नागफनी (prickly pear)
नागफनी को संस्कृत भाषा में वज्रकंटका कहा जाता है . इसका कारण शायद यह है कि इसके कांटे बहुत मजबूत होते हैं . पहले समय में इसी का काँटा तोडकर कर्णछेदन कर दिया जाता था .इसके Antiseptic होने के कारण न तो कान पकता था और न ही उसमें पस पड़ती थी . कर्णछेदन से hydrocele की समस्या भी नहीं होती।
. इसमें विरेचन की भी क्षमता है . पेट साफ़ न होता हो तो इसके ताज़े दूध की 1-2 बूँद बताशे में डालकर खा लें ; ऊपर से पानी पी लें . इसका दूध आँख में नहीं गिरना चाहिए . यह अंधापन ला सकता है . लेकिन आँखों की लाली ठीक करनी हो तो इसके बड़े पत्ते के कांटे साफ करके उसको बीच में से फाड़ लें . गूदे वाले हिस्से को कपडे पर रखकर आँख पर बाँधने से आँख की लाली ठीक हो जाती है .
अगर सूजन है , जोड़ों का दर्द है , गुम चोट के कारण चल नहीं पाते हैं तो , पत्ते को बीच में काटकर गूदे वाले हिस्से पर हल्दी और सरसों का तेल लगाकर गर्म करकर बांधें . 4-6 घंटे में ही सूजन उतर जायेगी . Hydrocele की समस्या में इसी को लंगोटी में बांधें . कान में परेशानी हो तो इक्का पत्ता गर्म करके दो-दो बूँद रस डालें . इसके लाल और पीले रंग के फूल होते हैं . फूल के नीचे के फल को गर्म करके या उबालकर खाया जा सकता है . यह फल स्वादिष्ट होता है ।यह पित्तनाशक और ज्वरनाशक होता है . अगर दमा कीबीमारी ठीक करनी है तो इसके फल को टुकड़े कर के , सुखाकर ,उसका काढ़ा पीयें . इस काढ़े से साधारण खांसी भी ठीक होती है ।
ऐसा माना जाता है की अगर इसके पत्तों के 2 से 5 ग्राम तक रस का सेवन प्रतिदिन किया जाए तो कैंसर को रोका जा सकता है . लीवर , spleen बढ़ने पर , कम भूख लगने पर या ascites होने पर इसके 4-5 ग्राम रस में 10 ग्राम गोमूत्र , सौंठ और काली मिर्च मिलाएं . इसे नियमित रूप से लेते रहने से ये सभी बीमारियाँ ठीक होती हैं . श्वास या कफ के रोग हैं तो एक भाग इसका रस और तीन भाग अदरक का रस मिलाकर लें .
इसके पंचाग के टुकड़े सुखाकर , मिटटी की हंडिया में बंद करके फूंकें . जलने के बाद हंडिया में राख रह जाएगी । इसे नागफनी का क्षार कहा जाता है । इसकी 1-2 ग्राम राख शहद के साथ चाटने से या गर्म पानी के साथ लेने से हृदय रोग व सांस फूलने की बीमारी ठीक होती है . घबराहट दूर होती है । इससे मूत्र रोगों में भी लाभ मिलता है . श्वास रोगों में भी फायदा होता है .
सामान्य सूजन हो ,सूजन से दर्द हो , uric acid बढ़ा हुआ हो , या arthritis की बीमारी हो . इन सब के लिए नागफनी की 3-4 ग्राम जड़ + 1gm मेथी +1 gm अजवायन +1gm सौंठ लेकर इनका काढ़ा बना लें और पीयें .
नागफनी का पौधा पशुओं से खेतों की रक्षा ही नहीं करता बल्कि रोगों से हमारे शरीर की भी रक्षा करता है .
भुट्टा (corn)
भुट्टे को संस्कृत में महाकाय भी कहा जाता है ; हो सकता है कि इसका कारण इसकी आकृति की विशालता हो . इसमें कमजोरी और सूखा रोग को ठीक करने की क्षमता है . इसे भूनकर खाया जाए तो कफ ठीक होता है . शुगर के मरीजों को इसका कम सेवन करना चाहिए . विदेशों में तो इससे शर्करा भी प्राप्त की जाती है . White discharge की समस्या हो तो भुट्टे के बालों का मिश्री के साथ सेवन करें . अधिक bleeding या U T I infection है तो भुट्टे के बाल और शीशम के पत्ते मिलाकर लें .
