Wednesday, 4 February 2015

Medicinal Plants tips सेहत टिप्स


चित्रक (leadwort)

चित्रक को चीता या चितावर भी कहते हैं . पूरे भारत में यह झाडी पाई जाती है . इसके तीन रंगों के फूल हो सकते हैं ; लाल , नीले और सफ़ेद . इससे चित्रकादी वटी बनाई जाती है. इसे अजीर्ण और वातज रोगों में प्रयोग में लाया जाता है . इसमें ख़ास तौर पर चित्रक की जड़ का प्रयोग होता है .  अगर नकसीर की समस्या हो तो बच्चे को आधा ग्राम और बड़े व्यक्ति को एक ग्राम जड़ का पावडर दें . तुरंत लाभ होगा . यह विषैला तो नहीं होता ; फिर भी अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए .
                        गले के रोगों में इसकी जड़ , मुलेटी और 2 -3 तुलसी के पत्ते का काढ़ा पीयें . कफ रोगों में पंचकोल (चित्रक , चव्य, पीपल ,पीपलामूल , सौंठ ) की 2-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटें . बुखार या ज़ुकाम हो तो पंचकोल का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . अगर किसी को दूध हजम न होता हो तो भी सवेरे शाम पंचकोल का काढ़ा पीयें ; दूध हजम होना शुरू हो जाएगा .
                   पेट की बीमारी हो , पेट का अफारा हो या पेट फूलता हो तो , सवेरे खाली पेट इसकी जड़ का काढ़ा लें या पंचकोल का काढ़ा लें . मासिक धर्म अनियमित हों या देर से आते हों तो दशमूल 200 ग्राम और पंचकोल 100 ग्राम मिलाकर रख दें . इस मिश्रण का 7-8 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . प्राणायाम करें . रज:प्रवर्तिनी वटी भी सवेरे शाम लें . इससे अवश्य लाभ होता है .

खस (grass)

खस की घास शीतल और गुणकारी होती है . खस -खस अफीम का पावडर होता है ; लेकिन खस की घास बिलकुल अलग है . इसकी जड़ में भीनी-भीनी खुशबू आती है . इसीलिए इसका इत्र बनाकर प्रयोग में लाया जाता है . बुखार हो तो इसकी जड़ का काढ़ा पीयें . उसमें गिलोय और तुलसी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा . Low temp. हो या रह रह कर बुखार आये , बुखार टूट न रहा हो तो यह काढ़ा बहुत लाभदायक रहता है .
                  पित्त acidity या घबराहट हो तो इसकी जड़ कूटकर काढ़ा बनाएं और मिश्री मिलाकर पीयें . चर्म रोग या eczema या allergy हो तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ में 2-3 ग्राम नीम मिलाकर काढ़ा बनाएं और सवेरे शाम पीयें .
                              दिल संबंधी कोई परेशानी हो तो इसकी जड़ में मुनक्का मिलाकर काढ़ा बनाकर मसलकर छानकर पीयें .इससे hormones भी ठीक रहेंगे और heart rate भी ठीक रहेगा . Kidney की परेशानी में खस और गिलोय का काढ़ा सवेरे सवेरे  पीयें . B.P. high हो या angina की समस्या हो तो इसकी जड़ और अर्जुन की छाल  का काढ़ा पीयें .
             प्यास बहुत अधिक लगती हो तो इसकी जड़ कूटकर पानी में ड़ाल दें . बाद में छानकर पानी पी लें . यह शीतल अवश्य है ; परन्तु इसे लेने से arthritis बढ़ता नहीं है

