगाकर पीस लें। एक तोला घी आधा तोला शहद मिलाकर चाटें ऊपर से एक ग्लास मिस्री मिला दूध पियें। करीब तीन माह तक। अश्व जैसी शक्ति आ जायेगी।
*शिलाजीत की शक्ति महान है इसे दूध के साथ रोजाला सेवन करें।
*शतावर और असगंध का चूरण दूध के साथ रोजाना सें लाभ होगा नपुसंकता दूर करने के उपाय
*तिल के तेल में दो ग्राम आक का तेल मिलाकर पूरे शरीर पर मालिश करें।
*बताशे में 3बूंद आक का तेल डालकर एक माह तक सेवन करें।
*100ग्राम गाजर के हलुआ में दो बूंद आक का दूध मिलाकर खायें।*100ग्राम मूली के बीज पीस लें। इसमें से 5-5गाम चूर्ण रोज दही के साथ चाटें।
*100ग्राम लहसुन घी में भूनकर पीस लें। इसमें से दो चुटकी चूर्ण रोज दही या मट्ठे के साथ लें। *पीपल पर लगने वाला फल छाया में सूखा कर पीस लें। इस चूरण को एक चौथाई चम्मच (250ग्राम) दूध में डालकर पियें।
*चिलगोजे (सूखा मेवा) इसे कम से कम दो माह तक रोज खायें। इसमें मर्दाना ताकत होती है। उसे लंबे समय तक खाने से कोई नुकसान नही है।
*अदरक का रस यौनशक्ति बढ़ाता है। इसे एक चम्मच शहद के साथ रोज लें।
*केले मे पाये जाने वाला पोटेशियम तत्व मानसिक तनाव दूर करता है।
*अधिक मिर्च मसाला,खटाई वीर्य के जीवाणु नष्ट करता है।
*बथुआ हर तरह से खायें फयदेमद है।*शकरकंद भूनकर या उबाल कर खाने से मर्दाना ताकत बढ़ती है।
*छाछ नियमित पियें।*अजवाइन मिस्री बराबर मात्रा में पीसकर रख लें। सुबह शाम आधा चम्मच गरम दूध के साथ लें।
*तरबूज, आलू, सेम, टमाटर, चुकंदर, भिंडी, पत्तागोभी अवश्य खायें। ये सभी यौनशक्ति को बढ़ाते हैं।शारीरिक, मानसिक व यौनशक्ति बढ़ाने के लिये निम्नलिखित चूर्ण का इस्तमाल करेंविधि- 250ग्राम आंवला सूखा कूट कर पीस लें। 250ग्र।पिसी हल्दी मिलाकर देशी घी में भून लें। इसमें समान मात्रा में पिसी मिस्री मिला दें। यह शक्तिशाली चूरण तैयार अब इसे दो चम्मच सुबह-शाम गाय के दूध के साथ लें।
स्वप्नदोष दूर करने के
उपाय * लहसुन की दो कली कुचल कर निगल जायें। थोड़ी देर बाद गाजर का रस पीलें।*आंवले का मुरब्बा रोज खायें ऊपर से गाजर का रस पियें।*पके बेल का गूदा 10ग्राम, भांग 1ग्राम, धनिया10ग्राम व सौफ5ग्राम सबको एक ग्लास गाजर के रस में भिगा दें। सबको घोटकर पी जाये। कुछ दिन लगातार पियें। *तुलसी की जड़ के टुकड़े को पीसकर पानी के साथ पी जायें। अगर जड़ न मिले तो बीज 2 चम्मच शाम के समय लें।*काली तुलसी के पत्ते 10-12 रात में जल के साथ लें। *मुलहटी चूरण आधा चम्मच, आक की छाल का चूरण एक चम्मच दूध के साथ लें। *अदरक रस 2चम्मच, प्याज रस 3चम्मच, शहद 2चम्मच, गाय का घी2चम्मच, सबको मिलाकर चाटें स्वप्न दोष तो ठीक होगा ही साथ मर्दाना ताकत भी बढ़ती है।*रात को एक लीटर पानी में त्रिफला चूर्ण भिगा दें सुबह मथकर महीन कपड़े से छानकर पी जायें।*सुबह नहाते समय पेट, पीठ, पैर के पंजे पर पानी की धार डालें।*रात को सोते समय हाथ पैर को धोकर सोयें।*नीम की पत्तियाँ नित्य चबाकर खाते रहने से स्वप्नदोष जड़ से गायब हो जाएगा।
सिर व स्नायु संस्थान के रोग
सिरदर्द
सिरदर्द में गोदन्ती भस्म 450 मि. ग्राम, 1 ग्राम मिश्री एवं 10 ग्राम गाय का घी लेकर सबको मिलाएं, यह मात्रा दिन में तीन बार लेने से लाभ होता है। शूलादिवज्र रस की 1-1 गोली सुबह-शाम मिश्री के साथ लेने से सिरदर्द में लाभ होता है। त्रिफला चूर्ण 500 मि. ग्राम को 1 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर रात को सोने से पहले लेने से आराम मिलता है। षड्बिन्दु तेल 5-5 बूंदे नाक में डालने से पुराने सिरदर्द में लाभ होता है। कूठ और अरण्ड की जड़ को पीस कर लेप करने से सिरदर्द में आराम मिलता है। त्रिकटु, पुष्करमूल, रास्रा और असगंध के 25 ग्राम चूर्ण का 2 कप पानी में काढ़ा बनाकर नाक में 2-2 बूंद डालने से सिरदर्द में आराम मिलता है। महालक्ष्मी विलास की 1-1 गोली सुबह-शाम लेने से सिरदर्द में लाभ होता है। दालचीनी को पानी में खूब बारीक पीसकर लेप बनाकर सिर पर लगाने से सिरदर्द में फायदा होता है।
आधासीसी (आधे सिर का दर्द)