कच्चे भुट्टे को डंठल समेत कूटकर चाय या काढ़ा बनाया जाए तो कफ रोगों में फायदा करता है . पथरी में इसके डंठल की राख 3 ग्राम के करीब शहद के साथ लें . धसका या खांसी हो तो इसी राख को शहद और अदरक का रस मिलाकर लें . पेशाब की समस्या हो तो राख ठन्डे पानी से लें . इसकी जड़ का काढ़ा मूत्र संबंधी विकारों को भी ठीक करता है . भुट्टे के बालों का प्रयोग periods की समस्या को भी ठीक करता है . अगर दस्त लग गए हों तो इसके डंठल की राख ले लें . Colitis की समस्या हो तो इसके डंठल की 50 gm राख में 100 gm बेल का पावडर मिला कर एक-एक चम्मच लें . अगर जोड़ों का दर्द हो या सूजन हो तो शुरू की अवस्था में तो भुट्टा लाभ करता है ; लेकिन अगर ये समस्याएं बढ़ गई हैं तो फिर भुट्टा खाने से नुकसान हो सकता है .
भुट्टा हृदय की मांसपेशियों को चुस्त रखता है . गुर्दे और prostate की बीमारियों के लिए भी दवा है . हिचकी आती हों तो भुट्टे की राख शहद के साथ चाटें . पशु अगर भुट्टे के पत्ते अधिक खा लें तो दस्त लग सकते हैं ; लेकिन अगर भुट्टे का छिलका खाते हैं तो उनके दस्त ठीक हो जाते हैं .
अस्थमा होने पर .......
अस्थमा होने पर बहुत परेशानी होती है . इसका एक इलाज पीपल के पास भी है . पीपल के अन्दर वाली गीली छाल 5-10 ग्राम लेकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर लें . अब चावल की खीर लगभग 200 ग्राम इस छाल को डालकर पकाएँ. यह खीर शरद पूर्णिमा की रात को बनाकर 4-5 घंटे तक खुले में चांदनी में रखें . अस्थमा के मरीज़ को यह पूरी खीर खिला दें और सारी रात सोने न दें . किसी-किसी मरीज़ को तो इससे एक दिन में ही लाभ हुआ है . यह प्रयोग किसी भी पूर्णिमा को किया जा सकता है ; परन्तु शायद असर थोडा कम होगा .
वरुण (three leaf caper)
वरुण को हिन्दी में बर्नी या बरना भी कहते हैं . जंगल का यह विशालकाय वृक्ष वसंत ऋतु में सुंदर फूलों से लद जाता है . इसकी मोटी छाल गुर्दे और पथरी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है . इससे blood urea का स्तर ठीक हो जाता है . शुगर की बीमारी में इसकी छाल का काढ़ा फायदा करता है . पथरी हो तो इसकी छाल +गोखरू +कुलथ की दाल +पाषाणभेद को मिलाकर काढ़ा बनायें और पीयें . पानी ज्यादा पीयें .
आँख में सूजन या लाली हो तो इसकी छाल की पेस्ट रुई पर रखकर आँख पर बांधें . गले में गाँठ या tonsils हों तो इसकी छाल का काढ़ा लें . गले में सूजन हो तो 1gm काली मिर्च , 1gm त्रिकुटा , 3gm बहेड़ा और 5gm वरुण की छाल लेकर इसका काढ़ा पीयें . इस काढ़े से thyroid और goitre की समस्याएं भी ठीक होती हैं . Piles या anus की कोई भी समस्या हो तो 5gm वरुण की छाल और 3gm त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बनाएं और पीयें . यह रक्तशोधक भी है . इसकी पत्तियों को कूटकर काढ़ा लेने से खाज खुजली ठीक होती है . फोड़े फुंसी पर इसकी पत्तियां उबालकर और थोडा नमक डालकर बाँध लें .
इसकी कोमल पत्तियों का साग अगर वसंत ऋतु में तीन दिन भी खाया जाए तो पथरी होने की सम्भावना कम हो जाती है . पथरी होने पर इसके फूल व कोमल पत्तियों का काढ़ा पीयें . इसके फूल सुखाकर उसकी चाय पीने से भी पथरी नहीं होती और इससे रक्तशोधन भी होता है . इसके फूल और कोमल पत्तियों को सुखाकर उसके 3 gm पावडर की चाय लेने से गला ठीक रहता है , त्वचागत रोग नहीं होते , kidney ठीक रहती है और पथरी होने की सम्भावना भी कम हो जाती है . Arthritis या सूजन होने पर इसकी पत्तियों को उबालकर सिकाई करें और बाँध भी दें . यदि arthritis की शुरुआत में ही इसकी पत्तियों का काढ़ा पीते रहें तो यह रोग पूर्ण तया ठीक हो जाता है .