भृंगराज

भृंगराज केश तेल का नाम आम तौर पर सुना जाता है . आखिर है क्या ये भृंगराज ? यह छोटा सा मौसमी पौधा है , जो की यत्र तत्र सर्वत्र देखने को मिल जाता है . इसके फूल छोटे छोटे सफ़ेद से होते हैं जो की बाद में काले काले नजर आते हैं . इसके पत्ते को अँगुलियों के बीच में दबाकर रगडो तो उनमें से काला गहरा हरा रंग आ जाता है . ये इस पौधे की पहचान में लाभदायक रहता है . इस पौधे को आम भाषा में भांगरा या भंगरैया भी कहा जाता है . संस्कृत भाषा में इसे केशराज या केशरंजन कहते हैं .
                                    बालों को घने , काले और सुंदर बनाना है तो आंवला ,शिकाकाई ,रीठा और भृंगराज के पावडर में पानी मिलाकर लोहे की कढ़ाई में गर्म करते हुए पेस्ट बनाएँ . इसे सिर पर लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें . फिर सिर धो लें . इसके पत्तों का रस निकालकर बराबर का तेल लें और धीमी आंच पर रखें . जब केवल तेल रह जाए,  तो बन जाता है ; भृंगराज केश तेल ! अगर धीमी आंच पर रखने से पहले आंवले का रस मिला  लिया जाए तो और भी अच्छा तेल बनेगा . बालों में रूसी हो या फिर बाल झड़ते हों, तो इसके पत्तों का रस 15-20 ग्राम लें +थोडा सुहागे की खील+दही मिलाकर बालों की जड़ में लगाकर एक घंटे के लिए छोड़ दें . बाद में धो लें . नियमित रूप से ऐसा करने पर बाल सुंदर घने और मजबूत हो जाते हैं .
        अस्थमा की बीमारी में आंवला भृंगराज और मुलेटी का काढ़ा लें .   B .P. बढ़ा हुआ हो , चक्कर आते हों या नींद कम आती हो तो इसका दो चम्मच रस पानी मिलाकर सवेरे शाम लें .  बिच्छू काट ले तो इसके पत्तों के काटे हुए हिस्से पर मल लें . हाथी पाँव हो गया हो तो इसके पत्ते पीसकर सरसों का तेल मिलाकर लगायें  और इसके पंचांग का काढ़ा पीयें .पेट दर्द या पेट में सूजन हो तो इसके पत्ते पीसकर लेप लगाएं औत इसके पत्तों का रस पिलायें . ताज़ा न मिले तो सूखे पत्तों का पावडर भी दिया जा सकता है .
                    पीलिया होने पर इसके पत्तों का 10 ग्राम रस दिन में 2-3 बार लें . 3-4 दिन में ही आराम आ जाता है . चर्म रोग में भी इसका रस लाभ करता है . कैंसर में भी अन्य दवाओं के साथ इसे लेने से फायदा होता है . इसका 2-3 चम्मच रस और मिश्री मिलाकर शर्बत कुछ दिन लेने से गर्भपात के समस्या हल हो जाती है . Migraine या sinus की समस्या में इसकी साफ़ पत्तियों और कोमल टहनियों का रस 4-4 बूँद नाक में डालें .
                                        अगर पानी लग लग कर कहीं पर गलन हो गई है , घाव या पस हो गई है तो इसके पत्तों को पीसकर उसका रस लगाओ . तुरंत फर्क पड़ेगा . अगर शुगर की बीमारी के कारण घाव नहीं हर रहा तो ताज़ी पत्तियों का रस रुई में भिगोकर भी लगाया जा सकता है . गुम चोट हो सूजन या दर्द हो तो पत्तों को पीसकर गर्म करके रुई में लगाकर बाँध लें . आँखों में दुखन हो रोशनी कम हो तो साफ़ जगह पर उगे हुए पत्तों का रस एक दो बूँद आँख में डाला जा सकता है .  अगर जाड में दर्द है तो चार बूँद रस विपरीत कान में डालने से तुरंत लाभ होता है .
               कान में दर्द या पस है तो भी इसके पत्तों के रस की बूँदें डाली जा सकती हैं . Piles की समस्या हो या anus पर सूजन हो तो भृंगराज के पत्ते और डंठल मिलाकर 50 ग्राम लें +20 ग्राम काली मिर्च लें . अब इनको मिलाकर काले चने जितनी गोलियां बना लें . एक एक गोली सवेरे शाम लें .
              इस पौधे को गमले में भी लगाया जा सकता है .

भारंगी (Turk's Turban Moon)
आगे की तरफ दिखने वाली फूलों की डाल और साथ में दिखाई देने वाले पाँच छ: पत्ते भारंगी के हैं .
भारंगी का पौधा 12 से 16 फुट तक ऊंचा हो सकता है . इसके फूल कभी लम्बे और सफ़ेद दिखते हैं तो बाद में चौड़े और लाल नज़र आते हैं . कारण है कि फूलों की सफेद लम्बी और पतली  पंखुड़ियाँ झड़ जाती हैं और लाल रंग के sepals रह जाते हैं .  इसे संस्कृत में ब्राह्मण यष्टिका (डंडा ) भी कहा जाता है . कहते हैं कि इसका डंडा हाथ में लेकर चलने मात्र से asthma से छुटकारा मिलता है . भारंगी श्वास रोगों के लिए सबसे उपयुक्त इलाज है . इसे श्वसारी क्वाथ में भी डाला जाता है .
           राजयक्ष्मा (T. B.) होने पर इसके पंचांग का काढ़ा प्रात: सांय लें .  सिरदर्द होने पर इसकी जड़ पीसकर माथे पर 5-6 घंटे के लिए लगायें . उसके बाद धो दें . आँखों में परेशानी हो तो इसके पत्तों कि लुगदी की पट्टी आँखों पर बांधें . Goitre की समस्या हो तो इसके पत्तों का काढ़ा सवेरे शाम लें . Thyroid की परेशानी तो यह जड़ से खत्म कर देता है . इसके लिए 3 ग्राम भारंगी के जड़ का पावडर +3 ग्राम त्रिकटु(सौंठ+पिप्पल +काली मिर्च ) का पावडर प्रात: सांय गर्म पानी से लें .
                            मोटापा खत्म करने की मेदोहर वटी में भी भारंगी को डाला जाता है . Fibroid या cyst खत्म करनी हो तो , 3 ग्राम भारंगी के पंचांग में थोडा तेल मिलाकर लें . Food poisoning या पेट का संक्रमण खत्म करना हो तो इसके पंचांग का या फिर पत्तियों का काढ़ा लें . कब्ज़ हो  या हिचकी आती हों ,तब भी इसके पंचांग का काढ़ा लिया जा सकता है . यह चर्मदोष और रक्तदोष को भी दूर करता है .
                                 मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका तेल लगाकर मालिश करें . तेल बनाना आसान है . इसके पत्तों का 800 ग्राम रस लेकर धीमी आंच पर रखें . जब 400 ग्राम रह जाए तो इसमें 200 ग्राम सरसों का तेल मिला लें . जब केवल तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर लें . हर्पीज़ की बीमारी में पत्ते पीसकर लगा दें और पत्तों का काढ़ा पीयें . फोड़े हो गए हों तो पत्ते पीसकर गर्म करके पुल्टिस बांधें .
                     इसके बीज का पावडर थोड़ी मात्रा में लेने से पेट दर्द व अन्य रोगों में लाभ होता है .
                           