मदार या आक के बड़े पत्तों के बीच में पाये जाने वाले दो छोटे-छोटे पत्तों के जोड़े को सूर्योदय से पहले तोड़े और गुड़ में लपेटकर सूर्यादय से पहले ही निगल लें। तीन दिन लगातार यह प्रयोग करने से लाभ होगा।चेतावनी-यदि इस प्रयोग को सूर्य उगने से पहले न किया जाये, तो कोई फायदा न होगा। नित्य भोजन के समय दो चम्मच शुद्ध शहद लेने से आधा सीसी का दर्द समाप्त हो जाता है। दर्द के समय नाक के नथुनों में 1-1 बूंद शहद डालकर ऊपर को सूंतने से आराम मिलता है। दस ग्राम काली मिर्च चबाकर ऊपर से 20-25 ग्राम देसी घी पीने से आधा सीसी का दर्द दूर हो जाता है। चकबड़ के बीच कांजी में पीसकर सिर पर लेप करने से आराम मिलता है।
नजला, जुकाम पुराना
भुने चने का छिलका उतरा हुआ आटा 20 ग्राम, मलाई या रबड़ी 20 ग्राम, थोड़े शहद में मिलाकर 4 बूंद अमृतधारा असली मिलाकर कुछ दिन रात को खाने से नये पुराने नजले को बहुत लाभ करता है।गुलबनफशा 4 ग्राम, मुलहठी 4 ग्राम, उन्नाव 5 दाने, मुनक्का 4 दाने, (उस्तखद्) दूस 2 ग्राम। सबको एक गिलास पानी में पकाओ। जब पानी 200 ग्राम रह जाए तो थोडी खांड मिलाकर रात को पियें। परहेज खटाई का करें।
साइनस का सिरदर्द
इलाज-11 तुलसी की पत्तियां, 11 काली मिर्च, 11 मिश्री के टुकड़े और 2 ग्राम अदरक को 250 ग्राम पानी में उबालें। जब उबलकर आधा रह जाये, तो छानकर सुबह खाली पेट गर्मागर्म पी लें। और करीब दो घंटे तक नहायें नहीं। यह प्रयोग तीन दिन तक करें।
सिरदर्द का घरेलू इलाज
सोंठ चाय-आधा चम्मच सोठ का पाउडर 1 कप पानी में मिलाकर पी जाएं, इससे सिरदर्द में तुरंत फायदा होता है, खासतौर से सिरदर्द अगर हाजमे की गड़बड़ी के कारण हुआ हो।कैमोमिल (बबूने का फल) और कैटनिप की चाय-ये घबराहट के कारण होनेवाले सिरदर्द में बहुत आराम पहुंचाती हैं। इनका प्रभाव हल्का और शांति पहुंचाने वाला होता है। ये दोनों ही नींद लाती हैं और एलर्जी के कारण होने वाले सिरदर्द में भी फायदा करती है। इन दोनों में से किसी भी एक से बनी दिन में तीन कप चाय पीने से दर्द और मतली में आराम पहुंचता है।पिपरमिंट चाय-पिपरमिट में ऐसे तेल पाये जाते हैं, जो मांसपेशियों की जकड़न को दूर करके सिरदर्द से छुटकारा दिलाते हैं, अत: सिरदर्द शुरू होते ही एक कप पी लें।फीवरफ्यू-इससे रक्त की शिराओं को आराम पहुंचता है, जिससे माइग्रेन (आधा सीसी) और बुखार व संधिवात के कारण हुए सिरदर्द में राहत मिलती है।वलेरियन और पैन फ्लावर-इससे मांशपेशियों की जकड़न दूर होती है और ये कुछ हद तक सैडेटिव (शांतिकारक) भी होते हैं।सफेद विलो (पादप)-इसकी छाल में एस्पीरिन जैसी दर्दनाशक शक्ति होती है।
आधा शीशी पर परिक्षित योग
सिखहैरा के पत्ता और डंडी को कूट रस निकाल दो बूंद जिस ओर पीड़ा हो उससे दूसरे कान में 2 बूंद दोनों नथुनों में नरई से सूतें छींक आकर पीड़ा समाप्त होगी।गर्मी की वजह से सिर दर्द हो जाए तो लौकी के बीज निकालकर खूब महीन करके माथे पर लेप करें।पीपलामूल का चूर्ण 1-1 माशे आधे घण्टे के फासले से जल के साथ तीन बार देने से सिर दर्द जाता रहता है।
मिरगी
रोगी को अचानक बेहोशी आ जाती है। उसके हाथ-पैर कांपते हैं। मुंह से झाग आते हैं। शरीर में कड़ापन आ जाता है और मस्तिष्क में संतुलन का अभाव हो जाता है। अकरकरा 100 ग्राम, पुराना सिरका 100 ग्राम शहद। पहले अकरकरा को सिरके में खूब घोंटे बाद में शहद मिला दें। 5 ग्राम दवा प्रतिदिन प्रात: काल चटावें। मिरगी का रोग दूर होगा। बच का चूर्ण एक ग्राम प्रतिदिन शहद के साथ चटावें। ऊपर से दूध पिलायें। बहुत पुरानी और घोर मिरगी भी दूर हो जाती है। बेहोश रोगी को लहसुन कूटकर सुंघाने से होश आ जाता है। प्रतिदिन 3-5 काली लहसुन दूध में उबालकर पिलाने से मिरगी दूर हो जाती है।
पागलपन
यह एक मानसिक रोग है। चीखना-चिल्लाना, कपड़े फाड़ना, बकवास करना, खुद-ब-खुद बातें करना, हंसना अथवा रोना, मारने अथवा काटने को दौ़ड़ना अपने बाल आदि नोंचना ही इसके प्रमुख लक्षण है।यह रोग कई प्रकार की विकृतियों के कारण हो सकता है-जैसे-अत्यधिक प्रसन्न होना, कर्जदार अथवा दिवालिया हो जाना, अत्यधिक चिन्तित रहना, भय, शोक, मोह, क्रोध, हर्ष मैथुन में असफलता, काम-वासना की अतृप्ति अथवा मादक पदार्थों का अत्यधिक सेवन करना। अत: पागलपन के मूल कारण को जानकर ही औषधियों का प्रयोग करना चाहिए। खिरेंटी (सफेद फूलों वाली) का चूर्ण साढ़े तीन तोला 10 ग्राम पुनर्नबा की जड़ का चूर्ण इन दोनों को क्षीर-पारू की विधि से दूध में पकाकर तथा ठण्डा कर नित्य प्रात: काल पीने से घोर उन्माद भी नष्ट हो जाता है। पीपल, दारूहल्दी, मंजीठ, सरसों, सिरस के बीज, हींग, सोंठ, काली मिर्च, इन सबको 10-10 ग्राम लेकर कूट-पीसकर छान लें। इस चूर्ण को बकरी के मूत्र में पीसकर नस्य देने तथा आंखों में आजमाने से उन्माद, ग्रह तथा मिर्गी रोग नष्ट होते हैं। सरसों के तेल की नस्य देने तथा सरसों का तेल आंखों में आंजने से पागलपन का रोग दूर होता है। ऐसे रोगी के सारे शरीर पर सरसों का तेल लगाकर और उसे बांधकर धूप में चित्त सुला देने से भी इस रोग से छुटकारा मिल जाता है। ब्राह्मी के पत्तों का स्वरस 40 ग्राम, 12 रत्ती कूट का चूर्ण तथा 48 रत्ती शहद इन सबको मिलाकर पीने या पिलाने से भी पागलपन के लक्षण जाते रहते हैं। 