गेंदा ; African marigold(dwarf)
फूलों का हार भगवान को समर्पित करना हो या किसी विशिष्ट जन को ; गेंदा ही शोभायमान करता है . पवित्रता और सुन्दरता से भरे इस फूल में दैवी गुण विद्यमान हैं . इसकी माला धारण करने मात्र से मन की प्रसन्नता बढ़ती है . दांत या मसूढ़ों में सूजन या दर्द है तो इसके फूलों की पत्तियां या इसकी हरी पत्तियां चबाकर , उँगलियों से मसूढ़े की मालिश करें . बाद में अच्छे से कुल्ला कर लें इसके अतिरिक्त इसके फूलों के रस में सेंधा नमक मिलकर मसूढ़ों की मालिश करने से भी आराम मिलता है . इसके पत्तों के रस में गरम पानी मिलाकर नमक डालकर गरारे करने से गले में भी लाभ होता है .
आँख में दर्द लालिमा इत्यादि हो तो पत्तों की लुगदी रुई पर रखकर आँख बंद कर पट्टी बाँध लें .कान में पस या दर्द हो तो इसके पत्तों का रस पीसकर 2-2 बूँद कान में टपकाएं. Piles की समस्या हो या anus बाहर आने की , इसके फूलों की 3 ग्राम पत्तियां पीसकर , मिश्री मिलाकर खाली पेट खाएं . Piles में इसकी हरी पत्तियों का 4-5 चम्मच रस सवेरे शाम खाली पेट लिया जा सकता है .
कहीं भी घाव या सूजन हो तो इसकी पत्तियां और फूल उबालकर ,उस पानी से धोएं . मुहासे या झाइयाँ हों तो इसके फूल व पत्तियों के रस को चेहरे पर मलें . पेशाब खुलकर न आता हो या urine में infection हो तो इसकी 5-10 ग्राम पत्तियों का रस खाली पेट लें . खांसी या श्वास रोग में इसके 3-4 ग्राम सूखे फूल पत्तियों का काढ़ा पीयें . इसमें तुलसी और काली मिर्च दाल दें तो और भी अच्छा है . इस काढ़े को पीने से allergy भी ठीक हो जाती है . इसके पत्तों की लुगदी लगाने से शरीर की किसी भी तरह की गाँठ ठीक होती है .
शरीर में कमजोरी है तो फूल की पंखुडियां उखाडकर सफ़ेद वाले भाग को सुखाकर 20 ग्राम में 50 ग्राम मिश्री मिलाएं . फिर इसका एक चम्मच सवेरे दूध के साथ लें . इसके पंखुड़ी के नीचे का काला बीज 3-5 ग्राम कामशक्ति बढाता है ; लेकिन 5 ग्राम से अधिक लेने पर कामशक्ति कम करता है . कितना अद्भुत संयोग है ! इसके सूखे फूल की पंखुड़ियों की चाय स्वादिष्ट भी होती है और लाभदायक भी . जापान ,चीन आदि देशों में तो इसी तरह की अलग -अलग जड़ी बूंटीयों की चाय पीई जाती है . वे लोग कितने स्वस्थ रहते हैं !
इसे घर में लगाने से वास्तुदोष समाप्त होते हैं और ग्रहों की शान्ति होती है . क्यों न अपने घरों में इसे उगाकर हम इसका भरपूर लाभ उठाएँ .
लाजवंती ( touch me not )
छुईमुई का पौधा एक विशेष पौधा है .इसके गुलाबी फूल बहुत सुन्दर लगते हैं और पत्ते तो छूते ही मुरझा जाते हैं . इसे लाजवंती भी कहते हैं . अगर खांसी हो तो इसके जड़ के टुकड़ों के माला बना कर गले में पहन लो . हैरानी की बात है कि जड़ के टुकड़े त्वचा को छूते रहें ; बस इतने भर से गला ठीक हो जाता है . इसके अलावा इसकी जड़ घिसकर शहद में मिलाये . इसको चाटने से , या फिर वैसे ही इसकी जड़ चूसने से खांसी ठीक होती है . इसकी पत्तियां चबाने से भी गले में आराम आता है .