सर्पगंधा
                                                                      सर्पगंधा के पौधे को सांप के काटने पर दवा की तरह प्रयोग किया जाता रहा है . शायद इसीलिये इसका नाम सर्पगंधा  है. यह जितना सुन्दर पौधा है , उतना गुणवान भी है .
सर्पगंधा का पौधा उच्च रक्तचाप को ठीक करता है . इसके लिए 10 gram सर्पगंधा +10 ग्राम ब्राह्मी +3 ग्राम श्वेत पर्पटी ; इन तीनो को मिलाकर 3 ग्राम  की  मात्रा में सवेरे सवेरे लें . नींद ठीक से न आये तो रात को  1-2 ग्राम सर्पगंधा की सूखी पत्तियां दूध या पानी के साथ लें . अगर नींद न आती हो तो सर्पगंधा और जटामासी बराबर मात्रा में मिलाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . जब ठीक नींद आने लगे तो यह लेना बंद कर दें .  उन्माद हो या hyper activeness हो तो इसकी जड़ का पावडर आधा ग्राम से एक ग्राम तक पानी के साथ दोनों समय लें .  लेकिन ठीक होते ही यह लेना बंद कर दें . ज्यादा लम्बे समय तक इसका सेवन नहीं करना चाहिए .
                                Epilepsy की बीमारी में सर्पगंधा +जटामासी +अश्वगंधा +गाजवान+सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें .

शरपुन्खा

                
शरपुन्खा को सर्पमुखा भी कहते हैं . इसके पत्ते को अगर दोनों तरफ से खींच कर तोडा जाए तो , टूटे हुए पत्ते का आकार हमेशा सर्पमुख जैसा होता है . इसे प्लीहा शत्रु भी कहते है क्योंकि  यह spleen को ठीक करती है . इसके पंचांग को मोटा मोटा कूटकर 5-10 ग्राम लें और 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . इस काढ़े से जिगर या लीवर भी ठीक होता है . यह काढ़ा खून की कमी को भी दूर करता है ।
                                             Kidney भी इसी काढ़े से ठीक होती है ।यह मूत्रल होता है । शरपुन्खा के साथ पाषाण भेद और गोखरू मिलकर काढ़ा लेने से Kidney संबंधी सभी तरह की समस्याएँ ठीक हो जाती हैं ।
\ यह शरपुन्खा का काढ़ा बिल्कुल निरापद होता है । इससे किसी भी तरह का नुक्सान नहीं होता ।

                                               पेट दर्द या अफारा हो या फिर acidity की समस्या ;या फिर डकार आती हों । सब तरह की दिक्कत शरपुन्खा का काढ़ा ठीक कर देता है .
            Abnormal periods की समस्या भी इसके काढ़े को लेने से ठीक होती है ।
                         हृदयशूल हो या हृदय की शक्ति बढानी हो तो 5 gram शरपुन्खा +5 ग्राम अर्जुन +2-3 लौंग लेकर काढ़ा बनाएं और पीयें . कफ या बलगम ठीक करना हो तो 5 ग्राम शरपुन्खा +3-4 तुलसी के पत्ते +सौंठ का काढ़ा प्रात: सांय लें ।
                                         मलेरिया बुखार होने पर 3-4 ग्राम गिलोय और 4-5 ग्राम शरपुन्खा को 200 ग्राम पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर सवेरे शाम पीयें ।
                       यह रक्तशोधक भी है . इसके पंचांग में नीम की पत्ते डालकर काढ़ा पीया जाये तो फोड़े-फुंसियाँ ठीक हो जाती हैं . अगर घाव हो गये हों तो इसके पत्ते और नीम के पत्ते मिलाकर पानी में उबालें और उस पानी से घाव धोएं . अगर  कहीं पर सूजन है तो इसके पत्तों को हल्का उबालकर पीसकर पुल्टिस बांधें .
                                           वैसे तो यह हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है, लेकिन तराई के क्षेत्रों में भी इसे देखा गया है । . इसके जामुनी फूल भी होते हैं और सफ़ेद फूल भी होते हैं . ये बहुत सुंदर लगते हैं .             


गुलदाऊदी (chrysanthemum)


गुलदाऊदी या सेवती के फूल बहुत सुन्दर होते हैं . छोटे फूलों वाली गुलदाऊदी के औषधीय गुण अधिक होते हैं . इससे घर का वातावरण भी अच्छा होता है . घर में इसके दो तीन पत्तों पर देसी घी लगाकर कच्चे कोयले पर जलाएं तो नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है . हृदय रोग के लिए गर्म पानी में इसकी पत्तियां डालकर दो मिनट बाद निकाल  लें  . फिर उस पानी को पीयें . मासिक धर्म अनियमित हो या दर्द रहता हो तो इसके फूलों व पत्तियों का काढ़ा पीयें .
               पेट दर्द होने पर इसके फूलों का रस शहद या पानी के साथ लें . कहीं पर गाँठ हो गयी हो तो इसकी जड़ घिसकर लगायें . kidney stone हों तो इसके फूलों को सुखाकर उनकी चाय पीयें . Urine रुककर आता हो तो इसकी चार पांच छोटी छोटी पत्तियों में काली मिर्च मिलाकर ,  काढ़ा बनाकर पीयें .