20 ग्राम पेठे के बीज़ों की गिरी रात के समय किसी मिट्टी के बर्तन में 50 ग्राम पानी में डालकर भिगों दें। सवेरे उसे सिल पर पीसकर छान लें तथा 6 माशा शहद मिलाकर पिलायें। 15 दिन तक नियमित इसका सेवन कराने से पागलपन (यदि वह वास्तव में हो और रोगी ढोंग न कर रहा हो तो) दूर हो जाता है। तगर, बच तथा कूट सिरस के बीज, मुलहठी हींग लहसुन का रस इन्हें एक बार (प्रत्येक 10 ग्राम) में लेकर बारीक पीस कर छान लें। फिर इन्हें बकरी के मूत्र में पीसकर, नस्य देने तथा आंखों में डालने से पागलपन का रोग दूर हो जाता है।
चक्करों का आना
मालकांगनी के बीज-पहले दिन 1 दूसरे दिन 2 और तीसरे दिन 3 इसी प्रकार 21 दिनों तक 21 बीजों तक पहुंच जायें। फिर इसी प्रकार घटाते हुए। आखिर तक पहुंच जायें। उपरोक्त बीज निगलकर ऊपर से दूध पीयें। इससे दिमाग की कमज़ोरी के कारण आने वाले चक्कर दूर हो जाते हैं। मालकांगनी का चूर्ण 3 ग्राम प्रातः सायं दूध से लेने से (एक बड़ी चाय की चम्मच) दिमाग की कमज़ोरी दूर होती है। 50 ग्राम शंखपुष्पी और 50 ग्राम मिश्री को पीस कर चूर्ण बना लें। 6 ग्राम चूर्ण प्रातः काल गाय के दूध के साथ खाने से चक्करों का आना बन्द हो जाता है। बच का 4 ग्राम चूर्ण खाकर ऊपर से दूध पीने से दिमाग को शक्ति मिलती है। 5 से 10 बूंद तक मालकांगनी का तेल मक्खन या मलाई में डालकर खाने से दिमाग की कमजोरी दूर होकर चक्करों का आना बन्द हो जाता है। शंरवाहूली बूटी 7 ग्राम और 7 दाने काली मिर्च को ठण्डाई की तरह घोटकर मिश्री मिलाकर पीने से चक्करों का आना बन्द हो जाता है। सौंफ 6 ग्राम 7 बादाम की गिरी और 6 ग्राम मिश्री का चूर्ण बनाकर रात को दूध के साथ सेवन करने से दिमाग की कमजोरी दूर होकर चक्कर आने बन्द हो जाते हैं। पूरे सवा महीने इसका सेवन करें।
फालिज
इसमें शरीर के अंग निष्क्रिय और चेतना शून्य हो जाते हैं। शरीर का हिलना-डुलना मुश्किल हो जाता है। शरीर के जिस अंग पर फालिज गिरी हो, उस पर खजूर का गूदा मलने से फालिज दूर होती है। हरताल वर्की 20 ग्राम, जायफल 40 ग्राम, पीपली 40 ग्राम, सबको कूट-पीसकर कपड़छन कर लें। आधा-आधा ग्राम सुबह-शाम शहद में मिलाकर लें। ऊपर से गर्म दूध पिएं। बादी की चीजों का परहेज रखें। वीर बहूटी के पांव तथा सिर निकालकर जो अंग बचें उसे पान में रखकर कुछ दिन तक लगातार सेवन करने से फालिज रोग दूर होता है। काली मिर्च 60 ग्राम लेकर पीस लें। फिर इसे 250 ग्राम तेल मे मिलाकर कुछ देर पकायें। इस तेल का पतला-पतला लेप करने से फालिज दूर होता है। इसे उसी समय ताजा बनाकर गुनगुना लगाया जाता है।
लकवा
इस बीमारी में रोगी का आधा मुंह टेढ़ा हो जाता है। गर्दन टेढ़ी हो जाती है, मुंह से आवाज नहीं निकल पाती है। आँख, नाक, भौंह व गाल टेढ़े पड़ जाते हैं, फड़कते हैं और इनमें वेदना होती है। मुंह से लार गिरा करती है। राई, अकरकरा, शहद तीनों 6-6 ग्राम लें। राई और अकरकरा को कूट-पीसकर कपड़छन कर लें, और शहद में मिला लें। इसे दिन में तीन-चार बार जीभ पर मलते रहें। लकवा रोग दूर होगा। 25 ग्राम छिला हुआ लहसुन पीसकर 200 ग्राम दूध में उबालें, खीर की तरह गाढ़ा होने पर उतारकर ठंडा होने पर खावें। सौंठ और उड़द उबालकर इसका पानी पीने से लकवा ठीक होता है। यह परीक्षित प्रयोग है। 6 ग्राम कपास की जड़ का चूर्ण, 6 ग्राम शहद में मिलाकर सुहब शाम लेने से लाभ होता है। लहसुन की 5-6 काली पीसकर उसे 15 ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम लेने से लकवा में आराम मिलता है।
दिमागी ताकत