स्तन में गाँठ या कैंसर की सम्भावना हो तो , इसकी जड़ और अश्वगंधा की जड़ घिसकर लगाएँ . इसका मुख्य गुण संकोचन का है . इसलिए अगर कहीं भी मांस का ढीलापन है तो , इसकी जड़ का गाढ़ा सा काढा बनाकर वैसलीन में मिला लें और मालिश करें . anus बाहर आता है तो toilet के बाद मालिश करें . uterus बाहर आता है तो , पत्तियां पीसकर रुई से उस स्थान को धोएँ . hydrocele की समस्या हो या सूजन हो तो पत्तोयों को उबालकर सेक करें या पत्तियां पीसकर लेप करें . हृदय या kidney बढ़ गए हैं, उन्हें shrink करना है , तो इस पौधे को पूरा सुखाकर , इसके पाँचों अंगों (पंचांग ) का 5 ग्राम 400 ग्राम पानी में उबालें . जब रह जाए एक चोथाई, तो सवेरे खाली पेट पी लें .
यदि bleeding हो रही है piles की या periods की या फिर दस्तों की , तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ पीसकर उसे दही में मिलाकर प्रात:काल ले लें ,या इसके पांच ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ. Goitre की या tonsil की परेशानी हो तो , इसकी पत्तियों को पीसकर गले पर लेप करें . Uterus में कोई विकार है तो , इसके एक ग्राम बीज सवेरे खाली पेट लें .अगर diabetes है तो इसका 5 ग्राम पंचांग का पावडर सवेरे लें . पथरी किसी भी तरह की है तो , इसके 5 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ . पेशाब रुक - रुक कर आता है या कहीं पर भी सूजन या गाँठ है तो इसके 5 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ
यह पौधा बहुत गुणवान है और बहुत विनम्र भी ; तभी तो इतना शर्माता है . आप भी इसे लजाते हुए देख सकते है . बस अपने गमले में लगाइए और पत्तियों को छू भर दीजिये .
आइए हज़ूर ; खाइए खजूर !
खजूर केवल स्वादिष्ट ही नहीं होता ; कफ और बलगम को भी खत्म करता है . 10-15 खजूरों को, बीज निकालकर दूध में पकाएँ और पी लें . इससे कमजोरी भी मिटेगी. शुक्राणुक्षीणता की समस्या भी ठीक होगी . Prostate या kidney की समस्या हो तो चार पांच छुहारे ( सूखी खजूर ) रात को भिगोकर सवेरे खाली पेट चबा चबाकर खाएं . खजूर रक्त शोधक होता है और रक्त को बढाता भी है .
खजूर पेट साफ़ करने में सहायक होता है . बच्चे बिस्तर में पेशाब करते हों तो खजूर वाला दूध दें .पेशाब कम आता हो तो इसके पेड़ की पत्तियां कूटकर , मिश्री मिलाकर शर्बत की तरह पीयें . इस शर्बत को पीने से ताकत भी आती है . प्रमेह की बीमारी में इसके 3-4 पत्तों का शरबत 15-20 दिन पीयें . दमा के रोगी भी खजूर को दूध में पकाकर ले सकते हैं . अगर बवासीर की बीमारी हो तो खजूर बहुत कम खाने चाहिए . वैसे भी बहुत अधिक खजूर नहीं खाने चाहिएँ , क्योकि इसका पाचन मुश्किल होता है .
मेंहदी रंग लाएगी !
मेंहदी का नाम सुनते ही मुझे तो सावन की तीज का त्यौहार याद आता है . लेकिन आजकल मेंहदी बालों को रंगने के लिए ज्यादा प्रयोग में लाई जाती है. लोहे की काली कढ़ाई में मेंहदी+भृंगराज+आंवला +रतनजोत मिलाकर रात को भिगो दें . सवेरे इसमें थोडा Aloe Vera का गूदा अच्छे से मिला कर बालों में लगा कर छोड़ दें . कुछ घंटों बाद सिर धोएँ . बाल मज़बूत होंगे , अच्छा रंग चढ़ेगा और सबसे अच्छी बात यह है कि यह सिरदर्द और आँखों के लिए भी अच्छा नुस्खा है . अगर बिलकुल काले रंग के बाल करने हैं , तो नील के पत्ते भी पीसकर मिला दें .
अगर अरंड के पत्तों के साथ मेंहदी की पत्तियों को पीसकर तेल में पकाकर, थोड़ा भूनकर घुटनों पर बाँधा जाए , तो दर्द में आराम मिलता है . अगर मुंह में छाले हो गये हों तो इसके पत्तों को पानी में उबालकर कुल्ले करें , या पत्तियों को मुंह में थोड़ी देर चबाएं और थूक दें . छाले ठीक हो जायेंगे . यदि E.S.R. बढ़ गया है, शरीर में pus cells बढ़ गए हैं ; prostate बढ़ गया है या पथरी की शिकायत है ; तो मेंहदी की 2-3 ग्राम छाल और 2-3 ग्राम पत्तियां लेकर उसे 200 ग्राम पानी में पकाएं . जब आधा रह जाए तो खाली पेट पी लें .