अकरकरा (pellitory root)

अकरकरा का पौधा भारत में सब जगह मिलता है . दांत के दर्द में इसके फूल को तोडकर चबाएं . दांत की सफाई भी हो जायेगी . सुबह उठकर इसके फूल चबाकर दांत साफ करने से दांत स्वस्थ रहते हैं . इसका पंचांग सुखाकर उसमें फिटकरी और लौंग मिलाकर मंजन बना लें . इस मंजन से दांत साफ़ करने से मसूढ़े भी स्वस्थ रहते हैं . सिरदर्द में इसके फूल पीसकर माथे पर लेप करें . मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो , इसके फूलों का पावडर और वचा का पावडर मिलाकर लें .
                  गले में तकलीफ हो तो इसके 4-5 फूल +आम के पत्ते +जामुन के पत्ते उबालकर उसके काढ़े से गरारे करें . दंतशूल हो तो इसके फूल दांतों के बीच दबाकर रखें . मुख से दुर्गन्ध आती हो तो , इसके फूल चबाकर लार बाहर निकालें , इसके पंचांग का काढ़ा पीयें और उससे गरारे करें . हिचकी आती हो तो इसका एक फूल चबाकर कुल्ला करें या इसकी आधा ग्राम जड़ को शहद में मिलाकर 2-3 बार चाटें . कमजोरी हो तो इसकी जड़ शतावर और मूसली मिलाकर दूध के साथ लें . श्वास की तकलीफ हो तो फूल का पावडर सूंघ लें , अवरोध खुल जाएगा .  जुकाम हो तो फूल का पावडर पीसकर नाक के चारों तरफ लगायें .
                                           खांसी हो तो इसके फूल , काली मिर्च और तुलसी की चाय पीयें . मासिक धर्म की समस्या हो या हारमोन का असंतुलन हो तो अकरकरा . गाजर , शिवलिंगी और पुत्रजीवक के बीज बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लें . Arthritis की समस्या में हल्दी ,मेथी ,सौंठ ,अजवायन और अकरकरा बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच लें .
                       हृदय रोग में एक गिलास पानी में एक चम्मच अर्जुन की छाल और एक अकरकरा का फूल डालकर काढ़ा बनाएं और पीयें . इससे हृदय की कार्यक्षमता बढ़ेगी . इसके अतिरिक्त इसके 2-3 फूल ,1-2 ग्राम कुलंजन की जड़ , 4-5 ग्राम अर्जुन की छाल ; इन सबका काढ़ा 200 ग्राम पानी में बनाकर पीने से भी हृदय रोगों में लाभ होता है . इस पौधे से कोई हानि नहीं होती , वरन लाभ ही लाभ हैं . मौसम में  इसके फूल इकट्ठे कर के सुखा कर भी रख सकते हैं .

शतावर (Asparagus)

                                                                                                                              इसकी जड़ में शतश: कन्द होते हैं ; तभी तो यह शतावर है .
शतावर का पौधा शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है . बहुत पौष्टिक होता है . अगर किसी को किसी भी तरह ताकत नहीं आ पाती तो  यह  पौधा बहुत मददगार है . इसकी जड़ के पावडर में मिश्री मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . पतली दुबली कन्याओं को तो यह अवश्य ही लेना चाहिए . इससे शरीर स्वस्थ और सुन्दर होता है .
               अनिंद्रा की बीमारी में इसकी जड़ का 10 ग्राम पावडर दूध में खीर की तरह पकाएं . फिर थोडा सा देसी घी डालकर रात को सोते समय ले लें . अच्छी नींद आयेगी . रतौंधी की बीमारी में इसकी कोमल पत्तियों और कोमल टहनियों की सब्जी खाएं . स्वर भंग हो गया है तो बला (खरैटी) के बीजों के पावडर के साथ मिलाकर शहद के साथ चाटें . खांसी हो गई है तो शतावर और पीपली का काढ़ा पीयें .
               Blood dysentery है या piles है तो ताज़े शतावर की जड़ और मिश्री पीसकर लें . रुक कर पेशाब आ रहा है या जलन है या kidney में  पथरी  है तो शतावर में गोखरू के बीज मिलाकर डेढ़ चम्मच पावडर का काढ़ा बनाकर पीयें . हाथ पैर में जलन होती हो तब भी शतावर और मिश्री मिलाकर लें .
                      अगर किसी माता को दूध नहीं आ पा रहा और नन्हा बच्चा भूखा रह जाता है तो माँ एक एक चम्मच शतावर सवेरे शाम दूध के साथ ले . 5-7 दिन में ही भरपूर दूध आने लगेगा . गायों को भी 50-60 ग्राम शतावर कुछ दिन हर रोज़ दी जाये तो उनके दूध की मात्रा बढ़ जाती है और थनैला नाम के रोग से भी मुक्ति मिलती है .
                 आयुर्वेद में शक्ति प्रदान करने वाली लगभग सभी दवाइयों में इसका प्रयोग होता है . विदेशों में इसकी मोटी टहनियों का सूप पीते हैं और टहनियाँ भी बड़े शौक से खाते है . वह प्रजाति देसी प्रजाति से कुछ अलग होती है . शतावर का पौधा बहुत सुंदर लगता  है . यह गमले में भी आराम से लगाया जा सकता है .

विधारा (elephant creeper)