बबूल का गोंद आधा किलो शुद्ध घी में तल कर फूले निकाल लें और ठण्डे करके बारीक पीस लें। इसके बराबर मात्रा में पिसी मिश्री इसमें मिला लें। बीज निकाली हुई मुनक्का 250 ग्राम और बादाम की छिली हुई गिरी 100 ग्राम-दोनों को खल बट्टे (इमाम दस्ते) में खूब कूट-पीसकर इसमें मिला लें। बस योग तैयार है।सुबह नाश्ते के रूप में इसे दो चम्मच (बड़े) याने लगभग 20-25 ग्राम मात्रा में खूब चबा-चबा कर खाएं। साथ में एक गिलास मीठा दूध घूंट-घूंट करके पीते रहे। इसके बाद जब खूब अच्छी भूख लगे तभी भोजन करें। यह योग शरीर के लिए तो पौष्टिक है ही, साथ ही दिमागी ताकत और तरावट के लिए भी बहुत गुणकारी है। छात्र-छात्राओं को यह नुस्खा अवश्य सेवन करना चाहिए।
बादाम
यह बौद्धिक ऊर्जा बढ़ाने वाला, दीर्घायु बनाने वाला है।
मीठे बादाम तेल के सेवन से माँसपेशियों में दर्द जैसी तकलीफ से तत्काल आराम मिलता है।
बादाम तेल का प्रयोग रंगत में निखार लाता है और बेजान त्वचा को रौनक प्रदान करता है।
त्वचा की खोई नमी लौटाने में भी बादाम तेल सर्वोत्तम माना गया है।
शुद्ध बादाम तेल तनाव को दूर करता है। दृष्टि पैनी करता है और स्नायु के दर्द में भी राहत दिलाता है। विटामिन डी से भरपूर बादाम तेल बच्चों की हड्डियों के विकास में भी योगदान करता है।
बादाम तेल से रूसी दूर होती है और बालों की साज-सँभाल में भी यह कारगर है। इसमें मौजूद विटामिन तथा खनिज पदार्थ बालों को चमकदार और सेहतमंद बनाते हैं।
बादाम तेल का इस्तेमाल बाहर से किया जाए या फिर इसका सेवन किया जाए, यह हर लिहाज से उपचारी और उपयोगी साबित होता है।
हर रोज रात को 250 मिग्रा गुनगुने दूध में 5-10 मिली बादाम तेल मिलाकर सेवन करना लाभदायक होता है।
त्वचा को नरम, मुलायम बनाने के लिए भी आप इसे लगा सकते हैं। नहाने से 2-3 घंटे पहले इसे लगाना आदर्श रहता है। बादाम तेल की मालिश न सिर्फ बालों के लिए अच्छी होती है, बल्कि मस्तिष्क के विकास में भी फायदेमंद होती है।
हफ्ते में एक बार बादाम तेल की मालिश गुणकारी है।
श्वित्र (धवल रोग) :हीन भावना प्रदायक सफेद दाग
श्वित्र रोग के उपचार में बाकुची नामक औषधि प्रमुख है। इसका सेवन खाने और बाहरी लेप दोनों तरह से किया जा सकता है जो लाभकारी है। बाकुची तेल का लेप कर सुबह या शाम को सूर्य की किरणों को त्वचा पर १० मिनट तक पड़ने दें। इसके फलस्वरूप त्वचा पर फोडे+ हो जाते हैं। उन फोड़ों को कांटे से भेद कर सफेद त्वचा निकाल देनी चाहिए। घाव पर नीम का तेल लगाने से त्वचा का प्राकृतिक वर्ण उभर आता है। यह उपचार चिकित्सक की देख रेख में करें।
गूलर से बना ÷उदंबर अवलेह÷ एक चम्मच की मात्रा मे प्रातः एक बार रोगी को खिलाना चाहिए। इससे भी श्वित्र रोग में सुधार होता है और सफेद दाग धीरे-धीरे मिट जाते हैं।
अंजीर के पत्तों का रस या दूध लगाने से भी शरीर के सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
नीम के पत्ते और हरा या सूखा आंवला प्रातः सूर्य उदय के पूर्व, जल में पीस कर पीने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
खैरसार और आंवले के साथ बाकुची के बीजों का चूर्ण मिला कर सेवन करने से सफेद दाग मिट जाते हैं।
करंज के बीज, हल्दी, हरड़ और राई को बराबर मात्रा में पीस कर लेप करें। सफेद दाग दूर होंगे।
कमेर, अडूसे की पत्ती, करंज, नीम और क्षतिवन की छाल बराबर मात्रा में तथा दस ग्राम कत्था पांच किलो पानी में उबालें। इस पानी को छान कर दिन में एक गिलास पीने से सफेद दाग दूर होते हैं।
मिलावा त्वचा रोगों की एक बहु उपयोगी औषधि है, जिसके सेवन से श्वित्र रोग और कफ-वात से उत्पन्न सभी रोगों में आराम मिलता है। इस औषधि का उपयोग अच्छे चिकित्सक की देख रेख में करना उचित होगा।
तंबाकूू के बीजों का तेल लगाने से सफेद दाग दूर होते हैं।
२५ ग्राम महातिक्त सुबह-शाम इस्तेमाल करने से श्वित्र रोग दूर होता है।
उपर्युक्त सभी उपचारों में परहेज की आवश्यकता है। भोजन में तेज मसाले और तामसिक आहार न लें और हरी सब्जियों का प्रयोग करें। तली तथा जली हुई चीजें न खाएं। उबला और सादा भोजन लाभकारी होता है।
मिरगी घरेलू उपचार
तिलों के साथ लहसन खिलाएं। इससे वात का मिरगी रोग धीरे-धीरे जाता रहता है।
दूध के साथ शतावरी खाने से साधारण पित्त का मिरगी रोग दूर होता है।
शहद में ब्राह्मी का रस मिला कर लेने से कफ का मिरगी रोग ठीक हो जाता है।
राई और सरसों को गो मूत्र में पीस कर शरीर पर लेप करें। इससे हर प्रकार की मिरगी में लाभ मिलता है।
मीठे अनार के रस में मिस्री मिला कर पिलाने से बेहोशी दूर होती है।
नींबू के साथ हींग चूसने से मिरगी का दौरा नहीं पड़ता।
अकरवारा को सिरके मे मिला कर शहद के साथ प्रतिदिन प्रातः काल चाटने से मिरगी दूर होती है।