अगर मूर्छा आती हो , तो कुछ पत्तों का शरबत तुरंत पीयें ; आराम मिलेगा . गर्मी बहुत ज्यादा लगती हो या पीलिया हो गया हो तो 3-4 ग्राम पत्तियां लेकर पीस लें और 300-400 ग्राम पानी में रात को मिटटी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे इसमें मिश्री मिलाकर खाली पेट पीयें . इससे hormones का असंतुलन भी ठीक होता है. मेहंदी को शरीर पर लेप करने मात्र से हारमोन संतुलित होने लगते हैं . इसका लेप लगाने से और पत्तों का शरबत पीने से पसीने का हथेलियों पर आना , और पसीने की बदबू आदि खत्म हो जाते हैं .
हाथ में जलन होती हो , पसीना अधिक आता हो , बिवाई बहुत फटती हों तो इसके पत्ते पीस कर लेप करें . सिरदर्द रहता हो तो इसमें तुलसी के पत्ते मिलाकर माथे पर लेप करें . मेंहदी का तेल भी सिर के लिए बहुत अच्छा है . इसके लिए इसके 750 ग्राम पत्ते +250 ग्राम बीज +250 ग्राम इसकी छाल लेकर 4 किलो पानी में पकाएं . यह धीमी आंच पर पकाना है . जब एक चौथाई रह जाए , तो उसमें एक किलो सरसों का तेल मिला लें . फिर धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए ; तो छानकर शीशी में भर लें . यह तेल बालों के लिए, आँखों के लिए और सिरदर्द के लिए बहुत ही बढिया है .
त्वचा के सभी रोगों के लिए, चाहे वह eczema हो या psoriasis ; पैर की अँगुलियों के बीच में गलन हो , या फुंसियाँ हो ; सभी के लिए मेंहदी और नीम के पत्ते पीसकर लगाइए . आँखों में लाली हो या दर्द हो या फिर जलन हो, तो इसके पत्तों को पीसकर लुगदी बनाएँ , आँखें बंद करके इस टिकिया को रखें और पट्टी बांध कर लेट जाएँ . चाहे तो रात को बांधकर सो जाएँ .
और जब मेंहदी लगाई जाए गोरे गोरे हाथों पर; तो हथेलियों की सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं!
भांग (cannabis)
होली पर भांग के पकौड़े बनाने व् खाने का प्रचलन है . शिवजी को भी भांग घोटकर पीते हुए दिखाया जाता है . वास्तव में भांग नशे की वस्तु नही, अपितु श्रेष्ठ औषधि है ।
हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हों तो भांग में थोडा हींग मिलाकर मटर के बराबर गोली सवेरे शाम लें । सिर दर्द ठीक करने के लिए भांग के पत्तों की लुगदी को सूंघें । इसके पत्तों के रस की दो -दो बूँद नाक में डालें ।इससे भी सिर दर्द ठीक हो जाता है ।
अगर colitis हो या amoebisis हो तो कच्ची बेल का चूर्ण +सौंफ +भांग का चूर्ण बराबर मात्रा में मिला लें . एक एक चम्मच सवेरे शाम लें । नींद न आती हो या दौरे पड़ते हों तो , ब्राह्मी , शंखपुष्पी ,सौंफ और भांग बराबर मात्रा में लेकर , एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . migraine होने पर ये चूर्ण भी लें तथा भांग पीसकर माथे पर लेप करें । इसका पावडर रात को सूंघने मात्र से ही अच्छी नींद आती है ।
नींद न आती हो तो 5 ग्राम भांग के पावडर में 1-2 ग्राम सर्पगन्धा का पावडर मिलाकर रात को सोते समय लें । सिरदर्द में इसका दो बूँद रस नाक में डालें या पावडर सूंघें . हिस्टीरिया में भी इसका पावडर लाभ करता है . शक्ति प्राप्त करने के लिए इसके बीज का पावडर एक -एक चम्मच सवेरे लें .