विधारा को घाव बेल भी कहते हैं . यह बेल सर्दी में भी हरी भरी रहती है . वर्षा ऋतु में इसके फूल आते हैं . इसके अन्दर एक बड़ा ही अनोखा गुण है . यह मांस को जल्दी भर देता है या कहें कि जोड़ देता है . आदिवासी लोग विधारा के पत्तों में मांस के टुकड़ों को रख देते थे कि अगले दिन पकाएंगे . अगले दिन वे पाते थे कि मांस के टुकड़े जुड़ गए हैं . यह बड़ी  ही रहस्यभरी घटना है . यह सच है कि किसी भी प्रकार के घाव पर इसके ताज़े पत्तों को गर्म करके बांधें तो घाव बहुत जल्दी भर जाता है .
                 सबसे अधिक मदद ये gangrene में करता है . शुगर की बीमारी में कोई भी घाव आराम से नहीं भरता है . gangrene होने पर तो पैर गल जाते हैं और अंगुलियाँ भी गल जाती हैं . अगर pus  भी पड़ जाए तो भी चिंता न करें . इसकी पत्तियों को कूटकर उसके रस में रुई डुबोकर घावों पर अच्छी तरह लगायें . उसके बाद ताज़े विधारा के पत्ते गर्म करके घावों पर रखें और पत्ते बाँधें . हर 12 घंटे में पत्ते बदलते रहें . बहुत जल्द घाव ठीक हो जायेंगे . ये बहुत पुराने घाव भी भर देता है. Varicose veins की बीमारी भी इससे ठीक होती है .
                                 Bedsore हो गए हों तो रुई से इसका रस लगायें .  किसी भी तरह की ब्लीडिंग हो ; periods की, अल्सर की , आँतों के घाव हों , बाहर या अंदर के कोई भी घाव हों तो इसके 2-3 पत्तों का रस एक कप पानी में मिलाकर प्रात:काल पी लें . हर  तरह का रक्तस्राव रुक जाएगा . कहीं भी सूजन या दर्द हो तो इसका पत्ता बाँधें .
                   इसके बीज भूनकर उसका पावडर गर्म पानी या शहद के साथ लें तो बलगम और खांसी खत्म होती है . लक्ष्मी विलास रस में भी इसे डालते हैं . लक्ष्मी  विलास रस  की दो-दो गोली सवेरे शाम लेने से सर्दी दूर होती है . शरीर में दर्द हो या arthritis की समस्या हो तो इसकी 10 ग्राम जड़ का काढा पीयें .



मालती (rangoon creeper)

मालती या मधुमालती के फूल बहुत सुन्दर होते हैं . ऐसा लगता है कि फूलों के गुच्छे के गुच्छे बड़ी सी लता पर हर जगह बाँध दिए गए हों . इसकी लता जमीन से चौमंजिली इमारत तक भी चढ़ जाती है . इसके फूल और पत्तियां औषधि होते हैं . इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है .  इसकी 2-5 ग्राम की मात्रा लेने से कमजोरी दूर होती है और हारमोन ठीक हो जाते है . प्रमेह , प्रदर , पेट दर्द , सर्दी-जुकाम और मासिक धर्म आदि सभी समस्याओं का यह समाधान है .
                                                                   प्रमेह या प्रदर में इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें . शुगर की बीमारी में करेला , खीरा, टमाटर के साथ मालती के फूल डालकर जूस निकालें और सवेरे खाली पेट लें . या केवल इसकी 5-7 पत्तियों का रस ही ले लें . वह भी लाभ करेगा . कमजोरी में भी इसकी पत्तियों और फूलों का रस ले सकते हैं . पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं . यह बच्चे भी आराम से ले सकते हैं . सर्दी ज़ुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें . यह किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता . यह बहुत सौम्य प्रकृति का पौधा है .

दमबेल (tylophora indica)

दमबेल या दमबूटी , दमा की बीमारी का अचूक इलाज है . इसका एक पत्ता गोली की तरह बना कर खाएं और ऊपर से गर्म पानी पी लें . यह खाली पेट तीन दिन तक करने मात्र से दमा की बीमारी में आराम आता है . श्वास रोग हो या कफ हो ; यह सभी में लाभदायक है . बच्चे को कफ या खांसी की बीमारी हो तो इसका एक चौथाई पत्ता पीसकर शहद में मिलाकर चटायें . इसमें तुलसी का रस भी मिलाया जा सकता है । अगर ताज़ा पत्ते न मिलें तो 250 mg पत्तों का सूखा पावडर शहद में चटायें . बड़े व्यक्ति आधा ग्राम पावडर शहद के साथ ले सकते हैं ।
                                              सर्दी या जमा हुआ कफ हो तो तुलसी ,अदरक ,लौंग और दमबेल के 2 पत्ते डालकर काढ़ा बनाकर पीयें । Sinus की बीमारी में भी यह बहुत मददगार है . इसकी बेल गमले में भी लगा सकते हैं . दमा और एलर्जी की की समस्या को जड़ से खत्म करने वाली यह बेल सुंदर भी बहुत  लगती है ।

ज्योतिष्मति (celastrus)

ज्योतिष्मति का नाम शायद आपने सुना हो . इसे हिन्दी में मालकांगनी कहते हैं . पंसारी की दुकान पर इसके बीज आसानी से प्राप्त हो जाते हैं . इसकी लता काफी ऊपर तक चढ़ जाती है . दो तीन साल बाद लाल छोटे - छोटे फल आते हैं . इन्ही फलों से निकले हुए बीजों से सात्विक बुद्धि बढ़ती है , एकाग्रता बढ़ती है और memory बढ़ती है . स्वामी दयानन्द सरस्वती भी इसका एक बीज प्रतिदिन लेते थे .
                                      माइग्रेन , या सिरदर्द हो या भयंकर दौरे पड़ते हों ; तो इसके 2-3 बीज तक ले सकते हैं . सवेरे सवेरे खाली पेट बीज कहकर दूध या पानी पी लें . मिर्गी में इसके बीज लेने के साथ साथ इसके बीजों के तेल की सिर में और माथे पर मालिश करें . स्मृति बढानी है तो , इसके तेल की 2-4 बूँद दूध में डालकर पीयें . नींद कम हो , तनाव रहता हो तो , इसके तेल की सिर में मालिश करें . केश तेल में इसका भी तेल मिला लें .छोटे बच्चों के सिर और माथे पर इसके तेल की मालिश करनी चाहिए।
                     Arthritis ,सूजन या मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका 4-4 बूँद तेल सवेरे लें ;या फिर बीज ले लें . शरीर में शक्ति और स्फूर्ति लानी है तो इसके 2 -3 बीज चबाकर सवेरे दूध या पानी के साथ कुछ दिन ले लें . यह कुछ गर्म होती है अत: एक साथ बहुत अधिक सेवन नहीं करना चाहिए.  60-70 वर्ष की अवस्था के पश्चात याददाश्त कुछ कम होनी प्रारम्भ हो जाती है । तब तो इसके एक या दो बीजों का सेवन अवश्य ही शुरू क्र देना चाहिए । ब्राह्मी , शंखपुष्पी आदि के साथ इसे भी मेधावटी में डाला जाता है . वैसे तो यह पहाड़ी क्षेत्र की लता है ; परन्तु इसे बीज डालकर कहीं भी उगा सकते हैं

