गले की खराश, गले में दर्द, मसूड़ों में जलन, अगर आपको ऐसी दिक्कतों का बार-बार सामना करना पड़ रहा है, तो इस पेड़ की छाल, बीज़ों, पत्तों आदि के कई फायदे हो सकते हैं।
लसोड़ा के बारे में:
लसोड़ा को हिन्दी में 'गोंदी' और 'निसोरा' भी कहते हैं। इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं। कच्चे लसोड़ा का साग और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं और इसके अंदर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। लसोड़ा मध्यभारत के वनों में पाया जाता है। यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते हैं। आदिवासी अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते हैं। इसकी लकड़ी का इमारतों में उपयोग किया जाता है। इसे रेठु के नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम कार्डिया डाइकोटोमा है। आदिवासी लसोड़ा का इस्तेमाल अनेक रोग निवारणों के लिए करते हैं। चलिए आज जानते हैं लसोड़ा के बारे में।
मसूड़ों की सूजन में आराम
इसकी छाल की लगभग 200 ग्राम मात्रा लेकर इतनी ही मात्रा पानी के साथ उबाला जाए और जब यह एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला किया जाए, तो मसूड़ों की सूजन, दांतों का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है।
गले की तमाम समस्याएं होती हैं दूर
छाल के रस को अधिक मात्रा में लेकर इसे उबाला जाए और काढ़ा बनाकर पिया जाए, तो गले की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती हैं। लसोड़े की छाल को पानी में उबालकर छान लें। इस पानी से गरारे करने से गले की आवाज़ खुल जाती है।
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