sinusitis हो तो इसके पत्तों की तीन तीन बूँद नाक में टपका लें . कान में दर्द हो तो दो बूँद कान में भी डाल सकते हैं .कमजोरी हो तो इसके बीज पीसकर पानी के साथ या दूध के साथ लें . जोड़ों का दर्द हो तो इसके बीजों को सरसों के तेल में पकाकर उस तेल से मालिश करें .इसके अतिरिक्त भांग के बीजों का पावडर एक चम्मच पानी के साथ लें . अगर कोई कीड़ा काट गया है , या फिर घाव हो गया है ; तो इसके पत्तों के काढ़े में सेंधा नमक मिलाकर उस जगह को अच्छे धोएं और उस पर डालते रहें . तो भांग नशे की वस्तु नहीं बल्कि दवाई है
यह वायुमंडल को भी शुद्ध करती है . विषैली जड़ी बूटियों को भी खेत में पैदा नहीं होने देती . इसे खेत में लगाने से गाजर घास जैसी खरपतवार भी स्वयं समाप्त हो जाती है . यह शरीर के भी विषैले तत्व खत्म करती है . पहाडी क्षेत्रों में तो इसके बीजों को शक्ति प्राप्त करने के लिए नाश्ते में भी लिया जाता है ।
. अंजीर ( fig) रोगनिवारक मेवा !
अंजीर का फल जितना खाने में स्वादिष्ट लगता है ; उतना ही गुणों से भी भरपूर है. अगर दुर्बलता है तो दो अंजीर रात को थोड़े पानी में भिगो दें . सवेरे पहले पानी पी लें . फिर अंजीर को चबा चबा कर खाएं . हृदय रोगी या निम्न रक्तचाप वाले भी यही प्रयोग कर सकते हैं . अगर सूखा अंजीर खाया जाए तो इसकी तासीर गर्म होती है , लेकिन कुछ देर भिगो देने पर तासीर ठंडी हो जाती है .लीवर ठीक नहीं है , हीमोग्लोबिन कम है या पाचन शक्ति कम हो गयी है ; तब भी यह भरपूर फायदा करता है . अगर constipation है तो इसे लेने से पेट साफ़ हो जाता है .
खांसी होने पर अंजीर , मुलेठी और तुलसी मिलाकर काढ़ा लिया जा सकता है .श्वास रोग हो तब भी इसे खा सकते हैं यह नुक्सान नहीं करती . periods irregular हों तो दशमूलारिष्ट के साथ साथ अंजीर भी लेते रहें . अगर पीलिया हो गया है तो सर्वक्ल्प क्वाथ में अंजीर डालकर काढ़ा बनाएं . पीलिया बहुत जल्द ठीक होगा ..इसके रोज़ लेने से फोड़े फुंसी भी नही होते . चेहरे की कांति बढ़ती है . उर्जा आती है . आप आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो जाते हैं . है न मज़े की बात मेवा की मेवा और लाभ अनगिनत
धनिया (coriander)
धनिया पत्ते के रूप में भी लिया जाता है और इसके दाने भी खाए जाते हैं . यह खुशबूदार भी है और औषधि का कार्य भी करता है . अगर bleeding ज्यादा हो रही हो धनिए के पत्तों का चार पांच चम्मच जूस थोडा कपूर मिलाकर ले लें . अगर गले में दर्द है , तो धनिया और काली मिर्च चूस लें . अगर सिरदर्द या acidity से परेशानी है तो एक चम्मच धनिया पावडर +एक चम्मच आंवले का पावडर +शहद रात को एक मिटटी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे मसलकर पी लें . प्रतिदिन ऐसा करने से कुछ समय बाद दोनों परेशानी दूर हो जाती हैं .
यदि पसीने से दुर्गन्ध आती हो तो तीन ग्राम धनिया +पांच ग्राम आंवला +कालीमिर्च मिलाकर पानी के साथ ले लें . बदबू आनी बंद हो जायेगी . acidity . खट्टी डकार ,ulcer या gastric trouble हो तो धनिया पावडर एक चम्मच खाली पेट ले लें . जोड़ों का दर्द होने पर मेथी , अजवायन के साथ भुने हुए धनिए का पावडर मिला दें और एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लें . छोटे बच्चे को खांसी हो तो धनिया पावडर भूनकर शहद के साथ चटा दो.