बथुआ (chenopodium)

बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से जाना जाता है . इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग के लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है . यह  कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है . किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द या सूजन हो ; तो इसके बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है . इसका साग भी लिया जा सकता है . सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .
                  Uric acid बढ़ा हुआ हो, arthritis की समस्या हो , कहीं पर सूजन हो लीवर की समस्या हो , आँतों में infections या सूजन हो तो इसका साग बहुत लाभकारी है . पीलिया होने पर बथुआ +गिलोय का रस 25-30 ml तक ले सकते हैं .
                       गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए . Periods रुके हुए हों और दर्द होता हो तो इसके 15-20 ग्राम बीजों का काढ़ा सौंठ मिलाकर दिन में दो तीन बार लें . Delivery के बाद infections न हों और uterus की गंदगी पूर्णतया निकल जाए ; इसके लिए 20-25 ग्राम बथुआ और 3-4 ग्राम अजवायन को ओटा कर पिलायें. या फिर बथुए के 10 ग्राम बीज +मेथी के बीज +गुड मिलाकर काढ़ा बनायें और 10-15 दिन तक पिलायें . एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में पानी मिलाकर पिलायें .
                               अगर लीवर की समस्या है , या शरीर में गांठें हो गई हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें . White discharge के निदान के लिए इसके रस में पानी और मिश्री मिलाकर पीयें . यौनदुर्बलता हो तो 20 ग्राम बीजों का काढ़ा शहद के साथ लें . या फिर 5 ग्राम बीज सवेरे दूध के साथ लें . पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर लें . शीतपित्त की परेशानी हो , तब भी इसका रस पीना लाभदायक रहता है . .


खेत का हर्बल कीटनाशक और खाद !
कृत्रिम खाद और कीटनाशक जहाँ खेतों को बंजर बना रहे हैं , वहीं कैंसर जैसी भयानक  बीमारियों का कारण भी बन रहें हैं . इन खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करने में किसान की भी बहुत अधिक लागत बढ़ जाती है . लेकिन देसी तरीके से खाद और कीटनाशक प्रयोग करने से लागत तो कम होती ही है ; इसके अलावा स्वास्थ्य की भी सुरक्षा होती है .
 कीटनाशक -----------  5 किलो  नीम  या  भाँग  या आक या  धतूरे या अरंड  के पत्ते कूटकर  + एक  किलो  लहसुन + 3 किलो तीखी  हरी  मिर्च + 5 किलो  गोमूत्र (या भैंसमूत्र );  ये सभी मिलाकर कूटकर  दो बार उबाला दें . फिर ठंडा करके  120 लिटर पानी मिला दें . इसका खेत पर season में तीन चार बार  स्प्रे  कर दें . एक एकड़ खेत के लिए यह काफी है . और किसी कीटनाशक की जरूरत नहीं है .
खाद -------------------   5-7 किलो गोबर +5-7 लिटर पशुओं का मूत्र +2 किलो पुराना गुड+2 किलो चना या मसर या अरहर की दाल या मटर की दाल का पावडर  ; ये सब मिलाकर 48 घंटों के लिए रख दें . ये खाद तैयार हो जायेगी . इसे पानी में मिलाकर एक एकड़ में लगा सकते हैं .
नमी बनाये रखने के लिए ---  खेत में कम पानी लगाना पड़े , इसके लिए खेत की मिट्टी को  बेकार घास फूस या  अन्य खेत के कचरे से अच्छी तरह ढांप दें . इससे नमी भी बनी रहेगी और खेती के लिए लाभदायक कीट जैसे केंचुए ; भी मिट्टी में उत्पन्न होंगे . अधिक पानी खेत में नहीं खड़ा रहना चाहिए .
                                         एक गाय या एक भैंस से एक दिन में एक एकड़ की खाद या कीटनाशक बनाने का प्रावधान हो जाता है . इसलिए 30 एकड़ खेत के लिए एक ही पशु पर्याप्त है .

सेमल (silk cotton tree )

सेमल की रुई तकियों में भरी जाती है . इसकी रुई के तकिए से अच्छी नींद आने में मदद मिलती है . चेहरे पर फोड़े फुंसी हों तो इसकी छाल या काँटों को घिसकर लगा लो . इसके फूल के डोडों की सब्जी खाने से आंव (colitis) की बीमारी ठीक होती है .  अगर शरीर में कमजोरी है तो इसके डोडों का पावडर एक-एक चम्मच घी के साथ सवेरे शाम लें और साथ में दूध पीयें . अगर माताओं को दूध कम आता हो तो इसकी जड़ की छाल का पावडर लें . स्तन में शिथिलता हो तो  इसके काँटो पर बनने वाली गांठों को घिसकर लगायें . गर्मी की परेशानी हो , या प्रदर की शिकायत हो तो इसकी छाल को कूटकर शहद के साथ लें .
                                      जलने पर इसकी छाल को घिसकर लगाया जा सकता है . सेमल का गोंद रात को भिगोकर सवेरे मिश्री मिलाकर खाने से शरीर की गर्मी दूर होती है और ताकत आती है . अगर खांसी हो तो सेमल की जड़ का पावडर काली मिर्च और सौंठ मिलाकर लें .
                                सेमल के विशाल वृक्ष के नीचे जब ढेर से रुई से भरे हुए फल गिरते हैं ; तो उन्हें इकट्ठा कर मुलायम सी रुई निकलना बड़ा अच्छा लगता है .

