प्राणायाम के द्वारा व्यक्ति को मिलने वाले वाले अनेक लाभ हैं-
•प्राणायाम द्वारा प्राण (वायु) को सुरक्षित रखने का अभ्यास किया जाता है। यह सांस विज्ञान पर आधारित क्रिया है। सांस लेना और छोड़ना जीवन का मुख्य आधार है। इस क्रिया द्वारा वैसे ही सांसों को अपने वश में किया जाता है, जैसे व्यक्ति अपने प्राण को वश में करता है।
•प्राणायाम के द्वारा सांसों पर नियंत्रण किया जाता है, जिससे सांस लेने व छोड़ने की गति कम हो जाती है और अधिक गहरी व लम्बी सांस लेने का अभ्यास हो जाता है। इससे सांसों को बचाने से आयु बढ़ती है और व्यक्ति अधिक समय तक जीवित रहता है। जो व्यक्ति अधिक हांफते हैं या जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं, उनकी आयु कम होती जाती है और वह अकाल मृत्यु को भी प्राप्त करते हैं।
•वायुमण्डल में फैले ऑक्सीजन को ही प्राणवायु कहते हैं और जीवनी भी वायु को ही कहते हैं। अत: प्राणायाम के द्वारा हम उसी वायु को अधिक से अधिक अपने अंदर एकत्र करने की कोशिश करते हैं। इसलिए प्राणायाम के द्वारा हमारे अंदर वायु (प्राणशक्ति, जीवनी) की मात्रा अधिक हो जाने से प्राणशक्ति के साथ आयु और शारीरिक क्षमता भी बढ़ जाती है।
•प्राणायाम का अभ्यास करने वाले व्यक्ति को किसी प्रकार का रोग नहीं होता और इसका प्रतिदिन अभ्यास करने से शरीर में उत्पन्न हो चुका रोग भी खत्म हो जाता है।
•योग के अभ्यास के लिए प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक है। ´घेरण्ड संहिता´ और ´हठयोग प्रदीपिका´ में प्राणायाम के महत्वों को बताते हुए कहा गया है कि प्राणायाम के अभ्यास के बिना प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की प्राप्ति नहीं हो सकती है।
•प्राणायाम न केवल सांसों को संचित (बचाना) करने का अभ्यास होता है, बल्कि यह मन को शांत व स्थिर भी करता है। इससे बुद्धि का विकास होता है और चिंतन व मनन की क्षमता भी बढ़ती है।
•´योगदर्शन´ में प्राणायाम के बारे में बताते हुए कहा गया है कि इसके अभ्यास से बुद्धि व विवेक से अज्ञानता का नाश होता है। इससे व्यक्ति अंधकार रूपी अज्ञान से निकलकर ज्ञान रूपी प्रकाश में आ जाता है। इसके द्वारा मनुष्य के अंदर इतनी शक्ति आ जाती है कि वह अपने मन को जिस स्थिति में रखना चाहे, रख सकता हैं। इससे मन व इन्द्रियां वश में हो जाती हैं, जिससे प्रत्याहार के अभ्यास से समाधि तक के अभ्यास में लाभ मिलता है।
•प्राणायाम के अभ्यास से शुद्ध वायु का बहाव खून के साथ होने से शरीर के विकार दूर होते हैं। इससे शरीर स्वस्थ रहता है और शरीर में लचक, स्फूर्ति, चुस्ती और सुन्दरता व चमक आ जाती है।
•प्राणायाम से इन्द्रियों में उत्पन्न होने वाले विकार दूर हो जाते हैं। इससे शरीर, मन और प्राण में स्थिरता व स्वास्थ्यता आती है। मनुस्मृति में कहा गया है कि जैसे आग में धातु आदि को गलाकर उसे आकार दिया जाता है, उसी तरह प्राणायाम के द्वारा इन्द्रियों, मन व मस्तिष्क के विकारों को दूर करके मन को स्वच्छ, निर्मल व धार्मिक विचारों को ग्रहण करने योग्य बनाया जाता है।
•मस्तिष्क की शक्तियों का कोई अंत नहीं है इसलिए प्राणायाम के द्वारा मानसिक शक्ति को बढ़ाकर अनेक असाधारण कार्य किये जा सकते हैं। मानसिक शक्तियों में से एक शक्ति इच्छाशक्ति भी है। मस्तिष्क को इच्छाशक्ति गति देती है, जिससे ´विचार´ जो मन की परमाणुमय शक्ति है, उसके सधने से कहीं भी आ जा सकते हैं। इस इच्छाशक्ति को कोई भी रोक नहीं सकता। अपने विचारों को अपने अंदर से ही उत्पन्न किया जा सकता है, जो प्रकृति का आवश्यक तत्व है। हमारे चारो ओर एक विद्युत शक्ति हमेशा मौजूद रहती है और यह विद्युत प्रवाह मनुष्य के अंदर भी होता है। इसे इच्छाशक्ति के अभ्यास के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है और अपने अंदर की इच्छाशक्ति को बढ़ाया जा सकता है। इच्छाशक्ति से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का प्रवाह अंगुलियों के स्पर्श के द्वारा रोगों को भी खत्म करने में किया जा सकता है। ध्यान रखें कि इच्छाशक्ति के साथ ´प्राणायाम कुम्भक´ करना आवश्यक है। ´त्राटक´ के द्वारा दृष्टिशक्ति, कुम्भक के द्वारा सांस को इकट्ठा करके प्राण को बढ़ाने की शक्ति और मन के द्वारा इच्छाशक्ति बढ़ाने की शक्ति प्राप्त करने के बाद ही अपनी इच्छाशक्ति से दूसरों को प्रभावित किया जा सकता है। इसलिए इच्छाशक्ति को बढ़ाने के लिए भी प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक है।
•प्राणायाम के अभ्यास से व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ जाती है और उसके अंदर दृढ़ विश्वास पैदा हो जाता है। इस तरह के विश्वासों से व्यक्ति असम्भव काम को भी करने में सफलता प्राप्त कर लेता है- जैसे अधिक वजन उठाना, सीने पर या पेट पर गाड़ी को चलाना, लोहे को मोड़ना आदि। कुछ व्यक्ति प्राणायाम की सिद्धि इस तरह प्राप्त कर चुके थे कि वे अपनी छाती पर हाथी को भी चढाकर करतब दिखाया करते थे। प्राणायाम व ब्रह्यचर्य के बल पर किसी भी प्रकार के बल प्रयोग में व्यक्ति सक्षम हो सकता है। इस तरह की सभी क्रियाएं देवी चमत्कार नहीं है, बल्कि यह प्राणायाम की साधना का प्रभाव है।
•प्राणायाम के अभ्यास से मानसिक एवं स्नायु संबंधी रोगों का भी इलाज किया जाता है।
•बिना प्राणायाम के अभ्यास के ही रोगों को ठीक करने का असफल प्रयास करने वाले और लोगों को धोखा देने वाले व्यक्ति मूर्ख और अज्ञानी होते हैं। परन्तु प्राणायाम के अभ्यास से रोगों का उपचार कर उसे ठीक करते देखा गया है। इस तरह के रोगों को ठीक करने के लिए शक्ति प्राणायाम से ही मिलती है।
•प्राणायाम के द्वारा अनेक चमत्कारी कार्य किये जा सकते हैं। प्राणायाम के अभ्यास से व्यक्ति अपनी नाड़ी की गति व हृदय के गति को भी रोक सकता है। आकाश या पानी में भी चल सकता है। यह सभी योग प्राणायाम से ही करने सम्भव हो सकते हैं।
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