मुख से दुर्गन्ध आती हो या गले का infection हो तो आठ दस धनिए के दाने चूसते रहो . इससे पेट भी ठीक रहेगा . आँख में जलन है तो ,ताज़े आंवले के या सूखे आंवले के चार पांच टुकड़े और कुछ दाने धनिए के एक कप पानी में डालकर रात को भिगो दें . सवेरे इस पानी से आँख धोएं .
pregnency में उल्टी आती हो तो धनिए का पावडर और मिश्री मिलाकर एक चम्मच पानी या दूध के साथ लें . चेहरे पर झाइयाँ हों तो इसकी पत्तियां पीसकर चेहरे पर मलें . पेशाब में जलन हो या रुक रुक कर आ रहा हो तो , थोडा आंवला और धनिए का पावडर रात को भिगोकर सवेरे ले लें . छोटे बच्चे को पेट दर्द या अफारा हो तो एक ग्राम धनिया पानी में भिगो कर थोड़ी देर में पिला दें . बच्चे को गर्मी से बुखार हो या भूख न लगती हो तो एक ग्राम धनिए को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पिला दें . काढ़ा मतलब कि आधा पानी कढ जाए या उड़ जाए तो बचा हुआ solution छानकर दे दें . इसे बड़े थोड़ी अधिक मात्रा में ले सकते हैं.
रसोई में रखा धनिया मसाला ही नहीं ; दवाई भी है .
रत्ती या गुंजा (abrus precatorius)
इसकी जड़ चूसो तो गला ठीक रहता है . और पत्तियां चबाने से मुख में दुर्गन्ध नहीं रहती . मुंह के छाले भी ठीक होते हैं . ये वही रत्ती है जो पहले माप तोल में काम में लाई जाती थी . इसे गुंजा भी कहते हैं और इसकी माला भी पहनते हैं. माला पहनने का भी औषधीय लाभ होता है. इसकी लता को आराम से कहीं पर भी उगा सकते हैं.
जोंक (leech) ; प्राकृतिक शल्य चिकित्सक
क्या आप जानते हैं की इस चित्र में क्या हो रहा है ?यह कहा जाए कि शल्य चिकित्सा हो रही है; तो शायद आप हैरान हो जाएँ . अगर कहा जाए कि जोंक हमारे प्राकृतिक शल्य चिकित्सक हैं ; तो गलत न होगा .
माँ बताती थी कि पहले ज़माने में अगर किसी की त्वचा खराब हो गई होती ,या सूजन होती या फिर त्वचा गल जाती ; तो वे लोग जोंक लगवाते थे और ठीक भी हो जाते थे . माँ के दादाजी भी अक्सर जोंक वाले को बुला कर जोंक लगवाते थे ; क्योंकि उनके हाथ की अँगुलियों में खूब खुजली होती थी . उसके बाद उंगलियाँ इतनी अधिक सूज जाती थी कि वे स्वयं अपने हाथ से रोटी भी नहीं खा पाते थे. माँ कहती थी कि जोंक लगवाने के बाद उनको बहुत आराम आता था . अंगुलियाँ बिलकुल ठीक हो जाती थी . मैं यह सुनकर विश्वास सा नही कर पाती थी और यह भी सोचती थी की जोंक तो खून में एक hirudin नाम का पदार्थ डाल देती है . जिससे कि खून बहता रहता है. तो कितना खून तो व्यर्थ ही बह जाया करता होगा . क्या फायदा होता होगा इस सब का ?
लेकिन मैंने एक पत्रिका में जब इस चिकित्सा के बारे में पढ़ा , तो मैं हैरान हो गई . आयुर्वेद के आविष्कर्ता भगवान धन्वन्तरी के चार हाथ दिखाए जाते हैं . इनमे से उनके बांये हाथ में उन्हें जोंक पकडे हुए दिखाया जाता है . अर्थात जोंक भगवान धन्वन्तरी का शल्य चिकित्सक है . सुश्रुत संहिता में कई बीमारियों में जोंक द्वारा उपचार का उल्लेख है . उदहारण के तौर पर ठीक न होने वाले ulcer, शुगर के मरीजों के घाव , vericose ulcer , गठिया , psoriasis या साँप या किसी अन्य ज़हरीले कीड़े के काटने पर जोंक चिकित्सा का बहुत इस्तेमाल हुआ करता था. बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी में internal medicine department में जोंक चिकित्सा 2005 में प्रारम्भ की गई . वाराणसी या बनारस में एक जोंक 25 - 35 रूपये में मिलती है . जोंक शरीर का अशुद्ध रक्त चूसकर , शरीर में hirudin नाम का peptide डाल देती है . यह hirudin खून में थक्के जमने से रोकता है और खून के पहले से बने थक्कों को घोल देता है . इसके कारण खून शुद्ध हो जाता है ; खून का संचार तेज़ी से हो पता है . इससे शरीर में अधिक ऑक्सीजन वाला खून बहता है , जिससे कि शरीर के स्वस्थ होने की क्षमता बढ़ जाती है . यह बात बंगलौर के अस्पताल के एक बड़े डाक्टर ने बताई .