नागफनी (prickly pear)
नागफनी को संस्कृत भाषा में वज्रकंटका कहा जाता है . इसका कारण शायद यह है कि इसके कांटे बहुत मजबूत होते हैं . पहले समय में इसी का काँटा तोडकर कर्णछेदन कर दिया जाता था .इसके  Antiseptic होने के कारण न तो कान पकता था और न ही उसमें पस पड़ती थी . कर्णछेदन से hydrocele की समस्या भी नहीं होती।
     .           इसमें विरेचन की भी क्षमता है . पेट साफ़ न होता हो तो इसके ताज़े दूध की 1-2 बूँद बताशे में डालकर खा लें ; ऊपर से पानी पी लें . इसका दूध आँख में नहीं गिरना चाहिए . यह अंधापन ला सकता है . लेकिन आँखों की लाली ठीक करनी हो तो इसके बड़े पत्ते के कांटे साफ करके उसको बीच में से फाड़ लें . गूदे वाले हिस्से को कपडे पर रखकर आँख पर बाँधने से आँख की लाली ठीक हो जाती है .
                         अगर सूजन है , जोड़ों का दर्द है , गुम चोट के कारण चल नहीं पाते हैं तो , पत्ते को बीच में काटकर गूदे वाले हिस्से पर हल्दी और सरसों का तेल लगाकर गर्म करकर बांधें . 4-6 घंटे में ही सूजन उतर जायेगी . Hydrocele की समस्या में इसी को लंगोटी में बांधें . कान में परेशानी हो तो इक्का पत्ता गर्म करके दो-दो बूँद रस डालें . इसके लाल और पीले रंग के फूल होते हैं . फूल के नीचे के फल को गर्म करके या उबालकर खाया जा सकता है . यह फल स्वादिष्ट होता है ।यह पित्तनाशक और ज्वरनाशक होता है . अगर दमा कीबीमारी ठीक करनी है तो इसके फल को टुकड़े कर के , सुखाकर ,उसका काढ़ा पीयें . इस काढ़े से साधारण खांसी भी ठीक होती है ।
                          ऐसा माना जाता है की अगर इसके पत्तों के 2 से 5 ग्राम तक रस का सेवन प्रतिदिन किया जाए तो कैंसर को रोका जा सकता है . लीवर , spleen बढ़ने पर , कम भूख लगने पर या ascites होने पर इसके 4-5 ग्राम रस में 10 ग्राम गोमूत्र , सौंठ और काली मिर्च मिलाएं . इसे नियमित रूप से लेते रहने से ये सभी बीमारियाँ ठीक होती हैं . श्वास या कफ के रोग हैं तो एक भाग इसका रस और तीन भाग अदरक का रस मिलाकर लें .
                              इसके पंचाग के टुकड़े सुखाकर , मिटटी की हंडिया में बंद करके फूंकें . जलने के बाद हंडिया में राख रह जाएगी । इसे नागफनी का क्षार  कहा जाता है । इसकी 1-2 ग्राम राख शहद के साथ चाटने से या गर्म पानी के साथ लेने से हृदय रोग व सांस फूलने की बीमारी ठीक होती है . घबराहट दूर होती है । इससे मूत्र रोगों में भी लाभ मिलता है . श्वास रोगों में भी फायदा होता है .
                सामान्य सूजन हो ,सूजन से दर्द हो , uric acid बढ़ा हुआ हो , या arthritis की बीमारी हो . इन सब के लिए नागफनी की 3-4 ग्राम जड़ + 1gm मेथी +1 gm अजवायन +1gm सौंठ लेकर इनका काढ़ा बना लें और पीयें .
                               नागफनी का पौधा पशुओं से खेतों की रक्षा ही नहीं करता बल्कि रोगों से हमारे शरीर की भी रक्षा करता है .

थूहर (milk bush)
थूहर का पौधा राजस्तान में खेतों की बाड़ की तरह लगाया जाता है , जिससे की पशु खेत में न आ सकें . यह कांटेदार होता है . इसे सभी जगह उगाया जा सकता है . इसकी डंडी तोड़ने पर सफ़ेद दूध सा निकलता है . यह आँख में नहीं पड़ना चाहिए ; नहीं तो अंधापन आ सकता है . लेकिन इसके दूध में रुई भिगोकर सुखाई जाए और उसकी बत्ती बनाकर सरसों के तेल में जलाई जाए . उससे जो काजल बनाया जाएगा , वह आँखों के लिए सर्वोत्तम है . यह काजल आँख के infections खत्म करता है और नेत्रज्योति बढ़ाता है .
                           इसके दूध में छोटी हरड भिगोकर सुखा दें . इस सूखी हुई हरड को घिसकर थोडा सा रात को लिया जाए तो कब्ज़ दूर होता है और पुराने से पुराना मल निकल जाता है . अगर कर्ण रोग है तो इसके पीले पड़े हुए पत्तों को गर्म करके कान में दो दो बूँद रस ड़ाल सकते हैं . फोड़े होने पर या सूजन होने पर इसके पत्ते गरम करके बांधे जा सकते हैं .
            अगर खाज खुजली या चमला की बीमारी है तो 1-2 चम्मच सरसों के तेल में इसके दूध की 4-5 बूँदें अच्छी तरह मिलाकर लगायें . अगर eczema या psoriasis की बीमारी है तो इसका तेल बनाकर लगाएँ. इसे किसी बोरे में कूटकर दो लिटर रस निकालें.  इसे आधा लिटर सरसों के तेल में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएँ . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और त्वचा पर लगाएँ .