लहसुन की कलियों को दूध में उबाल कर पीने से पुरानी मिरगी भी दूर हो जाती है।
लहसुन कूट कर सुंघाने से मिरगी के दौरे की बेहोशी दूर होती है।
वच को बारीक पीस कर ब्राह्मी अथवा शंखाहुली के रस, या पुराने गुड़ के साथ लें, तो मिरगी रोग में आराम मिलता है।
पीपल, चित्रक, पीपरामूल, त्रिफला, चव्य, सौंठ वायविडंग, सेंधा नमक, अजवायन, धनिया, सफेद जीरा, सभी को बराबर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें और सुबह-शाम पानी के साथ लेने से मिरगी रोग में लाभ होता है।
सावधानियां
मिरगी के रोगी को प्रायः सभी प्रकार के नशों को त्याग देना चाहिए। उसे चाय-काफी, उत्तेजक द्रव्य, मांसाहारी भोजन से बिलकुल दूर रहना चाहिए और सोने से दो घंटे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए। विवाहित स्त्री-पुरुषों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और अविवाहित स्त्री-पुरुष कृत्रिम मैथुन से बचें। उन्हें रोग पैदा करने वाले सभी मूल कारणों से बचना चाहिए, जैसे कब्ज, थकान, तनाव और मनोविकार।
लौंग : औषधियुक्त मसाला
लौंग एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण औषधि है। इसका उपयोग खाने के मसालों में भी किया जाता है। लौंग के पेड़ बहुत लुभावने होते हैं, जो भीनी-भीनी सुगंध छोड़ते रहते हैं। पेड़ पर लगे फूलों की फलियां ही लौंग होती है, जो गुणकारी घरेलू औषधि के साथ-साथ अत्यंत लाभकारी भी है। लौंग पाचक, कफ-पित्त नाशक होती है। भोजन में इसका उपयोग पाचन शक्ति को बढ़ाता है और खाने में रुचि लाता है, भूख भी बढ़ाता है। अन्य भी कई रोगों में इसका उपयोग लाभकारी है।
दंत रोग पायरिया : लौंग को पीस कर दांतों में लगाने से रोग दूर होता है। इसी लिए इसका उपयोग कई दंत मंजनों में किया जाता है। दांतों का हिलना, दांत दर्द, मसूड़ों का कमजोर होना, इन सभी में लौंग एक विशेष औषधि है।
खांसी : सूखी या कफ वाली खांसी में लौंग को गर्म कर के, मुंह में रख कर चूसने से खांसी शांत होती है और गला भी साफ रहता है।
मलेरिया : लौंग और चिरौता को पानी में देर तक पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए, तो इस प्रकार बने काढ़े को मलेरिया के रोगी को पिलाएं, तो फौरन आराम मिलता है।
पेट का अफरा : जिन लोगों को भोजन के उपरांत अफरा होता है, वे भोजन के बाद लौंग मुंह में रख कर चूसें, या भोजन में लौंग का उपयोग करें, तो अफरा दूर होगा।
श्वास रोग : प्रतिदिन सोते समय लौंग को भून कर खाने से श्वास रोग, दमा आदि दूर होते हैं। इससे बलगम खत्म हो जाता है, श्वास की शिकायत मिटती है, नजला-जुकाम भी दूर रहता है।
मूत्र विकार : लौंग रक्त के श्वेत कणों को बढ़ाता है। श्वेत कण ही विभिन्न रोगों के जीवाणुओं को नष्ट करते हैं। इसलिए इसके सेवन से मूत्र संबंधी विकार दूर होते हैं।
बहरेपन के उपाय :
एक चुटकी असली हींग, स्त्री के दूध में घिस कर, कान में डालने से बहरापन दूर होता है।
आक के पीले पत्ते, जिनमें छेद न हो, आग पर गरम कर के, उन्हें मसल कर रस निकालें और इस रस को कान में दो-दो बूंद डालने से बहरेपन और कर्णस्राव में भी आराम मिलता है।
मूली का रस, शहद, सरसों का तेल, बराबर मात्रा में मिला कर, दो-तीन बूंद कान में सुबह-शाम डालने से बहरेपन में आराम आता है।
कर्णपीड़ा के उपाय :
तुलसी के पत्तों का रस गुनगुना कर दो-दो बूंद प्रातः-सायं डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है और बहरापन भी ठीक होता है।
अदरक के रस में नमक एवं शहद मिला कर, गुनगुना कर, कानों में डालने से कान के दर्द में आराम आता है।
प्याज का गुनगुना रस कान में डालने से कान के दर्द में आराम मिलता है। इससे बहरेपन एवं कर्णस्राव में भी लाभ होता है।
कर्णस्राव (कान बहने) के उपाय :
कान को साफ कर दो-दो बूंद स्पिरिट तीन चार दिन कान में डालने से कान का बहना ठीक होता है।
सरसों का तेल एवं रतनजोत १०ः१ अनुपात में मिला कर पका कर कान में डालने से कर्णस्राव में आराम होता है। यह कान के दर्द एवं बहरेपन में भी लाभकारी है।
स्त्री के दूध में रसौत एवं शहद मिला कर कान में डालने से कर्णस्राव स्थाई रूप से रुक जाता है।
दो-दो बूंद चूने के पानी को कान में डालने से बच्चों के कर्णस्राव में आराम मिलता है।
चुकंदर
