Monday, 12 December 2011

सिर्फ सात मिनट...और तन की दुर्गंध से मिल जाएगी आजादी हमेशा के लिए

क्या आप तन की दुर्गंध से परेशान हैं? रगड़-रगड़ कर नहाते हैं महंगे डिओ भी लगाते हैं। लेकिन बॉडी आर्डर है कि जाने का नाम ही नहीं लेता। अगर आपके साथ भी यही समस्या है तो चिंता मत कीजिए इसमें भी योगा आपकी मदद कर सकता है। माना जाता है कि सुप्तवज्रासन रोजाना कम से कम सात से पंद्रह मिनट तक करने से। रक्तसंचार सूक्ष्म तंतुओं की आवश्यकता के अनुसार तेज करता है तथा पसीने की बदबू को दूर करता है। यह आसन ग्रंथियों को मजबूत करता है तथा मेरूदंड को लचीला व मजबूत बनाता है। 

इस आसन से नाभि का टलना दूर होता है तथा बड़ी आन्त सक्रिय होती है और कोष्ठबद्धता मिटती है। इस आसन से ब्रोकाइटिस रोग दूर होता है तथा इस आसन से फेफड़े पूरी तरह से फूलते हैं, जिससे फेफड़े की सांस लेने की क्षमता बढ़ती है। जिसे आगे झुककर काम करने से कमर में दर्द रहता है, उसके यह आसन करने से दर्द ठीक होता है। इस आसन से नाडिय़ों का केन्द्र नाभि स्थान को ठीक करता है तथा मस्तिष्क, पेट, गले, व घुटनों के दर्द को दूर होता है। इससे गले के रोग, सर्वाइकल, टी.बी. व दमा आदि रोगो को दूर करता है। यह आसन आंखों की रोशनी को बढ़ाता है। 

सुप्त वज्रासन- यह आसन वज्रासन का विस्तृत रूप है। इस आसन को हलासन या कोई भी आगे की ओर किये जाने वाले आसनों के बाद करें। इस आसन में स्वाधिष्ठान चक्र, मेरूदंड तथा कमर के जोड़ पर ध्यान एकाग्र करना चाहिए।



आसन की विधि-  



      सुप्त वज्रासन स्वच्छ-साफ व हवादार तथा शांत स्थान पर करें। आसन के अभ्यास के लिए नीचे दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाएं। अब दाएं पैर को मोड़कर पीछे की ओर दाएं नितम्ब (हिप्स) के नीचे रखें और बाएं पैर को मोड़कर बाएं नितम्ब के नीचे रखें। अब पंजों को मिलाते हुए एडिय़ों पर आसन की तरह बैठ जाएं तथा घुटनों को सटाकर रखें। अब धीरे-धीरे शरीर को पीछे की ओर झुकाते हुए पीठ के बल लेट जाएं। इसके बाद सिर को जितना सम्भव हो अंदर की ओर अर्थात पीठ की ओर करने की कोशिश करें। इससे शरीर कमानी की तरह बन जाएगा। आसन की स्थिति में दोनों हाथों को जांघों पर रखें। इसके बाद सांस समान्य रूप से ले और छोडें। इस स्थिति में 5 मिनट तक रहें और फिर धीरे- धीरे सामान्य स्थिति में आकर कुछ देर तक आराम करें और इसके बाद पुन: इस आसन को करें। इस तरह इस आसन को 3 बार करें।

    - सुप्त आसन की दूसरी स्थिति भी है- आसन की स्थिति में पहले की तरह पीठ के बल लेट जाएं और श्वासन क्रिया सामान्य रूप से करते हुए दोनों हाथों को कंधें की सीध में रखें। अब सांस लेकर पूरे शरीर का भार हथेलियों पर डालते हुए शरीर को ऊपर की ओर जितना सम्भव हो उठाएं और सांस को जितनी देर तक रोक सके रोककर इस स्थिति में रहें। इसके बाद धीरे-धीरे आसन की पहली स्थिति में आ जाएं और फिर सामान्य स्थिति में आ जाएं और श्वासन क्रिया सामान्य रखें। इस स्थिति में अंगुलियों को पीठ की ओर करके रखें। आपके शरीर का भार आपकी हथेली व कमर पर होना चाहिए। 

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