सहदेवी


सहदेवी का छोटा सा पौधा हर जगह खरपतवार की तरह पाया जाता है . इसके नन्हें नन्हें जामुनी रंग के फूल होते हैं .इसका पौधा अधिक से अधिक एक मीटर तक ऊंचा हो सकता है . सहदेवी का पौधा नींद न आने वाले मरीजों के लिए सबसे अच्छा है . इसे सुखाकर तकिये के नीचे रखने से अच्छी नींद आती है . इसके नन्हे पौधे गमले में लगाकर सोने के कमरे में रख दें . बहुत अच्छी नींद आएगी .
                   यह बड़ी कोमल प्रकृति का होता है . बुखार होने पर यह बच्चों को भी दिया जा सकता है . इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें . यह लीवर के लिए भी बहुत अच्छा है .
                अगर रक्तदोष है , खाज खुजली है , त्वचा की सुन्दरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पावडर खाली पेट लें . अगर आँतों में संक्रमण है , अल्सर है या फ़ूड poisoning हो गई है , तो 2 ग्राम सहदेवी और 2 ग्राम मुलेटी को मिलाकर लें . केवल मुलेटी भी पेट के अल्सर ठीक करती है . अगर मूत्र संबंधी कोई समस्या है तो एक ग्राम सहदेवी का काढ़ा लिया जा सकता है .


अपराजिता
अपराजिता की बेल बहुत सुन्दर होती है . इसके या तो नीले रंग के छोटे छोटे फूल होते हैं या फिर सफ़ेद रंग के . इसे अश्वखुरा भी कहते हैं . इसको रोग पराजित नहीं कर सकते . ऐसा माना जाता है की तंत्र मन्त्र में भी इसका प्रयोग होता है . अगर migraine या अधसीसी का दर्द रहता है तो इसकी जड़ की रस की 4-4 बूँदें नाक में ड़ाल लें. इसकी जड़ पीसकर माथे पर लेप भी करें .
                बार -बार बुखार आता हो तो इसके जड़ के टुकड़े लाल धागे में माला की तरह पहनें ; इसकी जड़ का काढ़ा पीयें . पीलिया होने पर भी ऐसा ही करें . खांसी होने पर इसकी जड़ के साथ 4-5 काली मिर्च लें और उसमें 2-3 पत्ते तुलसी के डालकर काढ़ा बनाकर पीयें . टांसिल बढ़ जाने पर इसके और अमरुद के पत्ते पानी में उबालकर , उसके गरारे करें .  इसकी पत्तियों को पीसकर गले पर लेप करें . बच्चों को खांसी हो तो इसके बीज का पावडर 250 mg शहद के साथ चटायें . Hydrocele की समस्या हो तो इसकी पत्तियां पीसकर बांधें . गर्भाशय बाहर आता हो तो इसके पत्ते +चांगेरी घास (खट्टा मीठा) +फिटकरी उबालकर , उस पानी से धोएं .
                 Overbleeding  हो या जल्दी जल्दी periods आते हों , तो इसकी 4-5 पत्तियों का रस लेते रहें . Delivery होने वाली हो तो इसकी जड़ धागे में बांधकर कमर में बाँध लें और बाद में तुरंत हटा दें . सूजाक या संक्रमण हो तो इसके पत्ते उबालकर धोएं . कम पेशाब आता हो तो इसके पत्ते पीसकर पानी में मिश्री के साथ लें . Elephant Leg हो गया हो तो इसकी जड़ और बीज का पावडर 1-1 चम्मच गर्म पानी से लें .अगर  घाव हो तो इसके पत्ते उबालकर उस पानी से धोएं . यह विरेचक भी होता है और कब्ज़ दूर करता है . इसे गमले में आराम से लगा सकते हैं .

गोखरू

गोखरू का पौधा ज़मीन पर घास के साथ साथ ही उगा हुआ दिख जाता है . इसके नन्हे नन्हे पीले फूल होते हैं . इसे गोक्षुर भी कहते हैं . शायद इसलिए , क्योंकि गाय चलती है तो उसके खुर इस पर पड़ते हैं . यह kidney के लिए सर्वोत्तम है . इसके पंचांग या केवल फल का काढ़ा लेने से किडनी ठीक हो जाती है . Uric acid बढ़ गया है और इसकी वजह से पैरों में सूजन है ,तो गोखरू +सौंठ+मेथी+अश्वगंधा बराबर मात्रा में लेकर 5 ग्राम मिश्रण का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . खांसी है तो गोखरू +तुलसी +सौंठ का काढ़ा लें .
                         बार बार पेशाब आता है , या रुक रुक कर आता है या फिर prostrate glands की समस्या है तो गोखरू और काला तिल बराबर मात्रा में मिलाकर प्रात: सांय लें . शरीर में शक्ति की कमी है तो यह रसायन का भी काम करता है . इसे भृंगराज ,मुलेटी, और आंवले के साथ मिलाकर सवेरे शाम लें .
              इसका काढ़ा लेने से पथरी निकल जाती है और दोबारा नहीं होती . इसका काढ़ा सिरदर्द ठीक करता है और गर्भाशय के विकारों को भी ठीक करता है . अगर 10 ग्राम गोखरू के बीज और 2 ग्राम अजवायन मिलाकर काढ़ा पीया जाए तो delivery के बाद जहाँ गर्भाशय को शुद्ध करता है ; वहीँ पाचन को भी अच्छा करता है .

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