चुकंदर बहुत ही उपयोगी, रस से भरी, मीठे जड़ की सब्जी है, जिसमें से लाल-गुलाबी रंग का रस निकलता है। इसमें प्रोटीन, वसा, खनिज, रेशे, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, विटामीन ÷ए', ÷बी' और ÷सी' कुछ मात्रा में पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त इसमें सोडियम, कैल्शियम, सल्फर, आयोडीन और तांबा भी हैं। यह खाने में मीठी और कसैली है। इसका उपयोग अक्सर सलाद में होता है। कुछ लोग इसे उबाल कर खाते हैं।
चुकंदर में रोग निवारक औषधीय गुण भी उपलब्ध हैं। इसके सेवन से पित्ताशय, गुर्दे और मूत्राशय की सफाई होती है। यह रक्तवर्द्धक और शक्तिदायक भी है।
विभिन्न रोगों में चुकंदर से लाभ :
पथरी : चुकंदर का रस या सूप पीने से पथरी गल कर मूत्र के रास्ते निकल जाती है। दिन मे चार-पांच बार पीने से पित्ताशय और गुर्दे की पथरी एवं सूजन में लाभ मिलता है।
बवासीर : चुकंदर के नियमित सेवन से पेट ठीक रहता है। पाचन तंत्र सुचारु रूप से काम करता है और कब्ज और बवासीर की शिकायतों को दूर करता है। इसलिए रोज अगर सोने से पहले आधा गिलास रस पी लिया जाए, तो बवासीर में लाभकारी है।
रक्त की कमी और विकार : इसे गाजर के रस के साथ मिला कर पीने से रक्त की कमी मिटती है और रक्त विकार ठीक होता है। रोजाना दोपहर के वक्त एक गिलास लेने से रक्त के लाल कणों की संख्या बढ़ती है और रक्तचाप और हृदय रोग में लाभ होता है।
त्वचा विकार : चुकंदर का सूप बना कर पीने से त्वचा की गांठ, कील, मुहांसे में लाभ होता है और त्वचा लाल और निरोगी हो जाती है।
अन्य रोग : जोड़ों का दर्द, मासिक धर्म में अनियमितता, श्वेत प्रदर, जननांगो के रोग, पीलिया, जी मिचलाना और उल्टी आना- इन सभी रोगों में चुकंदर का रस गाजर और नींबू के रस में मिला कर लेने से लाभ मिलता है।
शहद के साथ चुकंदर का रस रोजाना खाली पेट लेने से पेट का अल्सर ठीक हो जाता है।
चुकंदर के पत्तों को पीस कर सिर पर लेप करने से बालों का झड़ना रुक जाता है। इनके अलावा इसे सलाद, अचार, चटनी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
विभिन्न रोगों के लिए लाभकारी नारियल :
त्वचा रोग : नारियल के तेल में नींबू का रस मिला कर मालिश करने से त्वचा की खुजली दूर होती है और त्वचा स्वस्थ एवं सुंदर बनती है।
पाचन शक्ति : कच्चे नारियल का गूदा, पाचन विकारों को दूर कर, पाचन शक्ति बढ़ाता है। यह कब्ज, पेट का अल्सर, दस्त, बवासीर में लाभदायक है।
पेट के कीड़े : नारियल का पानी पेट के कीड़ों को आसानी से निकाल देता है।
अम्लता : कच्चा या सूखा नारियल खाने से पेट की अम्लता कम होती है।
सूखी खांसी : पोस्त के बीजों में नारियल का दूध मिला कर, एक चम्मच शहद के साथ, रात को सोने से पहले खाने से सूखी खांसी में आराम होता है।
मूत्र की जलन : नारियल का गूदा और पानी मूत्र के विकार को दूर कर जलन को मिटाता है।
चेहरे की सुंदरता : चेहरे पर नारियल का पानी मलने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है और रंग साफ होता है।
सिर दर्द : मिस्री के साथ नारियल खाने से सिर दर्द में आराम मिलता है। सिर में इसके तेल की मालिश भी लाभदायक है।
बाल : नारियल के तेल को बालों में लगाने से बाल घने और काले होते हैं।
स्मरण शक्ति : नारियल का सेवन दिमाग की कमजोरी को दूर कर स्मरण शक्ति बढ़ाता है।
सावधानी : नारियल के अधिक सेवन से मोटापा बढ़ सकता है।
हिस्टीरिया : मनोरोग का प्रकोप
सर्वप्रथम एरंड तेल में भुनी हुई छोटी काली हरड़ का चूर्ण ५ ग्राम प्रतिदिन लगातार दे कर उसका उदर शोधन तथा वायु का शमन करें।
सरसों, हींग, बालवच, करजबीज, देवदाख मंजीज, त्रिफला, श्वेत अपराजिता मालकंगुनी, दालचीनी, त्रिकटु, प्रियंगु शिरीष के बीज, हल्दी और दारु हल्दी को बराबर-बराबर ले कर, गाय या बकरी के मूत्र में पीस कर, गोलियां बना कर, छाया में सुखा लें। इसका उपयोग पीने, खाने, या लेप में किया जाता है। इसके सेवन से हिस्टीरिया रोग शांत होता है।
लहसुन को छील कर, चार गुना पानी और चार गुना दूध में मिला कर, धीमी आग पर पकाएं। आधा दूध रह जाने पर छान कर रोगी को थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहें।
ब्रह्मी, जटामांसी शंखपुष्पी, असगंध और बच को समान मात्रा में पीस कर, चूर्ण बना कर, एक छोटा चम्मच दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करें। इसके साथ ही सारिस्वतारिष्ट दो चम्मच, दिन में दो बार, पानी मिला कर सेवन करें।
