टॉन्सिल्स (गलतुण्डिकाएं) लसीकाभ ऊतक के पिण्ड होते हैं और संयोजी ऊतक के एक कैप्सूल में बन्द रहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं-
1. फेरेन्जियल टॉन्सिल (Pharyngeal tonsil)- यह टॉन्सिल नाक के पीछे ग्रसनी की ऊपरी पश्च भित्ति में स्थित रहता है। इसे लुस्चकाज़ (Luschka’s) टॉन्सिल एवं एडीनॉयड्स (adenoids) भी कहा जाता है।
2. पैलाटाइन टॉन्सिल (Palatine tonsil)- यह टॉन्सिल ग्रसनी के दोनों ओर गलतोरणिका (fauces) के स्तम्भों के बीच (टॉन्सिलर फोसा) में स्थित रहते हैं।
3. लिंग्वल टॉन्सिल (Lingual tonsil)- यह टॉन्सिल जीभ की जड़ पर स्थित रहते हैं।
टॉन्सिल्स में अभिवाही (afferent) लसीकीय वाहिकाएं नहीं रहती हैं, जिसके कारण यह लिम्फ नोड्स से अलग रहते हैं। टॉन्सिल्स की अपवाही लिम्फेटिक्स (efferent lymphatics) लसीका में अनेकों लसीका कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स) पहुंचाती है। ये कोशिकाएं टॉन्सिल्स को छोड़ने तथा शरीर के दूसरे भागों में हमला करने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट करने में समर्थ होती हैं। टॉन्सिल्स के साथ मिलकर ये लसीकाभ ऊतक का एक बेण्ड बनाती हैं। यह बेण्ड पाचन एवं श्वसन सस्थानों के ऊपरी प्रवेश स्थलों पर स्थित रहता है। यहां ये बाह्य पदार्थ आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। ज्यादातर संक्रामक सूक्ष्म जीवाणु ग्रसनी की परत पर लसीका कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स) द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं। टॉन्सिल्स के अंदर प्लाज्मा कोशिकाओं का मौजूद होना एन्टीबॉडीज़ के निर्माण की तरफ इशारा करती है।
टॉन्सिल्स वैसे तो अक्सर संक्रमण रोकने का कार्य करते हैं, लेकिन ये खुद भी संक्रमित हो सकते हैं। ऐसे मामलों में, कुछ चिकित्सक इनके उच्छेदन (removal) यानि निकलवाने की सलाह देते हैं।
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