कर्नाटक के कबड्डी के खिलाड़ी जी. रामकृष्णन 72 वर्ष के हैं . उनके पैर के अंगूठे पर उबलता हुआ पानी गिर गया . अंगूठा इतनी बुरी तरह जल गया कि डाक्टर ने उसे काटने की सलाह दी . अंगूठे के नीचे एक न ठीक होने वाला ulcer बन गया . इससे पूरा पैर नीचे से सूज गया और शरीर का तापमान भी बढ़ गया . उनसे चला तक नहीं जाता था . वहाँ के आयुर्वेदिक अस्पताल में जोंक चिकित्सा की गई . इससे उनका दर्द और सूजन बहुत कम हो गई . और वे चल भी लेते हैं . कुछ महीने में ही वे पूरी तरह स्वस्थ हो जाएँगे .
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आयुर्वेद में जोंक शल्य चिकित्सा का द्योतक है . द्योतक क्या है ; मेरे विचार से जोंक पूर्ण रूप से शल्य चिकित्सक है . केवल शल्य चिकित्सक ही नहीं anaesthetist भी है . यह रक्त चूसती है तो दर्द नहीं होता . क्या आप भी मुझसे सहमत हैं ?
पालक (spinach)
पालक लगभग बारहों महीने मिलता है . इससे हीमोग्लोबिन बढ़ता है . दस पन्द्रह पालक के पत्तों का रस और एक सेब का रस मिलाकर लेने से रक्त की कमी नही रहती . पालक के सूप से ताकत आती है . अगर जड़ समेत पालक को कूट कर बीस पच्चीस मीo लीo रस खाली पेट सुबह ले लो तो पथरी चाहे कहीं की भी क्यों न हो ; खत्म हो जाती है.
आँतों में सूजन, अल्सर हो तो पालक नहीं लेना चाहिए . गले में दर्द हो तो पालक थोडा सा लें , उसे उबालें और उसमें नमक डालकर गरारे करें . चेहरे की कान्तिके लिए इसकी पत्तियों का रस चेहरे पर मलें . पेशाब खुलकर न आ रहा हो तो भी यह लाभदायक है . पालक के थोड़े से रस में पानी और चीनी मिलाकर शरबत बनायें . गर्मी भी भागेगी और iron भी मिलेगा . ऐसा कहा जाता है कि pregnancy में इसे नहीं खाना चाहिए . शायद इससे नवजात शिशु के वर्ण पर कुछ असर होता हो
मेथी (fenugreek)
मेथी हमारी रसोई का महत्वपूर्ण मसाला है . और मेथी के पत्तों के परांठे किसको पसंद नहीं हैं . नाम सुनते ही इसकी खुशबू का आभास होने लगता है . इसके औषधीय गुण सुनकर तो आप हैरान ही हो जाएँगे. कफ या बलगम की शिकायत है तो मेथी की रोटी में अदरक भी मिला लें और खाएं . एडी घुटनों या पिंडलियों का दर्द है तो मेथी के पत्तों को steam करके बाँध दें और ऊपर कपडा लपेट दें . सवेरे तक दर्द में कितना आराम होगा ; यह देखकर आप हैरान हो जाएँगे . सूजन काफी हद तक खत्म हो जायेगी . चेहरे की चमक बढानी है तो पत्ते पीसकर चेहरे पर लगाओ .
इसके दानों का सेवन वायु को हरता है . शुगर की बीमारी में या arthritis में एक डेढ़ चम्मच मेथी रात को भिगोकर सवेरे चबा चबाकर खाएं और बाद में वह पानी भी पी लें . यदि सिरदर्द या migraine का दर्द हो तब भी यही प्रयोग लाभदायक है . पेट में संक्रमण हो या delivery के बाद मेथी और अजवायन को मिलाकर बनाया हुआ काढ़ा लिया जा सकता है .sciatica या arthritis में हल्दी , मेथी और सौंठ को बराबर मात्रा में मिलाकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम ले लें .
सर्दी ,जुकाम होने पर मेथी दानों को अंकुरित करके भोजन के साथ लें . दूध आराम से पचता न हो तो मेथी दाने को भूनकर रख दें . इसे पीस लें . जब भी दूध पीना हो तब एक चम्मच मिला लें . इससे गैस भी नहीं बनेगी और दूध भी अच्छी तरह पचेगा . कद्दू की सब्जी में भी तो इसे इसीलिए डालते हैं . खुशबू की खुशबू और फायदा अलग से . यानि आम के आम गुठलियों के दाम !
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