ब्राह्मी वटी और अमर सुंदरी वटी की एक-एक गोली मिला कर सुबह तथा रात में सोते समय दूध के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
जो रोगी बालवच चूर्ण को शहद मिला कर लगातार सवा माह तक खाएं और भोजन में केवल दूध एवं शाश का सेवन करे, उसका हिस्टीरिया शांत हो जाता है।
अगर रोगी कुंवारी लड़की है, तो उसकी जल्द शादी करवा देनी चाहिए। रोग अपने आप दूर हो जाएगा।
श्वेत प्रदर के घरेलू उपचारः
सिंघाड़े के आटे के हलुवे का सेवन इस रोग में हितकारी है।
गूलर के सूखे फल पीस कर, उसमें मिस्री और शहद मिला कर खाएं।
मुलहठी, मिस्री, जीरा, अशोक छाल क्रमश १, २, ६ के अनुपात में पीस कर, दिन में तीन बार, ४ से ६ मास सेवन करने से लाभ होता है।
सफेद मूसली या ईसबगोल, शर्बत के साथ, दिन में दो बार लें।
सिंघाड़ा, गोखरू, बड़ी इलायची, बबूल की गोंद, समेल का गोंद और शक्कर, समान मात्रा में मिला कर, सुबह-शाम सेवन करें।
गोंद को शुद्ध घी में तल कर, शक्कर की चाशनी में डाल कर, खाने से लाभ होता है।
पक्के टमाटर का सूप पीने तथा आंवले का मुरब्बा खाने से भी लाभ होता है।
तुलसी के पत्तों का रस, बराबर की मात्रा में शहद में मिला कर, सुबह-शाम चाटने से विशेष लाभ होता है।
आंवले का चूर्ण शहद के साथ चाटने से आराम मिलता है।
शिलाजीत एक मास दूध के साथ सेवन करें।
घुटनों का दर्द
घुटनों का दर्द
सवेरे मैथी दाना के बारीक चुर्ण की एक चम्मच की मात्रा से पानी के साथ फंक्की लगाने से घुटनों का दर्द समाप्त होता है। विशेषकर बुढ़ापे में घुटने नहीं दुखते।
या सवेरे भूखे पेट तीन चार अखरोट की गिरियां निकालकर कुछ दिन खाने मात्र से ही घुटनों का दर्द समाप्त हो जाता है।
या नारियल की गिरी अक्सर खाते रहने से घुटनों का दर्द होने की संभावना नहीं रहती।
काली खाँसी
काली खाँसी
भुनी हुई फिटकरी और चीनी (एक रत्ती) दोनों को मिलाकर दिन में दो बार खाएं। पांच दिन में काली खांसी ठीक हो जाती है। बड़ो को दोगुनी मात्रा दें। यदि बिना पानी के न ले सके तो एक दो घूंट गर्म पानी ऊपर से पी लें।
या दही दो चम्मच, चीनी एक चम्मच, काली मिर्च का चूर्ण छः ग्राम मिलाकर चटाने से बच्चों की काली खाँसी और वृद्धों की सूखी खांसी में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
क्रोध भगाएँ
दो पके मीठे सेब बिना छीले प्रातः खाली पेट चबा-चबाकर खाने से गुस्सा शान्त होता है। पन्द्रह दिन लगातार खायें। थाली बर्तन फैंकने वाला और पत्नि और बच्चों को मारने पीटने वाला क्रोधी भी क्रोध से मुक्ति पा सकेगा।
जिन व्यक्तियों के मस्तिष्क दुर्बल हो गये हो और जिन विद्यार्थियों को पाठ याद नहीं रहता हो तो इसके सेवन से थोड़े ही दिनों में दिमाग की कमजोरी दूर होती है और स्मरण शक्ति बढ़ जाती है। साथ ही दुर्बल मस्तिष्क के कारण सर्दी-जुकाम बना रहता हो, वह भी मिट जाता है।
कहावत है - "एक सेब रोज खाइए, वैद्य डाक्टर से छुटकारा पाइए।"
या आंवले का मुरब्बा एक नग प्रतिदिन प्रातः काल खायें और शाम को गुलकंद एक चम्मच खाकर ऊपर से दुध पी लें। बहुत क्रोध आना बन्द होगा।
पेचिश (नई या पुरानी)
स्वच्छ सौंफ ३०० ग्राम और मिश्री ३०० ग्राम लें। सौंफ के दो बराबर हिस्से कर लें। एक हिस्सा तवे पर भून लें। भुनी हुई और बची हुई सौंफ लेकर बारीक पीस लें और उतनी ही मिश्री (पिसी हुई) मिला लें। इस चूर्ण को छः ग्राम (दो चम्मच) की मात्रा से दिन में चार बार खायें। ऊपर से दो घूँट पानी पी सकते हैं। आंवयुक्त पेचिश - नयी या पुरानी (मरोड़ देकर थोडा-थोडा मल तथा आंव आना) के लिए रामबाण है। सौंफ खाने से बस्ती-शूल या पीड़ा सहित आंव आना मिटता है।
या दही, भात, मिश्री के साथ खाने से आंव-मरोड़ी के दस्तों में आराम आता है।
या मैथी (शुष्क दाना) का साग बनाकर रोजाना खावें अथवा मैथी दाना का चूर्ण तीन ग्राम दही में मिलाकर सेवन करें। आंव की बिमारी में लाभ के अतिरिक्त इससे पेशाब का अधिक आना भी बन्द होता है। प्रतिदिन मैथी का साग खाने से आंव की बिमारी अच्छी होती है। और पेशाब का अधिक आना बन्द होता है।
कब्ज
कब्ज होने पर रात्रि सोते समय दस बारह मुनक्के (पानी से अच्छी तरह धोकर साफ कर बीज निकाल कर) दूध में उबाल कर खाएँ और ऊपर से वही दूध पी लें। प्रातः खुलकर शौच लगेगा। भयंकर कब्ज में तीन दिन लगातर लें और बाद में आवश्यकतानुसार कभी-कभी लें।
या त्रिफला चुर्ण चार ग्राम (एक चम्मच भर) २०० ग्राम हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।
या दस ग्राम (दो चम्मच) ईसबगोल की भूसी छः घंटे पानी में भिगोकर इतनी ही मिश्री मिलाकर रात सोते समय जल के साथ लेने से दस्त साफ आता है। इसे केवल पानी के साथ वैसे ही, बिना भिगोये ही, रात्रि सोते समय लिया जा सकता है।
या ईसबगोल की भूसी दस से पन्द्रह ग्राम (दो से तीन चम्मच) की मात्रा में २०० ग्राम गर्म दूध में भिगो दें। यह फूलकर गाढ़ी हो जाएगी। इसे चीनी मिलाकर खाएँ और ऊपर से थोड़ा और गर्म दूध पी लें। शाम को इसे लें तो प्रातः मल बंधा हुआ साफ आ जाएगा।
या ईसबगोल की भूसी १० - १५ ग्राम की मात्रा में थोड़े गर्म दूध के साथ मिलाकर नित्य रात को सोते समय खाने से प्रातः को पेट साफ हो जाता है। दूध में आधा पानी मिलाकर एक या दो उबाल आने तक औटाना चाहिये।
या आरंड़ का तेल अवस्थानुसार एक से पांच चम्मच की मात्रा से एक कप गर्म पानी या दूध में मिलाकर रात सोते समय पीने से कब्ज दूर होकर साफ आता है।
या आरंड़ का तेल बहुत ही अच्छा हानि रहित जुलाब है। इसे छोटे बच्चे को भी दिया जा सकता है और दूध के विकार से पेट दर्द तथा उल्टी होने की अवस्था में भी इसका प्रयोग बहुत हितकारी होता है।
या पुराना से पुराना अथवा बिगड़ा हुआ कब्ज - दो संतरों का रस खाली पेट प्रातः आठ दस दिन पीने से पुराना से पुराना अथवा बिगड़ा हुआ कैसा भी कब्ज हो, ठीक हो जाता है।
बाँझपन दूर करना
एक पाव पीपल की दाढ़ी को महीन पीसकर कपडे से छानकर रख लें और समान मात्रा में कच्ची शक्कर खांड मिश्रित करके स्नान के दिन से २ तोले स्त्री और दो तोले मर्द को गोदुग्ध के साथ निरन्तर १० दिन तक सेवन करायें। ग्यारहवें दिन स्त्री सहवास करायें। इस औषधि से गर्भ अवश्य ठहरेगा। पथ्य- औषधि सेवन के उप्रोक्त दस दिन तक स्त्री- प्रसंग कदापि न किया जाये। मर्द में कमी हो तो इलाज करायें।
गुड़हल के फूल
गुड़हल के फूल
बालों के सौंदर्य व उपचार के
लिए गुड़हल के फूल ही नहीं बल्कि उसकी पत्तियां भी बालों को घना, काला और चमकीला बनाने में सहायक है। फूलों में मौजूद रसायन बालों के विकास को तीव्र गति देता है। गुड़हल के फूलों से सौम्य शैंपू बनाकर बालों को साफ करें।
एक मुठ्ठी गुड़हल की पत्तियां व फूलों को 100 मिली नारियल तेल में उबालकर ठंडा करें। इससे सिर की मालिश करें। बाल गिरने की समस्या दूर होगी और बाल बढ़ने लगेंगे।
दस ग्राम गुड़हल की पत्तियों को मिक्सी में पीसकर एक देशी अंडा मिलाएं। इसे बालों की जड़ों से सिरों तक लगाएं दो बार प्रयोग से ही केमिकल से बिगड़े बाल भी खिल उठेंगे।
चावल की मांड में गुड़हल के फूलों का रस मिलाकर लगाने से दो मुंहे बालों से निजात मिलती है।गुड़हल के अल्फा हाइड्रो एसिड से मॉइश्चर लेवल बढ़ जाता है और स्निग्धता आती है।
मेहंदी के साथ गुड़हल की पत्तियों को पीसकर लगाएं। मेहंदी का रंग अच्छा आएगा तथा मेहंदी के कारण आने वाला सूखापन भी नहीं होगा।
त्वचा पर ताजगीगुड़हल के फूल त्वचा को भी ताजगी देते हैं। गुड़हल के फूलों में आयरन व विटामिन सी भरपूर मात्रा में होते हैं।गुड़हल के फूलों से तैयार तेल को सूखी त्वचा पर लगाएं त्वचा दमक उठेगी।
गुड़हल के फूलों को खुजली, दाग व पपड़ीदार त्वचा पर लगाने से यह स्वस्थ हो जाती है।
गुड़हल के पत्तों का पेस्ट एलोवेरा में मिलाकर लगाने से धूप से झुलसी त्वचा तुरंत ठीक हो जाती है। गुड़हल के फूलों को सुखाकर पीसकर शहद मिलाकर फेस पैक बनाकर लगाएं त्वचा फूल सी खिल उठेगी।कुछ और इस्तेमालगुड़हल के फूलों को पानी में उबालकर ठंडा करके फ्रिज में जमा लें। थकी आंखों पर रूई की सहायता से लगाएं। फूलों और पत्तियों को जलाकर उसकी राख भौंहों पर लगाने से वे चमकीली बनी रहेंगी। गुड़हल की पत्तियों से तैयार तेल से नाखूनों के क्यूटिकल मजबूत होते हैं और नाखून बढ़ते हैं।फूलों और पत्तियों की जली राख को पेट्रोलियम जैली के साथ मिलाकर लगाने से फटी एडियों से निजात मिलती है।गुड़हल के फूल का रस लगाने से काले होंठ भी गुलाबी हो कर चमकने लगते हैं।इन नुस्खों को अपनाकर आप भी खिल उठें तथा इसी फूल को अपने बाल सजाकर इठलाएं अपने ईसर के सामने।
गर्भ नहीं ठहरता हो तो सौंफ को खाएं इस तरह
गर्भधारण करने के बाद महिला को सौंफ और गुलकन्द मिलाकर पानी के साथ पीसकर हर रोज नियमित रूप से पिलाने से गर्भपात की आशंका समाप्त हो जाती ह...
